धर्मिष्ठा ने
धरा पर धर दिया
योगस्थ यश को
धरा के समान ही
सागर सुखाती हुई
बनी रही धरोहर
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धर्षिता ने
धूल को रोक लिया
अपने यश के घेरे में
धरा सींचती रही
एक यश-वट
सिद्ध होते अर्थों से
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धरनी ने
ग्रह-गोचर चलने दिया
योगात्मक गति में
अपनी ग्रह-यात्रा को
स्थिर कर , करती रही
उसके लिए ग्रह-यज्ञ
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धर्माभिमानिनी ने
अर्थ अपना सिद्ध किया
राहु-स्पर्श से
सिद्धांतहीन यश
ग्रहण मुक्त होकर
धरा पर बिखरा है
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धन्या ने
धन गंवाया , धन्य किया
सिद्ध अर्थ के यश को
इसीलिए तो धरा पर
यशोधरा धरती है देह
अपने बुद्ध के लिए .
धर्मिष्ठा - धर्म पर स्थित रहने वाली
योगस्थ - योग में स्थित
धर्षिता - पराजित स्त्री
धरनी - हठी , जिद्दी
ग्रह-यज्ञ - ग्रहों को शांत करने के लिए किया जाने वाला यज्ञ
धर्माभिमानिनी - अपने धर्म पर अभिमान करने वाली
राहु-स्पर्श - कोई भी ग्रहण
धन्या - श्रेष्ठ कर्म करने वाली