मुई यादें हमेशा
पीठ पीछे करती हैं वार....
कई-कई तीर बिंध जाते हैं
छाती में और
उसके अन्दर का यन्त्र
कुछ पल के लिए
टीस के मारे
अपना काम भूल जाता है...
अतीत के चाक पर
समय बेतरतीब नाचने लगता है
घटनाएँ दर्शक बन
अगली पंक्ति में बैठने को
करने लगती हैं मारामारी
कुछ दबंग यादें
अपना रौब दिखाकर
चाक के बीचो-बीच
बैठ जाती हैं
जहाँ से कोई भी
माई का लाल उठा न पाए...
उसकी खुशामद में
दासानुदास बन जाते हैं
सोच के यन्त्र
अब चढावा चढ़ाओ
सारी सोच का
तब तक चढाते रहो
जब तक वे खुश न हों ...
आत्म शोषण का
एक रोमांचक खेल
भावनाएं एक अति से
दूसरे अति पर कूदती हुई
हम निरीह होकर
सिर्फ देखते रहते हैं....
दबंग यादें -इतनी बाहुबली कि
अतीत को भी
वर्तमान बनाने का
दम- ख़म रखती हैं....
और हम
उसी यंत्रणा-काल जनित
सुख-दुःख के भंवर में
उलझते चले जाते हैं .
आइये ...इस बसंती -बयार में कुछ मिजाज़ बदला जाये ......................
पीठ पीछे करती हैं वार....
कई-कई तीर बिंध जाते हैं
छाती में और
उसके अन्दर का यन्त्र
कुछ पल के लिए
टीस के मारे
अपना काम भूल जाता है...
अतीत के चाक पर
समय बेतरतीब नाचने लगता है
घटनाएँ दर्शक बन
अगली पंक्ति में बैठने को
करने लगती हैं मारामारी
कुछ दबंग यादें
अपना रौब दिखाकर
चाक के बीचो-बीच
बैठ जाती हैं
जहाँ से कोई भी
माई का लाल उठा न पाए...
उसकी खुशामद में
दासानुदास बन जाते हैं
सोच के यन्त्र
अब चढावा चढ़ाओ
सारी सोच का
तब तक चढाते रहो
जब तक वे खुश न हों ...
आत्म शोषण का
एक रोमांचक खेल
भावनाएं एक अति से
दूसरे अति पर कूदती हुई
हम निरीह होकर
सिर्फ देखते रहते हैं....
दबंग यादें -इतनी बाहुबली कि
अतीत को भी
वर्तमान बनाने का
दम- ख़म रखती हैं....
और हम
उसी यंत्रणा-काल जनित
सुख-दुःख के भंवर में
उलझते चले जाते हैं .
आइये ...इस बसंती -बयार में कुछ मिजाज़ बदला जाये ......................
अमृता जी
ReplyDeleteयादें भी क्या रंग जमाती हैं , आपने बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त किया है ..एक- एक शब्द भाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम, सिर्फ इतना कहना है ..यादें- यादें ही होती हैं बस .....सुंदर रचना
दबंग यादो का बहुत ही सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteआ गई मिजाज़ बदलने ... और इस रचना पर बस फिर यही कहना है, इसे परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक के साथ rasprabha@gmail.com पर भेज दें वटवृक्ष के लिए ...
ReplyDeleteaccha hai. sundar hai.....
ReplyDeleteoh.. basant aa chuka hai.. yaad hi nahi tha.
ek purana mausam lauta...... yaad bhari purwai bhi....
yaad dilane ke liye dil se thanx....
अमृता जी,
ReplyDeleteगहन चिंतन.....बहुत सुन्दर.....कमबख्त यादें......अतीत को भुला देना ही बेहतर है....ये वो कागज़ है जिसपर लिखा जा चुका है.....और उसे अनलिखा करने का कोई उपाय संभव नहीं.......बहुत ही सुन्दर रचना.....शुभकामनायें|
यादों का यह 'दबंग' रूप बहुत ही अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग भी बहुत अच्छा है.
सादर
amrita ji...............main aapki kavitaaon ki taareef nahi kar sakta...............asamartha hoon..
ReplyDeletekaise likhti hain aap itni achchhi kavitaaein..........mujhe bhi sikhaiyega?
अमृता जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
दबंग यादो का आपने बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त किया है
बहुत ही बढ़िया चित्रण.
ReplyDeleteनिष्ठुर होती हैं यादें.
शुभ कामनाएं .
बहुत खूब अमृता जी… मिज़ाज़ बदला और खूब बदला। बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteयादें हैं तो सब है, पर उनका होना भी कष्टप्रद ही है, अच्छा लगा इस कविता को पढना
ReplyDeleteदबंग यादें ऐसी ही हैं.....किसी की नहीं सुनते.....बढ़िया लिखा....
ReplyDeleteसरस्वती वन्दना में आपका स्वागत है....
यादें तो यादें हैं, कभी फूल बन जाती हैं तो कभी शूल।
ReplyDeleteयादों को आपने बाहुबली की संज्ञा दी है जो बल्किुल सटीक है।
अच्छी रचना।
yaden wo bhi dabang...:)
ReplyDeletehurr hurrr dabang.......:D
sach me dil ko chho gaya........
जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
ReplyDelete=====================
कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
==============================
शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
यादों पर किसका बस चलता है...खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteआप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
bahut sundar amrita ji yaaden se hi to dil ki ahmiyat hoti hai
ReplyDeleteबहुत अनूठी और अच्छी रचना है आपकी...सच यादें कभी कभी ऐसा डेरा जमा लेती हैं के मुश्किल हो जाती है...एक शेर याद आ गया सुनिए....
ReplyDeleteआया ही था ख्याल के आँखें छलक पड़ीं
आंसू किसी की याद से कितने करीब थे
नीरज
दबंग यादें ..क्या विशेषण दिया है. कैसे इतना सोच लेती हैं ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.शुभकामनायें
अमृता जी आपकी रचना गहरी संवेदनाओं के साथ-साथ संजीदगी से सराबोर हैं| यादों के बहाने आपने अनेक प्रकार के भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति देकर, सृजन के नये सौपान चढे हैं|
ReplyDeleteइस विधा को उत्तरोत्तर बढाती रहेंगी, ऐसी अपेक्षा है|
शुभकामनाओं सहित!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666
अमृता जी आप वाकई में कमल लिखती है , पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का सौभाग्य मिला, लेकिन आपकी शब्द रचना भी दबंग है , जैसे
ReplyDeleteसीने के अंदर का यंत्र ... !
आपने विचारों की प्रक्रिया का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है। कविता का शीर्षक बहुत आकर्षक है। साथ ही उसका कथ्य भी। यादों की दबंगई के आगे तो लेखक का मन भी मजदूर हो जाता है। यादों के निर्देशन पर वह अपनी कलम घसीटता है। जिससे रचनाएं उपजती हैं। उसके मनोजगत का चित्र शब्दों के रेखाचित्र में तब्दील हो जाता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteआजकल दबंग यादों का ही ज़माना है..
ReplyDeleteसब यादों में खोये रहते हैं और फिर तकनीकी उन्नत्ति ने यह और भी आसान कर दिया है..
यादें वाकई में दबंग होती हैं जो दबंग इंसान को भी अपंग बना जाती हैं..
बढ़िया पंक्तियाँ..
आभार
Khoobsoorat abhivyakti ..ye to sabki nabj pakad li hai ...
ReplyDeleteअरे वाह, क्या बात है। आपका यह अंदाज सचमुच औरों से जुदा है।
ReplyDelete---------
पुत्र प्राप्ति के उपय।
क्या आप मॉं बनने वाली हैं ?
यादों को नए तेवर में प्रस्तुत करने के लिए आप बधाई की पात्र हैं !
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
सुन्दर रचना. बहुत सादगी से अपनी बात कह दी आपने.
ReplyDeleteमेरी भी दो पंक्तियाँ हाज़िर हैं:-
कुछ यादें दुःख देती हैं तो कुछ सुख भी दे जाती हैं.
कुछ जीना दुश्वार करें तो कुछ जीना सिखलाती हैं.
दबंग यादों पर इस दबंग कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअच्छी यादों को याद रखिये,बुरी/ख़राब यादों को भुला दीजिये.
ReplyDeleteबसंत -पर्व आप सब को भी मंगलमय हो.
आपकी यादों के बहाने गमले का बसंत भी देखने को मिला.
दबंग कविता, बधाई.
ReplyDeleteसदाबहार देव आनंद
Yaadein hi to hain jo yaad dilati hain bure daur me ek wo bhi waqt tha.. :)
ReplyDeleteVery nice poem :)
कुछ दबंग यादें सचमुच पीछा नहीं छोड़तीं , लेकिन आते जाते वसंत जायका बदल जाते हैं।
ReplyDeleteयादें सचमुच दबंग होती हैं. बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteयादें तो यादें हैं !
ReplyDeleteये तो साथ ही रहती हैं !
पल मै गर ये दुःख देती हैं !
तो पल मैं खुश भी कर देती हैं !
यादों का सुन्दर चित्रण !
wahh....kya baat hai...yaadon ki dabangai ko kya khoob lafz diye hain....bohot khoob :)
ReplyDeleteसच कुछ यादे इतनी दबंग होती है कि जब जब याद आती है आँखो से आसुओं की नदी सी बह जाती है
ReplyDeletewaakai...yaaden baut dabang hoti hai....kuchh ma kuchh yaad dilaati rahti hai.....achchha bhi bura bhi.......
ReplyDeletesunder rachna....
शीर्षक अच्छा लगा...अब कल सुबह आराम से पढता हूँ इसे :)
ReplyDeleteयादों की दबंगई यूँ ही सालती रहती है। सही शब्द दिया आपने..दबंग यादें।
ReplyDeletebahut hi achcha likhi hain.
ReplyDeleteateet ke chaak par
ReplyDeletesamay brtarteeb nachne lagta hai.
bhavpoorn sundar prastuti.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletesundar abhivyakti...likhte rahiye aur padhate rahiye....mauka mile to padhte bhi rahiye...
ReplyDeleteआपके लिखने का अंदाज़ बहुत ही अच्छा लगा । कई बार हम यादों के दास होते हैं और कई बार यादें भी दासी बनती हैं , हम आने ही नहीं देते उन्हें ठीक से, लाख मिन्नतों के बाद भी , आई नहीं कि भगा दिया !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना !मेरी शुभकामनाएँ !
कभी-कभी यादों का दबंगपना वर्तमान पर भारी पड़ता है.
ReplyDeleteबस एक बयार ही होती है जो यादों को झाड़-पोंछ कर हमारे वर्तमान अपने स्वरूप मे ला देती है.
सच है कुछ यादें अपनी दबंगई दिखा जाती हैं ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह बढ़िया...
ReplyDeleteआपने दबंग कहा...मुझे तो बड़ी ढीठ लगती हैं यादें..
मार फटकार तिरस्कार कुछ भी करो....जाती नहीं..
कुछ दबंग यादें
ReplyDeleteअपना रौब दिखाकर
चाक के बीचो-बीच
बैठ जाती हैं
जहाँ से कोई भी
माई का लाल उठा न पाए...
ये यादें हैं दबंग क्या कीजे, है किनका जोर इन पर क्या केजी
सुन्दर रचना...