जरा पूछना तो
बनजारिन-सी बसंती बयार से
कि यूँ लट लहराकर ,बलखाकर
बिंदिया , कजरा , महावर रचाकर
जोर-जोर से चूड़ियाँ खनकाकर
खुशबू-सा यौवन लुटाती हुई
अपने मोहक क्वांरी जाल में
किसे फंसाए फिर रही है ?
जरा पूछना तो
फगुनाई-सी फागुनी फुहार से
कि क्यों कभी आती-पाती खेलती है
तो कभी लुका-छिपी करती है
कभी फाहा-सा फहर-फहर कर
किससे हंसी-ठिठोली कर कर के
किसके बांहों को दहका जाती है ?
जरा पूछना तो
उन तितलियों के तकरार से
कि चुपके-से पनघट पर
जो गुलाबी धुप उतर आती है
तो ऐसा क्या कर जाती है कि
चुटकी में ही उनकी चुगली
क्यों उन्हें ही लड़ा देती है ?
जरा पूछना तो
इन फूलों के इकरार से
कि किसके लिए वे
पंखुड़ियों से पथ बुहारते हैं
और मंदिम-मंदिम मादक गान से
किसको पास बुलाते हैं
कि किरन-किरन चीर उतार कर
क्यों सबको ही लजा जाती है ?
जरा पूछना तो
हर साँझ के मनुहार से
कि किस मौन पाहुन से
मोरपंखी चाह लगा लेती है
चौंक-चौंक कर कभी चौक पूरती
कभी नये-नये बंदनवार बनाती
और सौंधी-सौंधी धानी पीर लिए
किसका बाट जोहती जाती है ?
जरा पूछना तो
हर सुबह के इनकार से
कि रात की बेचैन सिलवटों पर
क्यों है सतरंगी सपन खुमारी
कुछ कहती आँखें पर पलकें हैं भारी
और होंठों पर जो धरी उंगलियाँ
हौले-हौले हलचल करके
क्यों भोलेपन को भड़का जाती है ?
जरा पूछना तो
अपने भी इस हाल से
कि किसके लिए बौराया ,फगुनाया सा है ?
क्यों तिलमिल तारों पर टकटकी है ?
क्यों आतिश-अनारों सा कुछ फूटता है ?
क्यों कोई जादू-सा घेरे रहता है ?
क्यों वही मन में ही फेरे लेता है ?
क्यों हाल ऐसे बेहाल होता है ?
जरा पूछना तो .
बसंतागमन पर एक बेहतरीन स्वागत गीत-मन आह्लादित तन पोर पोर उद्वेलित -पूछने की जरुरत ही नहीं :-)
ReplyDeleteसवाल बिलकुल वाजिब है :)
ReplyDeleteपुछने पर शायद जवाब मिले कि बसंत का असर है :):) सुंदर भावप्रवण रचना
ReplyDeleteबसंत का प्रभाव है,
ReplyDeleteउसी के प्रवाह में बह रही है प्रकृति।
अमृता जी दिल बाग -बाग हो गया |आपकी कलम में वाकई अमृत है |
ReplyDeleteamritmayee kavita
ReplyDeleteमौसम ही ऐसा है :)
ReplyDeleteवाह-वाह बसंत की बयार का असर पूरी तरह शब्दों पर भी हो ही गया
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर बसंत की बयार.
ReplyDeleteवसंत में सभी का मन उल्लसित रहता है ........अनुपम प्रस्तुति............
ReplyDeleteकिससे पूछें.....कैसे पूछें....
ReplyDeleteसभी तो बावले हुए जा रहे हैं.......
:-)
अनु
अद्भुत भाव ....गहराते रंग शब्दों के ...बसंती अमृतमई रचना ....
ReplyDeleteपंखुड़ियों से पथ बुहरे हुए हैं, बसंत अनुभव सुनहरे हैं।
ReplyDeleteजरा पूछना तो
ReplyDeleteहर सुबह के इनकार से
कि रात की बेचैन सिलवटों पर
क्यों है सतरंगी सपन खुमारी
कुछ कहती आँखें पर पलकें हैं भारी
और होंठों पर जो धरी उंगलियाँ
हौले-हौले हलचल करके
क्यों भोलेपन को भड़का जाती है ?
कविता पड़ने की समाप्ति के बाद ....कविता के समाप्त होना अच्छा नहीं लगता है .ऐसा लगता है की कोई धुन सपने में ले जाकर कहीं गूम गयी हो ....भाव की इस धरातल से लौटना अप्रिय सा लगता है.बहुत ही मधुर भाव sampresion . एक यादगार काब्य .बधाई.
ज़रा बताना तो शब्दों में इतना जादू कैसे आता है, क्या ऋतुराज ने सारे बासंती रंग आपकी कलम से बरसा दिए हैं ...मनभावन रचना... बहुत-बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
सिल्ली सांवली सी शबनमी हवा में सफ़ेद दुपट्टे पर रुई के फाहों जैसी गुलाबी धूप ...जरा ...
ReplyDelete्बासंती बयार का पूरा असर छाया है …………बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अलंकारिक प्रस्तुति !
ReplyDeleteवाह वाह ...बहुत सुन्दर ...बेहद खूबसूरत चित्र तैयार किया है शब्दों के द्वारा।
ReplyDeleteफगुनाई की सुंदर छटा बिखेरती बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteबसंत के कितने रंग........
ReplyDeleteजरा पूछना तो
ReplyDeleteहर साँझ के मनुहार से
कि किस मौन पाहुन से
मोरपंखी चाह लगा लेती है
चौंक-चौंक कर कभी चौक पूरती
कभी नये-नये बंदनवार बनाती
और सौंधी-सौंधी धानी पीर लिए
किसका बाट जोहती जाती है ?
सुन्दर रचना
साभार !
जरा पूछना तो मेरे मन से, इस बासंती असर ने कितना बावला कर दिया है इसे. :) बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवसंत का ही नाम आएगा , पूछना क्या है !
ReplyDeleteमीठी - मधुर कविता !
वासंतिक छटा में डूबा परिवेश .....बहुत सुंदर
ReplyDeleteकविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है
ReplyDeleteहर शब्द शब्द की अपनी अपनी पहचान बहुत खूब
बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत प्यारी कोमल कविता. वसंत की मदमस्त फिज़ा... बधाई.
ReplyDeleteअंतस की बे -चैनी ,मन की बे -कलि ,प्रेमी के इंतज़ार का प्रकृति के मिस बेहतरीन चित्रण .प्रियतमा के मन का रचाव मुखरित है इस रचना में .मन प्रेम आप्लावित हो तो प्राकृति के तमाम उपादान भी बे
ReplyDelete-करारी में दीखते हैं .
बड़ी मुद्दत से दिल की बे -करारी को करार आया है ,
के जिस ज़ालिम ने तड़पाया उसी पे मुझको प्यार आया .
शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .कभी राम राम भाई पे भी पधारिये -
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ शुक्रवार, 22 फरवरी 2013 The boy who has eaten his own bedroom http://veerubhai1947.blogspot.in/
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वसन्त आया है..जर्रा जर्रा कुदरत का महकाया है..इस बासंती मौसम का जादू सर चढ़ कर बोलता है और रची जाती है इतनी मधुर रचना..आभार इस सुंदर कृति के लिए..
ReplyDeleteये मौसम ही कुछ ऐसा है कि ढेर सारे प्रश्न मन में उठते हैं ... और इनका समाधान पाने को मन बेचैन भी रहता है।
ReplyDeleteअद्भुत......सुन्दर.....मनमोहक.....
ReplyDeleteजरा पूछना तो
ReplyDeleteउन तितलियों के तकरार से
कि चुपके-से पनघट पर
जो गुलाबी धुप उतर आती है
तो ऐसा क्या कर जाती है कि
चुटकी में ही उनकी चुगली
क्यों उन्हें ही लड़ा देती है ?
भावपूर्ण अभिव्यक्ति। धन्यवाद।
रचना अच्छी लगी !
ReplyDeleteधूप और खुश्बू ,धुप और खुशबू की जगह लिखने से कहीं भी मीटर भंग नहीं होता .कृपया गौर करें ,समझें, मुनासिब तो .शुक्रिया आपकी इस खूब सूरत अनुभूत रचना का जो बेहद भाव सांद्रता लिए है .आपकी राम राम भाई पर टिपण्णी का .
ReplyDeleteअहा! मधुमय गीत , भिगो गया तन मन
ReplyDeleteजरा पूछना तो
ReplyDeleteउन तितलियों के तकरार से
कि चुपके-से पनघट पर
जो गुलाबी धुप उतर आती है
तो ऐसा क्या कर जाती है कि
चुटकी में ही उनकी चुगली
क्यों उन्हें ही लड़ा देती है ?
इस बासंती बयार ने वाकई पूछने पर मजबूर कर दिया
बहुत ही बढि़या
ReplyDeleteसारी पंक्तियॉं अच्छी हैं
Very Nice
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