घनघोर बियाबान
घुप्प अँधेरा
घातक जीव-जन्तु
घड़ी-घड़ी घुटन से
घिघियाती हुई........
मैं -एक ठूँठ
अपने आखिरी पत्ते को
कसकर......पकड़ी हुई
पास पड़े एक
पत्थर को देखकर
मन-ही-मन
सोचती हुई कि--
कभी तो
किसी के पैर से छूकर
शापमुक्ति संभव है ....
पर मुझे तो
अपने उसी आखिरी
पत्ते के सहारे ही
वसंत की राह देखनी है
ताकि मैं फिर से
हरी -भरी हो सकूँ
उस बियाबान में भी
जिजीविषा से भरी हुई
विजिगीषा का
सन्देश देते हुए .........
जिजीविषा -अदम्य जीने की इक्क्षा
विजिगीषा -विजय पाने की इक्क्षा.