हिटलर जीन के
आदेश पर
प्रतिकृतिकरण
भ्रष्ट मानव का........
अनियंत्रित विभाजन
कैंसरयुक्त कोशिका की तरह
मेटास्टैसिस की
भरपूर क्षमता लिए हुए...
हाँ ! कुछ-कुछ
हवा से फैलने वाला
संक्रामक रोग सा.........
आह !
इस कलयुगी प्रयोगशाला में
परीक्षण मानव पर ही
जो छलांग लगा रहे हैं
विकास के चरम बिंदु से
पशु-रेखा के नीचे
और शुभचिंतक बन
स्वजनों को साथ लिए ...
वाह !
भौतिक उपभोग का
सबसे सरल तथा
उपयोगी विधि
आत्मा का घोटाला कर
सबकुछ अपने पेट में डालना
जो तोंद दिखने लग जाये तो
कालिख में मुँह छुपा लेना .......
हाय !
स्वपोषण के लिए
मानवता का ऐसा दोहन....
आज हर तरफ दिख रहा है
भ्रष्ट मानव का
प्राकृतिक क्लोनिंग
सौ फीसदी शुद्धता वाला......
परिणाम
बुरी तरह से घिरे हैं हम
व्यभिचार और भ्रष्टाचार के बीच
जो खुले बाज़ार में नंगा हो
दिखा रहा है अपना
विध्वंसक तांडव.
एक तड़क तड़का और .......
भ्रष्टाचार के गर्म तवे पर
कुछ ज्यादा रोटी सिंक रही है
लूट सको तो लूट लो भाई
यह मुफ्त में ही बिक रही है .
'बुरी तरह से घिरे हैं हम
ReplyDeleteव्यभिचार और भ्रष्टाचार के बीच
जो खुले बाज़ार में नंगा हो
दिखा रहा है अपना
विध्वंसक तांडव '
.......................................
नंगे यथार्थ का प्रभावशाली चित्रण ......सराहनीय
loot sako to loot lo... karara vyangya
ReplyDeleteकविता भाषा शिल्प और भंगिमा के स्तर पर समय के प्रवाह में मनुष्य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और सार्थक प्रस्तुति...भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन जो अपने बहाव में बहा ले जाता है..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबदकिस्मती हमारी ....
ReplyDeleteबड़ी सटीक और प्रासंगिक पंक्तियाँ..... अर्थपूर्ण व्यंगात्मक प्रस्तुति.....
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के गर्म तवे पर
ReplyDeleteकुछ ज्यादा रोटी सिंक रही है
लुट सको तो लुट लो भाई
यह मुफ्त में ही बिक रही है
बहुत सुन्दर
व्यंग में भी कमाल का शिल्प है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसामायिक, सुंदर शब्दों से सजी व्यंगात्मक प्रस्तुति. आज का हालाते बयां. बधाई हो अमृता जी.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.
ReplyDeleteबस आपका प्रोफाइल दोबारा देखना पडा.
भ्रष्ट मानव का
प्राकृतिक क्लोनिंग
बहुत खूब.
सलाम.
भ्रष्टाचार सर्वव्यापी है और है आज का ईश्वर । अच्छा लेखन, बेहद प्रभावशाली चित्रण । बधाई एवं शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआज की भ्रष्ट व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य है इस कविता में।
ReplyDeleteप्रतीकों का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है।
प्रभावशाली, यथार्थवादी कविता !
ReplyDeleteआत्मा का घोटाला...बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबड़ी ही आतंरिक झंकार लिए हुए है इस बार की आपकी कविता...ऐसे जैसे किसी ने चलती गाडी में अचानक ब्रेक लगा दिया हो और मैं नींद से जाग गया होऊं.
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति में 'लूट' की जगह 'लुट' हो गया है...शायद.....
नमस्कार.
बाप रे बाप...आपने तो मोर्चा खोल रखा है...
ReplyDeleteबहुत मस्त वाला कटाक्ष था...
:)
क्लोनिंग जैसे विषय पर आपकी कलम का चलना आपकी साहित्यिक सूझ बूझ का परिचायक है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है.आपने..
अति सुन्दर.....तीखा व्यंग्य.....मिर्ची की तरह....और तड़का....तो गज़ब था.....बहुत खूब|
ReplyDeleteपुन: पुन: चमत्कृत होता रहता हूँ यहाँ आ कर…। इतने गूढ विषयों पर भी आप कमाल के कथ्य ले आती हैं…… बहुत उम्दा रचना !
ReplyDeleteसटीक एवं उम्दा रचना...बेहतरीन.
ReplyDeletescience aur satire....ek saath...!!! behtareen nazm hai amrita ji....bohot khoob.
ReplyDeleteजो मुफ्त में बिक रही हो कहीं वहाँ भी कोई घोटाला परदे के पीछे ना हो ... इस सुन्दर रचना के लिए आभार ...
ReplyDeleteआपकी यह रचना मैंने चर्चामंच पर रखी है आज ... आप वहाँ और अमृतरस ब्लॉग में आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करें सादर
http://charchamanch.blogspot.com/2011/03/blog-post_04.html
http://amritras.blogspot.com
भ्रष्ट मानव की प्राकृतिक क्लोनिंग...
ReplyDeleteवैज्ञानिक शब्दों से सजी मगर काव्य में कोई रूकावट नहीं ..
सटीक !
bahut badiya katax....
ReplyDeleteअंतस को झकझोरती हुई रचना...बधाई।
ReplyDeleteवाह .. क्या बात कही है ..सच्ची
ReplyDeleteबहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खूब ... सच में मानव पैदाइशी भ्रष्टाचारी हो गया है ...
ReplyDeleteशाशाक्त रचना है ... अन्दर तक हिला देती है इंसान को ...
Bahut hi acchi kavita hai jo aaj ke pariprekshya me jeevant aur shashakt hai.
ReplyDeleteMaine bhshchar pe kafi pahle kuch likha tha...mere bheetar ki aag to shayad barf ho gayi apr aapke bheetar uss aag ko jalti dekh kafi prasann hua.
Ho Gayi hai peer parvat si pighalni chahiye,
iss himalay se koyi ganga nikailni chahiye.
Mere dil me na sahi Tere dil me hi sahi,
ho kahin bhi AAG par ye AAG jalni chahiye.
Dushyan ki in panktiyon ke saath aapko aur bhi likhne ko kah raha.likhte rahiye.
Ek Bihari ka Dusre bihari ko namaskar.
नए विचारों और नई शब्दावली से अनुप्राणित आप की कवितायें बहुत अच्छी लगी ।
ReplyDeleteआप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर
हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
ReplyDeleteमगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteनेह और अपनेपन के
इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.
आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
विज्ञान के बिम्बों से समाज के समकालीन विपर्ययों को उकेरती कविता : )
ReplyDeleteओह! विज्ञान के ऐसे शब्दों को सामाजिक परिपेक्ष्य से जिस खूबसूरती से जोडती हैं आप, वो अद्भुत है! निश्चित ही आपकी रूचि विज्ञान में भी उतनी ही गहरी है जिनती साहित्य में ... सादर नमनीय।
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