मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बहुत - बहुत रूप हैं , बड़े - बड़े भेद हैं
और जो - जो कान उसे सुन पाते हैं
बेशक , उनमें भी बहुत बड़े - बड़े छेद हैं
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़ी - बड़ी समानताएं हैं , बड़ी - बड़ी विपरितताएं हैं
और इनके बीच मजे ले - लेकर झूलती हुई
सुनने वालों की अपनी - अपनी चिंताएँ हैं
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़े - बड़े संवाद हैं , बड़े - बड़े विवाद हैं
जिसमें कुछ कहकर तो कुछ चुप - सी
वही ओल - झोल वाली फरियाद है
मेरी अंतरात्मा की आवाज से
खुल - खुल कर पलटी मारती हुई
एक - सी ही जानी - पहचानी परिभाषा है
उसकी हाज़िर - जवाबी का क्या कहना ?
वह पल में तोला तो पल में ही माशा है
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
सामयिक सिधाई है , दार्शनिक ढिठाई है
उसकी ओखली में , जो - जो बीत जाता है
उसी की रह - रह कर , कुटाई पर कुटाई है
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
एक - सा ही छलावा है , एक - सा ही (अ) पछतावा है
उसकी गलती मानने के हजार बहानों में भी
एक - सा ही ढल - मल दावा है
मेरी अंतरात्मा की आवाज
अपने - आप में ही इतनी है लवलीन
तब तो अन्य आत्माओं की आवाज को
लपलपा कर लेती है छीन
अतः हे मेरी अंतरात्मा की आवाज !
जबतक तुम संपूर्ण ललित - कलाओं से लबालब न हुई तो
तुम्हारी कोई भी ललकित आवाज , आवाज नहीं होगी
और तुम में लसलसाती हुई सच्चाई नहीं हुई तो
तुमसे गिरती हुई कोई ग़रज़ी गाज , गाज नहीं होगी .
बहुत - बहुत रूप हैं , बड़े - बड़े भेद हैं
और जो - जो कान उसे सुन पाते हैं
बेशक , उनमें भी बहुत बड़े - बड़े छेद हैं
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़ी - बड़ी समानताएं हैं , बड़ी - बड़ी विपरितताएं हैं
और इनके बीच मजे ले - लेकर झूलती हुई
सुनने वालों की अपनी - अपनी चिंताएँ हैं
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बड़े - बड़े संवाद हैं , बड़े - बड़े विवाद हैं
जिसमें कुछ कहकर तो कुछ चुप - सी
वही ओल - झोल वाली फरियाद है
मेरी अंतरात्मा की आवाज से
खुल - खुल कर पलटी मारती हुई
एक - सी ही जानी - पहचानी परिभाषा है
उसकी हाज़िर - जवाबी का क्या कहना ?
वह पल में तोला तो पल में ही माशा है
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
सामयिक सिधाई है , दार्शनिक ढिठाई है
उसकी ओखली में , जो - जो बीत जाता है
उसी की रह - रह कर , कुटाई पर कुटाई है
मेरी अंतरात्मा की आवाज में
एक - सा ही छलावा है , एक - सा ही (अ) पछतावा है
उसकी गलती मानने के हजार बहानों में भी
एक - सा ही ढल - मल दावा है
मेरी अंतरात्मा की आवाज
अपने - आप में ही इतनी है लवलीन
तब तो अन्य आत्माओं की आवाज को
लपलपा कर लेती है छीन
अतः हे मेरी अंतरात्मा की आवाज !
जबतक तुम संपूर्ण ललित - कलाओं से लबालब न हुई तो
तुम्हारी कोई भी ललकित आवाज , आवाज नहीं होगी
और तुम में लसलसाती हुई सच्चाई नहीं हुई तो
तुमसे गिरती हुई कोई ग़रज़ी गाज , गाज नहीं होगी .
वाह।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअंतरात्मा की आवाज़ के बहाने आपने अंतरात्मा का नक्शा भी खींच दिया. यह अंतरात्मा भी अपने ही अंतर्विरोधों से भरी हुई खुद से जूझ रही होती है. इसके द्वारा लिए गए निर्णय इतने सीधे नहीं होते जितने लगते हैं. अंतरात्मा की आवाज़ हमारी अपनी इच्छाओं की ही 'घनीभूत फ़ुल एंड फ़ाइनल अभिव्यक्ति' होती है. ऐसे विषय को कविता में कह कर आपने उसे कुछ आसान किया है और कुछ कठिन बनाया है. यानि विषय कठिन था कविता ने उसे आसान बना दिया.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-08-2017) को "लड़ाई अभिमान की" (चर्चा अंक 2687) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! अंतरात्मा की आवाज में ही तो समाया है पूरा ब्रह्मांड ! अकथ है कथा इसकी कह कह कर भी शेष रह जाती है...
ReplyDeleteआज कल अंतरात्मा की आवाज़ हमारे देश के नेता बहुत सुनने लगे हैं काश आपकी कविता की अंतिम पंक्तियाँ उन तक पहुँच पातीं .
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
अंतरात्मा की आवाज़ कहाँ रह गयी है आज निष्पाप, निष्पक्ष, निर्मल और सत्य ...बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअन्तरआत्मा जिन व्याधियों, विवशताओं, नकारात्मकताओं और दार्शनिक विसंगतियों से जूझती है और तब अन्तरात्मा अन्तरात्मा नहीं रहती उन परिस्थितियों की पीड़ा को आपने अच्छे कविता विधान से उकेरा है। अन्तरात्मा को क्या कुछ विचलित नहीं करता, यह सब आप ने सुन्दरता और सरलता से लिखा है। कभी लगता है कि भला अन्तरात्मा का इस युग में कोई अस्तित्व बचा भी है कि नहीं।
ReplyDeleteअपने - आप में ही इतनी है लवलीन।।।
ReplyDeleteसंवाद और विवाद एक साथ....