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Tuesday, August 15, 2017

शाश्वत झूठ ........

हर पल
मैं अपने गर्भ में ही
अपने अजन्मे कृष्ण की
करती रहती हूँ
भ्रूण - हत्या
तब तो
सदियों - सदियों से
सजा हुआ है
मेरा कुरुक्षेत्र
हजारों - हजारों युद्ध - पंक्तियाँ
आपस में बँधी खड़ी हैं
लाखों - लाख संघर्ष
चलता ही जा रहा है
और मेरा
हिंसक अर्जुन
बिना हिचक के ही
करता जा रहा है
हत्या पर हत्या
क्योंकि
वह चाहता है
शवों के ऊपर रखे
सारे राज सिंहासनों पर
अपने गांडिव को सजाना
और महाभारत को ही
महागीता बनाना
इसलिए
वह कभी
थकता नहीं है
रुकता नहीं है
हारता नहीं है
पर उसकी जीत के लिए
मेरे अजन्मे कृष्ण को
हर पल मरना पड़ता है
मेरे ही गर्भ में .......
मैं अपने इस
शाश्वत झूठ को
बड़ी सच्चाई से सबको
बताती रहती हूँ
कि मेरा कृष्ण
कभी जनमता ही नहीं है
और मैं
झूठी प्रसव - पीड़ा लिए
प्रतिपल यूँ ही
छटपटाती रहती हूँ
कि मेरा कृष्ण
कभी जनमता ही नहीं है .

Friday, August 11, 2017

काफी हो ..........

जितने मिले हो
मेरे लिए , तुम उतने ही काफी हो
ख्वाहिशें जो गुस्ताखियां करे तो
तहेदिल से मुझे , शर्तिया माफी हो

बामुश्किल से मैंने
तूफां का दिल , बेइजाज़त से हिलाया है
कागज की किश्ती ही सही मगर
बड़ी हिम्मत से , उसी में चलाया है

जरूरी नहीं कि , जो मैंने कहा
तेरे दिल में भी वही बात हो
पर मेरी तकरीर की लज्जत में
मेरे वजूद के जज़्ब जज़्बात हो

तेरे चंद लम्हों की सौगात में मैंने
इत्तफ़ाक़न इल्लती सौदाई को जाना है
गर इरादतन खुदकुशी कर भी लूं तो
ये मेरे शौक का ही शुकराना है

सोचती हूँ , कहीं तो तेरे दिल से मिल जाए
ये सहराये - जिंदगी के गुमशुदा से रास्ते
तो पूरी कायनात के दामन को निचोड़ दूँ
बस तेरी बदमस्त बंदगी के वास्ते .

Thursday, August 3, 2017

सच्चाई .........

मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बहुत - बहुत रूप हैं , बड़े - बड़े भेद हैं
और जो - जो कान उसे सुन पाते हैं
बेशक , उनमें भी बहुत बड़े - बड़े छेद हैं

मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़ी - बड़ी समानताएं हैं , बड़ी - बड़ी विपरितताएं हैं
और इनके बीच मजे ले - लेकर झूलती हुई
सुनने वालों की अपनी - अपनी चिंताएँ हैं

मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़े - बड़े संवाद हैं , बड़े - बड़े विवाद हैं
जिसमें कुछ कहकर तो कुछ चुप - सी
वही ओल - झोल वाली फरियाद है

मेरी अंतरात्मा की आवाज से
खुल - खुल कर पलटी मारती हुई
एक - सी ही जानी - पहचानी परिभाषा है
उसकी हाज़िर - जवाबी का क्या कहना ?
वह पल में तोला तो पल में ही माशा है

मेरी अंतरात्मा की आवाज में
सामयिक सिधाई है , दार्शनिक ढिठाई है
उसकी ओखली में , जो - जो बीत जाता है
उसी की रह - रह कर ,  कुटाई पर कुटाई है

मेरी अंतरात्मा की आवाज में
एक - सा ही छलावा है , एक - सा ही (अ) पछतावा है
उसकी गलती मानने के हजार बहानों में भी
एक - सा ही ढल - मल दावा है

मेरी अंतरात्मा की आवाज
अपने - आप में ही इतनी है लवलीन
तब तो अन्य आत्माओं की आवाज को
लपलपा कर लेती है छीन

अतः हे मेरी अंतरात्मा की आवाज !
जबतक तुम संपूर्ण ललित - कलाओं से लबालब न हुई तो
तुम्हारी कोई भी ललकित आवाज , आवाज नहीं होगी
और तुम में लसलसाती हुई सच्चाई नहीं हुई तो
तुमसे गिरती हुई कोई ग़रज़ी गाज , गाज नहीं होगी .