कुर्सियां है तब तो
व्यवस्था की बातें हैं
व हर दरवाजे पर
जोर की दस्तक है ...
पस्त-परेशान-सा
पसीना है
वातानुकूलित कमरे के
फर्श-कगारों पर
कैट-वॉक करती
चहलकदमियाँ हैं
रूम-फ्रेशनर सा
खुशबूदार बदलाव है...
उबासियाँ-जम्हाइयां तो
विश्वविद्यालयों से
बड़ी डिग्री पाने की
जुगत में हैं
और झपकियाँ
घड़ी की सुइयों की
रसबतिया में बीजी है...
कुर्सियां हैं तब तो
पायों में छिपी-सी
अराजकता भी है
टांगों के पीछे-नीचे
कबड्डी खेलती हुई
जिसे देखकर
झाड़-फ़ानूस से
झूलता हुआ युग
कल्पनाओं में उड़ता है
स्पाइडरमैन की तरह
और कुर्सियों से
जुते घोड़ें
हिनहिनाना छोड़कर
उन कौओं को
खोज रहे हैं
जिनके पास हैं
गिरवी बतौर
उनके कान .