बसंत कियो जो हिय में बसेरा
आपुई मगन भयो मन मेरा
आओ पिय अब हमारे गाँव
बसंत को दियो अमरपुरी ठाँव
फिर कोंपलें फूट-फूट आई
फिर पत्तों ने पांजेब बजाई
झरत दसहुँ दिस मोती
मुट्ठी भर हुलास भयो होती
झीनी-झीनी परत प्रेम फुहार
चेति उड़ियो पंख पसार
कहा कहूँ इस देस की
प्रेम-रंग-रस ओढ़े भेस की
चहुंओर अमरित बूंद की आंच
सांच सांच सो सांच
जस पनिहारिन धरे सिर गागर
नैनन ठहरियो तो पेहि नागर
सब कहहिं प्रेम पंथ ऐसो अटपटो
तो पिय आओ , मोसे लिपटो
दांव ऐसो ही है दासि की
मद पिय करे सहज आसिकी
पिय मिलन की भई सब तैयारी
पीवत जो बसंतरस लगी खुमारी .
आपुई मगन भयो मन मेरा
आओ पिय अब हमारे गाँव
बसंत को दियो अमरपुरी ठाँव
फिर कोंपलें फूट-फूट आई
फिर पत्तों ने पांजेब बजाई
झरत दसहुँ दिस मोती
मुट्ठी भर हुलास भयो होती
झीनी-झीनी परत प्रेम फुहार
चेति उड़ियो पंख पसार
कहा कहूँ इस देस की
प्रेम-रंग-रस ओढ़े भेस की
चहुंओर अमरित बूंद की आंच
सांच सांच सो सांच
जस पनिहारिन धरे सिर गागर
नैनन ठहरियो तो पेहि नागर
सब कहहिं प्रेम पंथ ऐसो अटपटो
तो पिय आओ , मोसे लिपटो
दांव ऐसो ही है दासि की
मद पिय करे सहज आसिकी
पिय मिलन की भई सब तैयारी
पीवत जो बसंतरस लगी खुमारी .