मेरे लिए मेरी हर रात महाभिनिष्क्रमण है
और मेरा हर दिन महापरिनिर्वाण है
स्वअर्थ में अपना दीप मैं स्वयं हूँ
बस इतना ही ध्यान है , इतना ही भान है ...
जहाँ सस्ती से सस्ती बोली में बिकती स्वतंत्रता है
चारों ओर एक गहन संघर्ष है , खींचातानी है
वहाँ जीवन में स्वयं का बड़ा भाव भी बड़ा न्यून है
और परतंत्रता में ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है ....
कल तक उधार में जो मैंने लिया था
वो बहुत ही सुंदर शब्दों का भरा- पूरा संसार है
पर अब हर क्षण अपने ही स्वार्थ में ही सधना
मेरे मौलिक होने का मूल आधार है ...
दूसरों को कारण बना स्वयं विचलित होना
अब मेरे लिए अहितकारी है , अशुभ है
आत्मानुभूति और आत्माभिमान के आलोक में रहना
परम दुष्कर तो है पर मेरे लिए शुभ है ....
केवल अपने अर्थ की महत्ता को समझकर ही
सहज रूप से स्वयं के सत्य को पाना है
उसी स्वार्थ में ही तो परार्थ का प्रज्वलित दीप है
अपना दीप स्वयं होकर ही मैंने जाना है .
*** अपना अर्थ स्वयं पाना है ***
*** अपना दीप स्वयं जलाना है ***
*** अपना बुद्ध स्वयं जगाना है ***
*** शुभकामनाएँ ***
और मेरा हर दिन महापरिनिर्वाण है
स्वअर्थ में अपना दीप मैं स्वयं हूँ
बस इतना ही ध्यान है , इतना ही भान है ...
जहाँ सस्ती से सस्ती बोली में बिकती स्वतंत्रता है
चारों ओर एक गहन संघर्ष है , खींचातानी है
वहाँ जीवन में स्वयं का बड़ा भाव भी बड़ा न्यून है
और परतंत्रता में ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है ....
कल तक उधार में जो मैंने लिया था
वो बहुत ही सुंदर शब्दों का भरा- पूरा संसार है
पर अब हर क्षण अपने ही स्वार्थ में ही सधना
मेरे मौलिक होने का मूल आधार है ...
दूसरों को कारण बना स्वयं विचलित होना
अब मेरे लिए अहितकारी है , अशुभ है
आत्मानुभूति और आत्माभिमान के आलोक में रहना
परम दुष्कर तो है पर मेरे लिए शुभ है ....
केवल अपने अर्थ की महत्ता को समझकर ही
सहज रूप से स्वयं के सत्य को पाना है
उसी स्वार्थ में ही तो परार्थ का प्रज्वलित दीप है
अपना दीप स्वयं होकर ही मैंने जाना है .
*** अपना अर्थ स्वयं पाना है ***
*** अपना दीप स्वयं जलाना है ***
*** अपना बुद्ध स्वयं जगाना है ***
*** शुभकामनाएँ ***