अज्ञात किसी क्षण सहसा
क्यों बेचैन हो उठता है मन
और अचानक कहीं गहरे में
उभरकर बिखरने लगती है
संवेदनाएं बेतरतीब.....
मैं उन्हें समेटना चाहती हूँ
तुम्हारे आशा के अनुरूप
अभिव्यक्ति देना चाहती हूँ
उन अव्यक्त विचारों को
जो अभिशप्त है मौन के लिए
और नियति बन जाती है जिनकी
वेदना-कुछ अजीब........
मैं उन्हें सहेज लेना चाहती हूँ
आत्मस्वरूप अहसास के
गहरे अनुभूतियों से
परन्तु अभिव्यक्ति कैसे दूँ?
जब मुझमें मैं ही न रही
क्योंकि आज जो सोचती हूँ
वो चिंतन तुम्हारे हैं
लिखती हूँ तो
शब्द भी तुम्हारे हैं
जीना चाहती हूँ तो
जीवन की शक्ति भी
या यूँ कह लो कि
सम्पूर्ण जीवन में
समा गए हो तुम
प्रेरणा बन कर .