Tuesday, October 27, 2020
क्षणिकाएँ ........
Monday, October 19, 2020
शब्दों के घास , फूस की खटमिट्ठी खेती हूँ .....
Monday, October 12, 2020
मेरी कविताएँ अपरंपार ......
तुम कहते हो कि
मेरी कविताएंँ
तुम्हारे लिए
प्यार भरा बुलावा है
शब्दों के व्यूह में फँसकर
तुम स्वयं को
पूरी तरह भूल जाते हो
कुछ ऐसा ही
सम्मोहक भुलावा है
मेरे शब्दों से बंध कर
तुम खींचे चले आते हो
और तपती दुपहरिया में
तनिक छाया पाते हो
पर कैसे ले जाएंँगी
तुम्हीं को तुमसे पार
मेरी कविताएंँ
अपरंपार
औपचारिक परिचय भर से ही
शब्द अर्थ नहीं हो जाते
और आरोपित अर्थों से
शब्द अनर्थ होकर
व्यर्थ हो जाते
शब्दों से शब्दों तक
जितनी पहुंँच है तुम्हारी
केवल वहीं तक
तुम पहुंँच पाओगे
शब्दों के खोल से
जो भी अर्थ निकले
अपने अर्थ को ही पाओगे
मेरे शब्दों के सहारे
घड़ी भर के लिए ही सही
तुम अपने ही अर्थ को पाओ तो
कुछ-ना-कुछ
घटते-घटते घट जाएगी
मेरी कविताएँ
तुम्हारी ही प्रतिसंवेदना है
तुम्हारे अर्थों से भी
इस छोर से उस छोर तक
बँटते-बँटते बँट जाएगी .
Tuesday, October 6, 2020
छठे सातवें फ़रेब में ......
जिंदगी के वस्ल वादों में
मेरे इतराते इरादों में
कुछ ऐसी ठनी
कि हर बिगड़ी हुई बात
नाज़ुक सी नाज़ की
बदसूरत बर्बादी बनी
भागते गुबारों ने
आहिस्ते से कहा
जिंदगी को तो
हाथ से छूटना ही है
ख्वाबों का क्या
पूरा होकर भी
टूटना ही है
पर रूठी उम्मीदों को
मनाने का अपना एक
अलग ही मजा है
छठे सातवें फ़रेब में
खुद को खुदाई तक
फिर से फँसाने का
उससे भी ज्यादा मजा है
तब तो मुद्दत पहले
उदास ग़ज़लों को
छूटी हुई राहों में
छोड़ आई हूं
मत्तला और क़ाफ़िया को
प्यार से आज़ाद कर
नज़्म बन पाई हूं
खुद को ही ख़बर लगी कि
अभी भी बहुत कुछ है
मेरे तिलिस्मी ख्यालों में
ऐ जिंदगी !
तुझको ही मैंने
अब भर दिया है
एतबार के टूटे प्यालों में .