घनघोर बियाबान
घुप्प अँधेरा
घातक जीव-जन्तु
घड़ी-घड़ी घुटन से
घिघियाती हुई........
मैं -एक ठूँठ
अपने आखिरी पत्ते को
कसकर......पकड़ी हुई
पास पड़े एक
पत्थर को देखकर
मन-ही-मन
सोचती हुई कि--
कभी तो
किसी के पैर से छूकर
शापमुक्ति संभव है ....
पर मुझे तो
अपने उसी आखिरी
पत्ते के सहारे ही
वसंत की राह देखनी है
ताकि मैं फिर से
हरी -भरी हो सकूँ
उस बियाबान में भी
जिजीविषा से भरी हुई
विजिगीषा का
सन्देश देते हुए .........
जिजीविषा -अदम्य जीने की इक्क्षा
विजिगीषा -विजय पाने की इक्क्षा.
vijivisha ke liye jijivisha zaruri hai
ReplyDeleteअज्ञेय जी की "सोन मछली" नामक कविता याद दिला दी ...बहुत खूब लिखा है आपने ....जिजीविषा रहती जीवन में विजिगीषा के साथ ..सुंदर भाव सम्प्रेषण ...शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही सादगी से अपनी बात कहती हुई कविता.
ReplyDeleteसादर
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बापू! फिर से आ जाओ
अमृता जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......वाह...वाह....क्या बेहतरीन रचना है......कितने सुन्दर बिम्बों का इस्तेमाल किया है आपने......अन्दर तक झंकझोर देने वाले शब्दों का इस्तेमाल बखूबी किया है.......बहुत ही सुन्दर......शुभकामनायें|
bahut achchha likha hai aapne amrita ji............
ReplyDeletejo kabhi haar nahi maanta..jeet khud aa kar uske kadam chumti hai....
अमृता जी…
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी रचना। "विजिगीषा" का सन्देश देती हुई जीवट अभिव्यक्ति।
दो-एक संदेह आये मन में पढते समय…
"वसंत का राह देखना है"…… "वसंत की राह देखनी है" लिखा जाना था शायद।
"जन्तुयें"…… इसके प्रयोग के विषय में निश्चित नही हूँ पर शायद "जन्तु" दोनों वचनों (एक और बहु)में एक सा ही प्रयोग होता है।
सन्देह थे तो आपके समक्ष रख दिये, आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगी।
सादर!
अमृता जी , आप कैसे साधारण से साधारण शब्दों में इतना जान डाल देतीं हैं ...आपके कलम को दिल से सलाम ...बहुत अच्छी रचना ..
ReplyDeleteसुंदर सशक्त भावनात्मक कविता -
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी
आज आपको पहली बार पढने का मौका मिला...आपकी लेखनी ने बहुत प्रभावित किया है..बधाई स्वीकारें,...
ReplyDeleteनीरज
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत सशक्त भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteamruta ji
ReplyDeleteantim panktiyo tak aate aate yahi lagne laga tha ki meri hi man ki baatoko aapne apni kavita me daala hai ... hamesha ki tarah ..man me bas jaane wali rachna ....
सधे हुए शब्दों के साथ आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए सुन्दर कविता.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति .आप की कलम को सलाम
ReplyDeleteअमृता जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है जिजीविषा और विजिगीषा की... दो शब्दों ने अटकाव दिया है ... "जन्तुएं" नहीं जंतुओं होना चाहिए जंतु का बहु वचन शायद .. और वसंत कि राह ..या वसंत का रास्ता ... यहाँ लिंग दोष लग रहा है... एक बार देखिएगा
..विजिगीषा का संदेश तो आपने दे दिया।
ReplyDelete.....बहुत खूब।
बहुत सुन्दर अमृता जी.....
ReplyDeleteबहुत ही आशावादी बात....
ये शब्द ही कितना सुन्दर है......जीना सिखाने वाली...
Shri Neeraj sir ke kahe ko mera maaniyega.
ReplyDeleteअच्छी इच्छा दृढ निश्चय के साथ ....... शुभकामनायें !!
ReplyDeleteयह आशापूर्ण भाव, सकारात्मक दृष्टिकोण तथा विजय से ओतप्रोत हृदय ही काल विजयी होता है। सकारात्मकता की एक सशक्त कविता।
ReplyDeleteबेहद उम्दा और सधी हुयी कविता ज़िन्दगी जीने को प्रेरित करती है। सुन्दर प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDeleteलाजवाब............बहुत ही सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत सशक्त भाव लिये हुये बहुत अच्छी रचना .. ।
ReplyDeleteसादगी के साथ अपनी बात कह दी आपने ...वीना जी , कुछ ऐसे ही पलों को मैंने भी लिखा है ..
ReplyDeleteतुम्हारा इन्तिज़ार अब तक हरा है
सूखी नहीं हैं टहनियां , कोई अब तक खड़ा है ....
सुन्दर कविता,
ReplyDeleteसुन्दर कल्पना...
ati sundar ..
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कृति है ... आपकी भाषा और भाव दोनों की दाद देनी चाहिए ...
ahilya ka reference kai aur rachnaon se jodta hai,
ReplyDeletestri purush samvad ko ek feminine tone dete hoe femalecentric na banana ek uplabdhi hai.
badhia. likhti rahein
बहुत लाजवाब कविता,जीवन का सच और सार्थक सन्देश
ReplyDelete... ... ...
ReplyDeleteहर पत्ते के सहारे बसंत की राह देखना .... कमाल की आशावादी पंक्तियाँ हैं....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सकारात्मक रचना । बधाई स्वीकारे ।
ReplyDeleteFantastic.
ReplyDeleteCongratulations.
वाह ,जीवन की उत्फुल्लता से भरी अभिव्यक्ति -
ReplyDeleteआपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी। भाव एवं शिल्प दोनो ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteसशक्त रचना.
ReplyDeleteशीर्षक से ही आकर्षण हो जाता है इस कविता को पढ़ने का. 'आखिरी पत्ता' शब्द आते ही 'द लास्ट लीफ' कहानी का बिंब याद आता है.
ReplyDeleteअमृता जी ,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता लिखी है |
आपके ब्लॉग पर पहली बार आ कर और आपकी रचनाएं पढ़ कर बहुत प्रभावित हूँ |
bahut umda, khubsurat, aur shashakt:)
ReplyDeleteजिजीविषा रहती जीवन में विजिगीषा के साथ....
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति.
sundar rachna!!
ReplyDeleteआपकी ये कविता जब पढ़ रहा था उस समय घर पे ही था...बहन शादी के बाद पहली बार घर आई हुई थी...और माँ और बहन दोनों को ये कविता सुनाया था मैंने पढ़ के...
ReplyDeleteदोनों ने बहुत तारीफ़ की.
(ये अलग बात है की बहन को समझाना पड़ा)
वैसे आप फेमस हो गयीं हैं मेरे बहन और मेरी माँ के बीच(आपको तो कारण पता ही होगा न ;) )
Jijiwisha aur Vijigisha dono ke bina jeevan bilkul nirarthak hai...basant ka intezaar kaun nahi karta par ek thoonth ko pakar apni shapmukti ka intezaar wahi kar sakta jiski jijiwisha ke garv mein vijigisha ankurit ho rahi ho...
ReplyDeleteAdbhut rachna...bahut bahut shubhkamnayen...
आपके शब्द जादू करते हैं, बहुत अच्छा लिखती हैं आप!!
ReplyDeleteसुन्दर कविता, सम्बल देती हुई...