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Thursday, January 31, 2013

खुशबूदार बदलाव ...


कुर्सियां है तब तो
व्यवस्था की बातें हैं
व हर दरवाजे पर
जोर की दस्तक है ...
पस्त-परेशान-सा
पसीना है
वातानुकूलित कमरे के
फर्श-कगारों पर
कैट-वॉक करती
चहलकदमियाँ हैं
रूम-फ्रेशनर सा
खुशबूदार बदलाव है...
उबासियाँ-जम्हाइयां तो
विश्वविद्यालयों से
बड़ी डिग्री पाने की
जुगत में हैं
और झपकियाँ
घड़ी की सुइयों की
रसबतिया में बीजी है...
कुर्सियां हैं तब तो
पायों में छिपी-सी
अराजकता भी है
टांगों के पीछे-नीचे
कबड्डी खेलती हुई
जिसे देखकर
झाड़-फ़ानूस से
झूलता हुआ युग
कल्पनाओं में उड़ता है
स्पाइडरमैन की तरह
और कुर्सियों से
जुते घोड़ें
हिनहिनाना छोड़कर
उन कौओं को
खोज रहे हैं
जिनके पास हैं
गिरवी बतौर
उनके कान .

Sunday, January 27, 2013

प्रेम का ही आभार है ...


               कुछ कह नहीं सकती यह कि
                 ह्रदय की जीत है या हार है
                  ये पीड़ा है मुझे बड़ी प्रिय
                  जो प्रेम का ही आभार है

               आभार इतना कि हर भार से
                अतिगत ही जैसे अछूती हूँ
                 अछूती-अछूती ही हरपल
                  प्रिय को ऐसे मैं छूती हूँ

               वह अलबेला कितना अनछुआ
                  छू-छू कर अब मैंने जाना है
                    पाया-पाया सा है लगता
                    पर उतना ही उसे पाना है

                कुछ कह नहीं सकती यह कि
                  पाकर भी उसे पा ही लूँगी
                   जो पा भी लिया उसे तो
                  सबसे मैं तो छिपा ही दूँगी

                 उस अनजाने-अनपहचाने को
                 अनजाने में ऐसे जान लिया है
                  प्रीति लगी बस उस नाम की
                  जो इतना मैंने नाम लिया है

                  अब वही नाम इक गीत बन
                 इन साँसों से बस टकराता रहे
                 और उखड़ी-उखड़ी धड़कन को
                   इक विरह-धुन पकड़ाता रहे

                 कुछ कह नहीं सकती यह कि
                 यही धुन उसने भी गाया होगा
                मतवाली-मतवाली फिरती देख
                मुझपर उसका मन आया होगा

                अभी उसे तो देखा भी नहीं है
               जो मिले भी तो मैं पहचानूँ ना
               बस प्रीति लगी है उस नाम की
                कैसे लगी यह भी मैं जानूँ ना

                बस जानने से जी भरता नहीं
                जान-जान कर मैंने जाना है
                वह अनजान रहे तब भी उसे
                इन साँसों का अर्घ चढ़ाना है

                कुछ कह नहीं सकती यह कि
              ये अर्घ है या अलख प्रतिकार है
                 ये पीड़ा है मुझे बड़ी प्रिय
                 जो प्रेम का ही आभार है .


Tuesday, January 22, 2013

देखो न मुझे ...



एक छोटी-सी
कोठरी का अँधेरा
देखो कैसे
बाहर निकल आया है
जैसे ही
कोई जलता दीया
इस बुझे दीये के
बेहद करीब आया है ...
एक गहरे-काले
घोल की-सी रात
दहककर
पिघलने लगी है
जिसमें
एक स्वप्नातीत
स्वरुपातीत-सी
गहरी नींद
स्तब्धता में भी
जगने लगी है
और
एक चिर-संचित
सुशोभित,सुसज्जित
मेरी प्रतिमा सी-ही
मुझमें ही कुछ
ऐसे ढहने लगी है ...
मानो
सहसा हाथ बढ़ाकर
कोई खींच लिया है
गले लगाकर मुझे
कसकर भींच लिया है ...
वही
लावा-सा बहकर
मेरे शिराओं में
ऐसे भीग रहा है ...
देखो न मुझे
मेरा रोम-रोम भी
उसी में
कैसे सीझ रहा है .

Monday, January 14, 2013

तुम गा लेना...


जब शब्द-भ्रम पुरत:
तिमिर की घनी छाँव बन जाए
धुँधली-धुँधली सी सब ज्योति पड़ जाए
और आँखों में अश्रुघन उमड़ आये
तो प्रच्युत प्रतिनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...

शब्द-बोध , शब्द-श्लेष
भेद कर बुद्धि जन्य क्लेश
लख स्निग्ध उर-तल उन्मेष
उस प्रतिध्वनि को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...

जब शब्द-व्यूह पुन:
अपने मूल स्रोत में समा जाए
तब जो भी अर्थ शेष रह जाए
वही तुमसे कोई गीत रचा जाए
उस शेषनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...

शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
उसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...

जब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
उसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...

शब्द-शमित , शब्द-हीन
तुम-तुम-तुम बजे शाश्वत-बीन
क्षण-क्षण हो जिसमें लवलीन
उस हृत्प्रिय क्षण को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना . 

Wednesday, January 9, 2013

केवल एक युक्ति है ...


मैंने अब धारा की
उस प्रचंडता को पहचान लिया है
व अपने अनुरूप ही
हर ढाल का भी निर्माण किया है...
ये भी माना कि
प्रवाह-शक्ति बड़ी मद से भरी है
पर सामने भी तो
कई भीमकाय बाधाएँ भी खड़ी है...
जहाँ निषेध है
वहाँ उद्रेकता में उछल जाती हूँ
और मूल से ही
हर पाषाण को रेत-रेत कर जाती हूँ...
ऐसे न बहूँ तो
ये जो तृषा है शांत कैसे होगी ?
कुछ कमल व हंसों में
मानसरोवर की गति जैसे होगी...
गर्जन-तर्जन करके
सारी वर्जनाओं को तोड़ देना है
पोखरों में ही सिमटी हुई
अन्य धाराओं को भी जोड़ लेना है...
सच! बहने में ही
हम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .


Friday, January 4, 2013

प्यार के साथी ! सच मानो ...


प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी चुप-सी पतझड़ को , मैं
बस तुमसे ही गुदगुदाना चाहती हूँ
और इस बासित बगिया में
तेरा ही , बांका बसंत खिलाना चाहती हूँ ...

कहो तो ! हवाओं को सनसनाकर
हर पत्तियों की चुटकियाँ झट से बजा दूँ
अलसाई सी हर कलियों की
आँखों को चूम-चूमकर जगा दूँ ...

यूँ बलखाती डालियों-सी
तुझपर ही , मैं ढुलमुलाना चाहती हूँ
ओ! मेरे सघन तरु , मैं
लता सी ही , तुझसे लिपट जाना चाहती हूँ ...

इस लगन को प्रिय!
बस पागलपन मत कहो तुम
प्रीत पुरातन है मेरा
निरा आकर्षण मत कहो तुम ...

प्यार के साथी ! सच मानो
अपने हर रोदन को
तुमसे अमर गान बनाना चाहती हूँ
और थामकर हाथ तेरे
मुश्किलों को भी आसान बनाना चाहती हूँ ...

कहो तो ! इस उफनते यौवन को
मैं , तुममें अभी ऐसे समा दूँ
कि तुमसे ही उघड़कर
तुम्हे ही मैं , घूँघट भी बना लूँ ...

तेरे लहरों में सिहर कर
अंग-अंग को भिंगाना चाहती हूँ
और तुम्हारे ही सहारे
तुममें ही , डूब जाना चाहती हूँ ...

इस नेह-हिलोर को
बस लड़कपन मत कहो तुम
बड़ी बेबूझ ये चित्त है
रुत का चलन मत कहो तुम ...

प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

प्यार के साथी ! सच मानो .

Tuesday, January 1, 2013

अति आवश्यकता है ...


अति आवश्यकता है
समस्त शुभकामना की
सही समय भी है
हालांकि अपने अनुसार समय
हमेशा सही ही होता है पर
गलती से ही कभी वह
जो झपकी लेता है तो
गलत भी अपनी परिभाषाओं का
अतिक्रमण कर देता है
और आदमी अपनी ही
परिभाषाओं की परिधि पर
सर पटक-पटक कर रोता है ...
अति आवश्यकता है
शुभकामना लेने और देने की
हर छटपटाते ह्रदय को
अमृत-वृष्टि में भिंगोने की
उस छुई-मुई सी निराशा को
जड़ से उखाड़ कर फेंकने की
और आशा के अक्षयवट को
पुन: जतन से संजोने की ...
अति आवश्यकता है
शुभाकांक्षी शुभकामना की
शुभ हो! शुभ हो! शुभ हो!