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Wednesday, February 13, 2013

इतना न पुकार ...


इतना न पुकार , मुझे
ओ! पुकारती हुई पुकार ...

मुझ अनाधार को देकर
इक अनहोता-सा अनुराग-भार
अनबोले हिया में क्यों ?
मचाया है हाही हाहाकार
अनमना ये मन है
विचित्र-सा हर क्षण है
और है विस्मित क्षितिज तक
केवल वेदना-विस्तार...

इतना न पुकार , मुझे
ओ! पुकारती हुई पुकार...

अंधियारी-सी सींखचों में
अनजाने ही घूम रहा
अबतक मेरा सहज संसार
मुंदी पलकों पर पग-पग कर
पड़ती रही तेरी चमकार
चट चिराग जलाकर क्यों ?
तुमने खोल दिया
अपना निश्छल नेह-द्वार...

इतना न पुकार , मुझे
ओ! पुकारती हुई पुकार...

प्रतिपल छीजती जाती
जो है ये जीवन-डोर
मैं न जानूं खींचे क्यों ?
मुझे बस तेरी ही ओर
जो नहीं है , शेष कुछ भी
कैसे कहूँ ? वही मेरी निधि
मैं अभिसारिका तेरी
अभिसार कर , चाहे जिस विधि
मंजुल मुख फेर , मत कर
तू , मुझसे निठुर व्यवहार...

इतना न पुकार , मुझे
ओ! पुकारती हुई पुकार...

सब कहते हैं कि
ये बिछोह की पीड़ा ही
प्रेम की सतत प्रतीति है
और विषाद की रीती घड़ियों में
अनबुझ मिलन की ही रीति है
ये चिर प्यास भी है तुझसे
संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
तू भी , बासंतिक बावरा सा
बरसा मुझपर अपना रसधार...

इतना न पुकार , मुझे
ओ! पुकारती हुई पुकार .

30 comments:

  1. बासंती अट्टालिका पर मनभावन शब्‍द-संसार।

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  2. ...................................................................................

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  3. वाह...
    मैं अभिसारिका तेरी
    अभिसार कर , चाहे जिस विधि
    मंजुल मुख फेर , मत कर
    तू , मुझसे निठुर व्यवहार...
    बहुत सुन्दर!!!

    अनु

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  4. बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति ।

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  5. आपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।

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  6. सब कहते हैं कि
    ये बिछोह की पीड़ा ही
    प्रेम की सतत प्रतीति है
    और विषाद की रीती घड़ियों में
    अनबुझ मिलन की ही रीति है
    ये चिर प्यास भी है तुझसे
    संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
    तू भी , बासंतिक बावरा सा
    बरसा मुझपर अपना रसधार...!

    बहुत सुन्दर...

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  7. ये चिर प्यास भी है तुझसे
    संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
    तू भी , बासंतिक बावरा सा
    बरसा मुझपर अपना रसधार...
    बहुत उम्दा पन्तियाँ,,,,,

    RECENT POST... नवगीत,

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  8. वाह ..... मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति..

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  9. वाह आ. अमृता तन्मय जी ,
    मानसी वर्णित, मीत से नीत लगाना सरस लाक्षिक श्रंगारिता
    साधूवाद प्रेषित करता हूँ ।
    अपने शब्दों में कहूं तो ....
    puchhkar aae, wo sapnon mein
    apnon ki tarah,
    jo kholte the darwaaje kabhi
    Aznabiyon ki tarah..... By ~Pradeep Yadav~

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  10. ..जब विस्मित क्षितिज के पार अनबोले हिया में मन अनमना हो जाए जब प्रतिपल छीजते वक़्त में पीड़ा शेष रह जाए ... तब इतनी सी पुकार.. इतनी सी पुकार ...

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  11. अमृता , बेहद खूबसूरत अनुभूति और उसका विस्तृत बयान.....बिछोह की पीड़ा घनीभूत हो बरस रही....मन धरती हो क्षितिज को तरस रही.....ये किसने है पुकारा मुझे की मन खिल सा गया है.....मेरी साँसों के स्पंदन से तेरी सांसें भी सरस हुयी....

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  12. अंधियारी-सी सींखचों में
    अनजाने ही घूम रहा
    अबतक मेरा सहज संसार
    मुंदी पलकों पर पग-पग कर
    पड़ती रही तेरी चमकार
    चट चिराग जलाकर क्यों ?
    तुमने खोल दिया
    अपना निश्छल नेह-द्वार...

    सुंदर भाव, अच्छी रचना
    बहुत बढिया

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  13. सब कहते हैं कि
    ये बिछोह की पीड़ा ही
    प्रेम की सतत प्रतीति है
    और विषाद की रीती घड़ियों में
    अनबुझ मिलन की ही रीति है
    ये चिर प्यास भी है तुझसे
    संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
    प्रेम का सारा निचोड़ इन पंक्तियों में कह दिया आपने ! मन को भिगोती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना !

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  14. बेहद खूबसूरत अनुभूति,मन के भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
    मेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
    "ब्लॉग कलश"

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  15. इस पुकार को पुकारता है सारा जगत..इस वियोग को गले लगाना चाहे हर प्रेमी..प्रेम की गहनता से उपजी सुंदर रचना..

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  16. सब कहते हैं कि
    ये बिछोह की पीड़ा ही
    प्रेम की सतत प्रतीति है
    और विषाद की रीती घड़ियों में
    अनबुझ मिलन की ही रीति है

    ..........हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  17. इतना न पुकार , मुझे
    ओ! पुकारती हुई पुकार .
    इस पुकार पर हर भाव नि:शब्‍द हो गया ... अनुपम प्रस्‍तुति

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  18. मन में हलचल,
    संग बहा चल।

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  19. प्रतिपल छीजती जाती
    जो है ये जीवन-डोर
    मैं न जानूं खींचे क्यों ?
    मुझे बस तेरी ही ओर
    जो नहीं है , शेष कुछ भी
    कैसे कहूँ ? वही मेरी निधि
    मैं अभिसारिका तेरी
    अभिसार कर , चाहे जिस विधि
    मंजुल मुख फेर , मत कर
    तू , मुझसे निठुर व्यवहार...


    खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  20. सौंदर्य विरह का, दर्प अनुराग का,
    कल्पना अभिसार, कातर मिलन स्वर,
    पुकार का अधिकार ....
    सुन्दर शब्द मंजूषा है आ. अमृता जी .... साधो ।

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  21. बसंत आ गया अब तो .......अनंग अब अंग अंग को उद्वेलित करेगा - क्या विरही क्या संयोगी?

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  22. सब कहते हैं कि
    ये बिछोह की पीड़ा ही
    प्रेम की सतत प्रतीति है
    और विषाद की रीती घड़ियों में
    अनबुझ मिलन की ही रीति है
    ये चिर प्यास भी है तुझसे
    संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
    तू भी , बासंतिक बावरा सा
    बरसा मुझपर अपना रसधार...

    इतना न पुकार , मुझे
    ओ! पुकारती हुई पुकार .

    बहुत ही सुन्दर विरह के रंग में रंगी रचना

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  23. चट चिराग जलाकर क्यों ?
    तुमने खोल दिया
    अपना निश्छल नेह-द्वार...

    इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा ....

    ना पुकार

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  24. बढ़िया निश्छल रचना वेदना की गुहार लिए ,अभिसार लिए पूर्ण समर्पण का ....

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  25. जो नहीं है , शेष कुछ भी
    कैसे कहूँ ? वही मेरी निधि
    मैं अभिसारिका तेरी
    अभिसार कर , चाहे जिस विधि
    मंजुल मुख फेर , मत कर
    तू , मुझसे निठुर व्यवहार...

    भाव, शब्द, प्रवाह सभीकुछ अनुपम....

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  26. ये बिछोह की पीड़ा ही
    प्रेम की सतत प्रतीति है
    और विषाद की रीती घड़ियों में
    अनबुझ मिलन की ही रीति है
    ये चिर प्यास भी है तुझसे
    संतृप्ति रसमय भी है तुझसे
    तू भी , बासंतिक बावरा सा
    बरसा मुझपर अपना रसधार


    अनुपम अनुपम अनुपम

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  27. आपकी ये कविता पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
    प्रेम की सच्ची पुकार है ये.

    विजय
    www.poemsofvijay.blogspot.in

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  28. खूबसूरत अभिव्यक्ति.

    www.darshanjangra.blogspot.com

    www.premkephool.blogspot.com

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