मनुष्यता में ही मनचला-सा
कोई खोपड़ा-फिरा खोट है
या सभी खोपड़ियाँ पर ही
एक-सी लगी कोई चोट है
सारे के सारे स्मृति के तंतु
जो ऐसे अस्त-व्यस्त से हैं
मानो बेहोशी- कोमा में ही
जैसे कि सब सन्यस्त से हैं
या कोई स्मृति-चोर कहीं
सबों को ऐसे ही लूट गया
कि होश से ही सारा संबंध
लगता तो है कि टूट गया
होश की सच्ची कहानियां
अब बेहोशी ही लिख रही है
तब तो मलकाए मीडिया में
एक हलचल-सी दिख रही है
चारों तरफ हैं वेंटिलेटर लगे
पर सांस भी लेना मुहाल हुआ
मिनरल-वाटर अभियान देख
होश का भी है अब होश उड़ा
खोई विस्मृति गली-कूचों से
अपना नाम-पता पूछ रही है
तल्खी से हर खुदे तख्ते को
दादा-परदादा का बूझ रही है
होश को भी हाइजैक करते
स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु
सब तो एक- दूसरे को ही
कैसे बेहोश-सा बता रहे हैं
हाय! अब कौन यह कहे कि
बताकर ही कितना सता रहे हैं .
अच्छी और गंभीर कविता |
ReplyDeleteहोश को भी हाइजैक करते,स्मृति के इतने हैं तंग तंतु ...वाह , साधू आ. अमृता जी इस कविता ने हाइकू के नए आयाम ढूंढ निकाले ...
ReplyDeleteहोश को भी हाइजैक करते
ReplyDeleteस्मृति के इतने हैं तंग तंतु
क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु,,,,
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
सब तो एक- दूसरे को ही
ReplyDeleteकैसे बेहोश-सा बता रहे हैं
हाय! अब कौन यह कहे कि
बताकर ही कितना सता रहे हैं .
................
....................
सुन्दर.....
होश की सच्ची कहानियां
ReplyDeleteअब बेहोशी ही लिख रही है
तब तो मलकाए मीडिया में
एक हलचल-सी दिख रही है
Bahut Badhiya....
होश की सच्ची कहानियां अब बेहोशी ही लिख रही है... वर्ना जो हो रहा है वो ना होता... सच्ची बात कह दी आपने
ReplyDeleteसब खोपड़ी.........के स्थान "सभी खोपड़ियां" करने का कष्ट करें। भाव-धरातल पर आत्मा तक को झकझोर देनेवाली आपकी कविताओं में ऐसी गलतियां अखरती हैं।
ReplyDeleteहोश को भी हाइजैक करते
स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु .......बहुत गम्भीर।
व्यवस्था की कटुता पर प्रभावकारी पंक्तियां........... चारों तरफ हैं वेंटिलेटर लगे
पर सांस भी लेना मुहाल हुआ
मिनरल-वाटर अभियान देख
होश का भी है अब होश उड़ा
सोच्प्रधान कविता | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
सच को टटोलती रचना
ReplyDeleteबधाई
खोई विस्मृति गली-कूचों से
ReplyDeleteअपना नाम-पता पूछ रही है
तल्खी से हर खुदे तख्ते को
दादा-परदादा का बूझ रही है
बहुत प्रभावशाली रचना...तीखा कटाक्ष...
सब शब्द जबरदस्त .. खोपड़ा शोर करता है .....
ReplyDeleteनिःशब्द करती विचारणीय रचना जहाँ विचारों का अवगुंठन स्पष्ट दिखलाई देता है ...
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteकोई तो राह बताये..
ReplyDeleteज़बरदस्त चोट है ... वाकयी खोपड़ियों में खोट है ।
ReplyDeleteहोश की सच्ची कहानियां
ReplyDeleteअब बेहोशी ही लिख रही है
होश में सच हलक से बहार आ कहाँ पाता है. सुन्दर लिखा है.
कविता को कवयित्री के भावभूमि पर समझने की कोशिश कर रहा हूं। फिलहाल ... इतना ही कहूंगा कि इस कविता में वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद की सूक्ष्म जांच-पड़ताल और इसकी भयावह प्रवृत्तियों की पहचान की गई है। जीवन के हर क्षेत्र में बाज़ार ने सबसे शक्तिशाली हैसियत हासिल कर ली है। वह समाज की दिशा तय कर रहा है। व्यक्ति असहाय और ठगा महसूस कर रहा है।
ReplyDeleteSarthak rachna....aaj ki mansikta par teekha kintu soch ar kiya Gaya kataksh......
ReplyDeleteप्रभावी रचना
ReplyDeleteबहुत ऊंचे पाए की परिवेश प्रधान रचना लिखी है आपने .सारी व्यवस्थाएं कृत्रिम सांस ,हार्ट लंग मशीन पर हैं ,पंगु हैं ,उलटी गिनती शुरू हो चुकी है इनकी .
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .
होश के लम्हे नशे की कैफियत समझे गए हैं ,
फ़िक्र के पंछी ज़मीं के मातहत समझे गए हैं .
वाह ..वाह ...बहुत खूबसूरत ख्याल ...सुन्दर शब्द संयोजन।
ReplyDeleteसारे के सारे स्मृति के तंतु
ReplyDeleteजो ऐसे अस्त-व्यस्त से हैं
मानो बेहोशी- कोमा में ही
जैसे कि सब सन्यस्त से हैं
बहुत सुन्दर ।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहोश को भी हाइजैक करते
ReplyDeleteस्मृति के इतने हैं तंग तंतु
क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु ..
रचना का हर छंद अलग अंदाज़ का है ... बहुत ही लाजवाब ...
चारों तरफ हाहाकार .....
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति ....
`हालात ऐसे ही हैं और इसी में रहना भी है!
ReplyDeleteईश्वर
ReplyDeleteदार्शनिकों आध्यात्मिक लोगों के लिए
ईश्वर को खोजने की कोशिशों के पहले
कुछ चीजें जान लेना
सपने, विचार, यादें, भाव और कुछ शारीरिक हलचलें ।
इन शब्दों पर विचार करें
मगज, चैंथी, छोटा दिमाग, सिर का पिछला हिस्सा
सिर में एक कम्प्यूटर चिप, कम्प्यूटर,
सुपर कम्प्यूटर, सूचना प्राैद्योगिकी ।
कुछ आपके आसपास की चीजें,
आपके विचार, अन्य लोगों के आपके बारे में विचार,
आपकी याददाश्त, कुछ और बातें,
इतनी चीजों को समझ लो ।
समझ मंे आने पर
इन बातों को तब तक सार्वजनिक न करना
जब तक तनिक सा भी संशय हों,
ये जो आपने जाना
यह तो सिर्फ विज्ञाना है
वह भी मनुष्यों का ।
वे मनुष्य जो स्वयं सर्वज्ञाताा नहीं हैं,
कुछ क्षेत्रों का उनको भी ज्ञाना नहीं है,
उन लोगों और कम्प्यूटर को ईश्वर न कहना ।
अब आप तैयार हैं ईश्वर को जानने के लिए,
प्रकृति के रास्ते से तलाश शुरू कर सकते हैं,
और....ढूढ़े......ढूढते रहे,
वो भी आपको ढ़ूढ़े ऐसी आशा करता हॅंू
सुन्दर रचना
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