कल्पना करें यदि आपके सामने एक तरफ कुबेर का खजाना हो और दूसरी तरफ कल्पना का खजाना हो तो आप किसे चुनेंगे ? गोया व्यावहारिक तो यही है कि कुबेर का खजाना ही चुना जाए और बुद्धिमत्ता भी यही है । तिसपर महापुरुषों की मोह-माया-मिथ्या वाले जन्मघुट्टी से इतर बच्चा-बच्चा जानता है कि इस अर्थयुग में परमात्मा को पाने से ज्यादा कठिन है अर्थ को पाना । क्योंकि अर्थ के बिना जीवन ही अनर्थ है । इसलिए जो कुबेर के खजाने को चुनते हैं उनको विशुद्ध रूप से आदमी होने की मानद उपाधि दी जा सकती है । यदि कोई दोनों ही हथियाने के फिराक में हैं तो उन्हें बिना किसी विवाद के ही महानतम आदमी माना जाएगा । और जो ..... खैर !
पर कोई तो इस लेखक-सा भी महामूर्ख होना चाहिए जो रबर मैन की तरह दोनों बाँहों को बड़ा करके लपलपाते जिह्वा से लार की नदियाँ बहाते हुए कल्पना के खजाना को पूरे होशो-हवास में चुने । कारण लिखनेवाला एक तो तोड़-मरोड़ वाला लेखक है ऊपर से जोड़-घटाव वाला कवि भी है । तो कल्पना के खजाने का रूहानियत उससे ज्यादा भला कोई और कैसे जान सकता है । कल्पना करते हुए वह खुद को कुबेर से भी ज्यादा मालामाल समझता है । यकीन न हो तो उसके कल्पना से कुछ भी माँग कर देखें । यदि महादानी कर्ण भी रणछोड़ न हुआ तो नया महाभारत लिख दिया जाएगा इसी लेखक के काल्पनिक करों से ।
तो कल्पना करते हुए लेखक वो सब कुछ बन जाता है जो वो कभी हक़ीक़त में बन नहीं सकता है । अक्सर वह स्पाइडर-मैन की तरह महीन और खूबसूरत जाला बुनता है जिसमें खुद तो फँसता ही है , औरों को भी झाँसा देकर ही खूब फँसाता है । फिर शक्तिमान की तरह अपने काल्पनिक किल्विष को हमेशा हराता रहता है । अपनी कल्पनाओं की दुनिया में ही वह एक बहुत ही सुन्दर दुनिया बसाता है । जिसमें वास्तविक रूप से सुख, समृद्धि और शांति ले आता है । जो उसे कुछ पल के लिए ही सही पर बहुत सुकून देता है । जो इस दुनिया में अब कहीं ढ़ूँढ़ने से भी उसे नहीं मिलता है । शायद उसके लिए सारी सतयुगी बातें अब काल्पनिक हो गई हैं या फिर सच में विलुप्त होने के कगार पर ही है ।
तो अब सवाल ये है कि कल्पना के बिना इस बर्दाश्त से बाहर वाली दुनिया में दिल लगाए भी तो कैसे लगाए । जहाँ कुछ भी दिल के लायक होता नहीं और जो होता है उसके लायक लेखक होता नहीं है । तो ऐसे में सच्चाई को स्वीकार करते-करते हिम्मत बाबू अब उटपटांग-सा जवाब देने लगें हैं । तो फिर जन्नत-सी आजादी की बड़ी शिद्दत से दरकार होती है जो सिर्फ कल्पनाओं में ही मिल सकती है । एक ऐसी आजादी जिसे किसी से न माँगनी पड़ती है और न ही छीननी पड़ती है । तब तो वह कल्पना के खजाने को खुशी से चुनता है और उसकी महिमा का बखान भी एकदम काल्पनिक अंदाज में करता है ।
फिर से कल्पना करें कि यदि सब हीरे-जवाहरातों में ही उलझ जाएंगे तो सबके ओंठों पर काल्पनिक ही सही पर मुस्कान कौन खिलाएगा ? आखिर मुस्कान खिलाने वाले प्रजातियों को भी थोड़ी तवज्जो ज़रूर मिलनी चाहिए । ताकि मुंगेरी लालों के काल्पनिक दुनिया में एक से एक हसीन सपने अवास्तविक और अतार्किक रूप से और भी ऊँची-ऊँची कुलाँचे भर सके । जिन्हें नहीं पता है तो वे अच्छी तरह से पता कर लें कि इस छोटी-सी जिंदगी में महामूर्खई करके हँसी-दिल्लगी भी न किया तो फिर क्या किया । इसलिए हमारे जैसे महामूर्खों की कल्पनाओं की दुनिया तो कुछ ज्यादा ही आबाद होनी चाहिए ।
वैसे भी इस सिरफिरे को बेहतर इल्म है कि कभी इसे सूरज पर बैठ कर चाय की चुस्कियाँ लेने की जबरदस्त तलब लगी तो बेचारा कुबेर का खजाना कुछ भी नहीं कर पाएगा । पर कल्पना का खजाना ही वो चिराग वाला जिन्न है जो इस तुर्रेबाज तलब को पूरा करके पूरी तरह से तबीयत खुश कर सकता है । ऐसे ही बेपनाह आरजुओं की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है जो सिर्फ कल्पनाओं में ही पूरी हो सकती है । तो कोई भी अपने सुतर्कों से लेखक के चुनाव को कमतर साबित करके तो दिखाएं । या फिर अपनी ही कल्पनाओं को हाजी-नाजी बना कर देख लें ।
यदि इस कल्पनानशीन ने और भी मुँह खोला तो ख़ुदा कसम पृथ्वी बासी जैसे कल्पना के बाहरी दुनिया के जालिम लोग सरेआम उसे पागल-दीवाना जैसे बेशकीमती विशेषणों से नवाजेंगे । फिर तो इज्ज़त-आबरू जैसी भी कोई चीज है कि नहीं जिसे थोड़ा-बहुत बचा लेना लेखक का फ़र्ज़ तो बनता है । इसलिए खामखां अपनी कल्पनाओं की खिंचाई न करवा कर बस इतना ही कहना है कि जो कोई भी कुबेर के क़ातिल क़फ़स में फँसना चाहे शौक से फँसें । उन्हें ख़ालिस आदमी होने के लिए मुबारकबाद देने में भी ये महामूर्ख सबसे आगे रहेगा ।
*** एक हास्यास्पद चेतावनी ***
*** यदि किसी महामानव को इस महामूर्ख पर हल्की मुस्कान भी आ रही हो तो वह अट्टहास कर सकता है किन्तु आभार व्यक्त करते हुए ***