प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी चुप-सी पतझड़ को , मैं
बस तुमसे ही गुदगुदाना चाहती हूँ
और इस बासित बगिया में
तेरा ही , बांका बसंत खिलाना चाहती हूँ ...
कहो तो ! हवाओं को सनसनाकर
हर पत्तियों की चुटकियाँ झट से बजा दूँ
अलसाई सी हर कलियों की
आँखों को चूम-चूमकर जगा दूँ ...
यूँ बलखाती डालियों-सी
तुझपर ही , मैं ढुलमुलाना चाहती हूँ
ओ! मेरे सघन तरु , मैं
लता सी ही , तुझसे लिपट जाना चाहती हूँ ...
इस लगन को प्रिय!
बस पागलपन मत कहो तुम
प्रीत पुरातन है मेरा
निरा आकर्षण मत कहो तुम ...
प्यार के साथी ! सच मानो
अपने हर रोदन को
तुमसे अमर गान बनाना चाहती हूँ
और थामकर हाथ तेरे
मुश्किलों को भी आसान बनाना चाहती हूँ ...
कहो तो ! इस उफनते यौवन को
मैं , तुममें अभी ऐसे समा दूँ
कि तुमसे ही उघड़कर
तुम्हे ही मैं , घूँघट भी बना लूँ ...
तेरे लहरों में सिहर कर
अंग-अंग को भिंगाना चाहती हूँ
और तुम्हारे ही सहारे
तुममें ही , डूब जाना चाहती हूँ ...
इस नेह-हिलोर को
बस लड़कपन मत कहो तुम
बड़ी बेबूझ ये चित्त है
रुत का चलन मत कहो तुम ...
प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
प्यार के साथी ! सच मानो .
स्नेही मनुहार
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको ...
खूबशूरत मनुहार भरी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleterecent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
गुनगुनाता गीत है या तुम्हारा प्रेम !
ReplyDeleteबहुत मीठी -प्यारी सी कविता !
तुमसे ही उघड़कर
ReplyDeleteतुम्हे ही मैं , घूँघट भी बना लूँ ...
:) :) :)
सच मानो
ReplyDeleteऐसी ही प्रीत
जन्मों-जन्मों तक
निभाना चाहती हूँ मैं
सादगी से भरे सुन्दर स्नेही भाव मन को भा गए... शुभकामनायें
प्यार प्यार और बेशुमार प्यार.....
ReplyDeleteभा गयी आपकी ये रचना <3
बहुत ही सुन्दर अमृता जी
अनु
कहो तो ! हवाओं को सनसनाकर
ReplyDeleteहर पत्तियों की चुटकियाँ झट से बजा दूँ
अलसाई सी हर कलियों की
आँखों को चूम-चूमकर जगा दूँ ..........कितनी खूबसूरत कोशिश है ......
मीठी सी कविता !
ReplyDeleteनयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ....अमृता जी
ReplyDeleteजो भी चाहतें हैं सब इस नए साल में पूरी हो जाएँ :-))
ReplyDeleteआफत की शोख़ियां है आपकी निगाह में......
ReplyDeleteप्रत्येक शब्द स्नेहरंग रंगा ...
ReplyDeleteयह प्यार का साथी इसी दुनिया का बाशिंदा है या...ऐसा प्यार तो बस उसी से हो सकता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और कोमल भावों से सजी शब्द रचना।
ReplyDeleteप्रेम के गहन रस में आप्लावित आपकी एक यादगार उत्कृष्ट रचना! मानो समग्र निसर्ग ही प्रेम पूरित हो गया हो ! मन को गहरे संस्पर्श कर गयी यह कविता !
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावो से सजी खुबसूरत रचना....
ReplyDelete
ReplyDeleteयूँ बलखाती डालियों-सी
तुझपर ही , मैं ढुलमुलाना चाहती हूँ
ओ! मेरे सघन तरु , मैं
लता सी ही , तुझसे लिपट जाना चाहती हूँ ...
प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
प्यार के साथी ! सच मानो .
परिपूर्ण समर्पण प्रेम का अंतिम सौपान है देह के पार ,समाधिस्थ होना है .उद्दाम वेग प्रेम का अपनी दशा पा गया है इस रचना में कोई ये होता तो वो होता नहीं है इस
रचना में .पूर्ण अभिव्यक्ति है प्रेम की .
एक प्रतिक्रया ब्लॉग पोस्ट :
प्यार के साथी ! सच मानो
ReplyDeleteअपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
प्रेम रस में पगी प्यारी सी रचना ..... बेहद सुन्दर!
Amrita,
ReplyDeleteGOORH PREM MEIN DOOBI YUVATI KE BOL BAHUT SAPASHT DHANG SE KAHE.
Take care
अपनी गहरी प्यास को
ReplyDeleteतुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
बहुत सुन्दर भाव
बहुत प्यारी कविता. हर शब्द प्रेम सिक्त है.आखिरी शब्द बहुत सुन्दर भाव समेटे हैं. निर्वासना के धरातल पर ही प्यार की सच्ची अनुभूति है. कुछ दिल पहले मिलते जुलते ख़याल से एक कविता लिखी थी.आपकी नज़र-
ReplyDeletehttp://kalambinbaat.blogspot.com/2012/12/blog-post_14.html
प्यार के साथी ! सच मानो
ReplyDeleteअपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
प्यार के साथी ! सच मानो .
गजब की अभिलाषा
बहुत ही सुन्दर शब्द-अलंकृत रचना!
ReplyDelete"प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ" ...
अपनी गहरी प्यास को
ReplyDeleteतुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
सच्चे प्यार की पहचान भी यही है.
सुंदर कविता.
बहुत सुन्दर मनुहार....
ReplyDeleteमीठी सी प्यारी सी रचना..
अति सुन्दर.....
:-)
Ab bhi kuchh likhaa ßhesh hai kya' sharîr aur bhawon ke us par milan kî abilasha me ............ûs saagar me ............amûlya. çhîtran..........añmol rachana.
ReplyDeleteइस अनमोल सी रचना के बारे में लिखने की सिर्फ एक ही आवश्यकता है और वह यह की आप जैसी इतनी भावपूर्ण रचनाओं को लिखती तो हैं पर इतनी गुमनाम सी क्यों.? हिंदी काब्य जगत को आपके अनमोल रचनाओं को अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँच हो , और इस अमूर्त और मूक भावों तक हम ब्लागरों के अतिरिक्त भी हिंदी कब्याप्रेमी जान सके तथा अपनी उद्गार आप तक तथा हम सब लोगों तक मिल सके.इन कब्यों का आलोचना या सम्लोचना हो सके.आप गुमनामी से nikalkar प्रकश में आयें.अगर मेरे सुझाव प्रिये ना लगे तो क्षमा .
Deleteप्यार के साथी ! सच मानो
अपने हर रोदन को
तुमसे अमर गान बनाना चाहती हूँ
और थामकर हाथ तेरे
मुश्किलों को भी आसान बनाना चाहती हूँ ...
वाह जी बढ़िया
ReplyDeleteप्यार के साथी ! सच मानो
ReplyDeleteअपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
....निस्वार्थ सच्चे प्रेम की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
आपने विचित्रता व्याप्त कर दी है, मेरी तो सुध-बुद्ध हर दी है।
ReplyDeleteतेरे लहरों में सिहर कर
ReplyDeleteअंग-अंग को भिंगाना चाहती हूँ
और तुम्हारे ही सहारे
तुममें ही , डूब जाना चाहती हूँ ...
खूबशूरत मनुहार भरी प्रस्तुति,,