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Sunday, January 31, 2021

बसंत आने का लक्षण है ? .......

पात-पात फुदकन 

गात-गात मुदकन 


हर शोक का हरण है

बसंत आने का लक्षण है ?


बिखरी-बिखरी कस्तूरी

निखरी-निखरी अंकूरी


रस-रूप का उपकरण है

बसंत आने का लक्षण है ?


देहरी-देहरी सिंदुरी

रेहरी-रेहरी अबीरी


उल्लास का उच्चरण है

बसंत आने का लक्षण है ? 


सिकुड़ी-सकुड़ी साँसें

उखड़ी-उखड़ी टाँसें


बड़ा मीठा-सा मरण है

बसंत आने का लक्षण है ?


अंग-अंग गदरीला

संग-संग सुरभीला


बावले युगलकों का वरण है

बसंत आने का लक्षण है ?


ताल-ताल थिरकन

चाल-चाल बहकन


विगत का विस्मरण है

बसंत आने का लक्षण है ?


राग-राग मल्हार

फाग-फाग विहार


पुलक का प्रस्फुरण है

बसंत आने का लक्षण है ? 

Thursday, January 28, 2021

अनुरागी चित्त ही जाने .......

अनुरागी चित्त ही जाने 

अनुरागी चित्त की गति

श्रृंगारित स्नेहित स्पंदन  

मंद-मंद मद-मत्त मति


ऊब उदधि नैनों से उद्गत 

ॠतंभरा की ॠणि उदासी

मख-वेदी में मन का मरम

हिय बीच हिलग प्यासी


सोन चिरैया सुख सपना

विकट विदाही विकलता

कली से कमलिनी का क्लेश

क्षण-क्षण क्षत हो छलकता


रस रसिकों को ज्ञात कहाँ

कि रचना रक्त से रचती है

चिर-वियोगी चित्त की चिंता

प्रघोर पीड़ाओं से गुजरती है .

Sunday, January 24, 2021

पर काल से परे हो ......

जो तुम्हें रचे

कहो तो भी बचे

जो बचे उसे रचो

रचो तो मत बचो

स्वयं संकल्प हो

विपुल विकल्प हो

अनंत उद्गार हो

अनुभूति की टंकार हो

सबकी कसौटी पर खरी हो

सापेक्ष सत्य पर अड़ी हो

शब्द छोटे हो 

अर्थ बड़े हो

काल की बात हो

पर काल से परे हो .


Wednesday, January 20, 2021

अवशेष .....

मानसिक विलासिता के 

सोने के जंजीरों से 

सिर से पांव तक बंधे हुए 

अमरत्व को ओढ़कर

मरे हुए इतिहास के पन्नों पर 

अपने नाम के अवशेष से

चिपकने की बेचैनी

खुद को मुख्य धारा में

लाने की छटपटाहट

चाय की चुस्कियां

आराम कुर्सियां

वैचारिक उल्टियां

प्रायोजित संगोष्ठियां

मुक्ति की बातें

विद्रुप ठहाके

इन सबमें

एक दबी हुई हँसी 

मेरी भी है .

Thursday, January 14, 2021

पुनः प्रथम मिलन ..........

 इस शीत ॠतु में भी , स्वेद-कण ऐसे चमक रहे हैं

हृदय से ह्लादित होकर , रोम-रोम जैसे दमक रहे हैं

यह अद्भुत संयोग भी हो रहा है , हमारा ही आभारी 

और हमारी सुगंध से , गहक कर कैसे गमक रहे हैं


कैसे आवेशित हो गया ,  इस जगती का कण-कण

जैसे प्रचंड कंपन से ,  डोल गया हो यह धरती-गगन

साक्षी होकर सृष्टि भी ,  अचंभित हो गई होगी ऐसे

जैसे शिव-शक्ति का ही , हुआ हो पुनः प्रथम मिलन


अब आत्मस्मरण ओढ़ रहा है , क्षीणता का आवरण

तरंग हीन हो कर , कहीं और अंतर्धान हुआ यह मन 

विश्रांति की इस बेला में , वज्र नींद आकर कह रही 

संयोग श्रम से ही श्लथ हुआ है ,  तेरा तंद्रित यह तन


अब तो एक तरफ है , पलकों पर , नींद की प्रबलता

और दूसरी तरफ है , तुम्हारे इन हाथों की कोमलता

जो तुम ऐसे सहला-सहला कर , मुझे यूँ सुला रहे हो 

तो अधरों को भी रोको न , अब इतना क्यों है चूमता


माथे , आँखों , गालों , अधरों पर ,  तेरा स्मित चुंबन

इन लटों में , फिरती हुई सी उंगलियों की ये थिरकन

वो बैठी नींद भी आँखें खोलकर , देख रही है हमें ही

और मुस्कुराये जा रही है , पोरों की मीठी-सी थकन


छोड़ो भी , अब झूठ-मूठ का मुझे , यूँ ही न सहलाओ

बाहों में छुप कर सोने दो मुझे , औ' तुम भी सो जाओ

सरस , सम्मोहक सपने भी , सज-संवर कर आने को

प्रतीक्षारत हैं , उनका भी नींद से मधुर मिलन कराओ


हा! तुम्हें ऐसे लय लोरी गाने को , अब कौन बोल रहा है

जैसे उत् शीतलता में , कोई उष्ण मादकता घोल रहा है

ये चुंबन और ये सहलाना , ऊपर से ये उन्मुग्ध लोरी गाना

अठखेलियां तो कह रही है , तुम्हारा मन फिर डोल रहा है


मुझे सुला रहे हो , या सच-सच कहो कि सुलगा रहे हो

चंदन-सा तन हुआ है , फिर से क्यों अगन लगा रहे हो

अगन जब लग जाएगी तो , आहुत तुम्हें ही होना होगा

क्यों अनंगीवती को फिर से छेड़ ,  तुम ऐसे जगा रहे हो


अनंगीवती जो जागेगी तो , फिर उसे सुला न पाओगे

सब जान-बूझकर भी , अनंगदेव को फिर से हराओगे

जानती हूँ , हमसे हार के भी तुम्हें सत् सुख मिलता है 

पर इस तरह जीताकर , मुझे दुष्पुर दुख ही पहुँचाओगे


ये निंदासी निशी भी , अब कुहरे से लिपट कर सो रही है

शनै: शनै: आनाकानी , मनमानी की अनुगामी हो रही है

पुनः ये पुण्यतम क्षण , निछावर हो रहा है चरणों पर तेरे

औ' सौंदर्य लहरियां संयोगक्रीड़ा में घुल-घुल कर खो रही है .


Sunday, January 10, 2021

क्षणिकाएँ .......

आज कल शब्दों में          

अर्थो की अधिकता

यह बताता है कि 

हम कितने 

चतुर और चालाक

हो गए हैं .


*****


शब्दों के अर्थ

जब अनर्थ होने लगे

तो साफ है कि

बाजार ज्यादा से ज्यादा 

घातक हथियारों की 

आपूर्ति चाह रहा है .


*****


शब्द जब-तब

अपशब्दों के सहारे

शक्ति प्रदर्शन करे तो

सोची-समझी रणनीतियां

अपना दांव 

खेल चुकी होती है .


*****


शब्द जब

गणित के सूत्रों को

हल करने लगे तो

अपेक्षित परिणाम

सौ प्रतिशत से

कुछ ज्यादा ही होता है .


*****


अनचाहे शब्द 

पीछे लौटकर

पछताने से इंकार करे तो

उसकी पीठ ठोंकने वालों में

समझदारों का 

हाथ ज्यादा होता है .

*** विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ***

Thursday, January 7, 2021

"ब्लॉगिंग-सा दिल पर" ........

"पहले जी" गये "दूसरे जी" के घर 

"दूसरे जी" गये थे "तीसरे जी" के घर 

धत् ! पता चला कि 

"तीसरे जी" भी गये हुए हैं "चौथे जी" के घर

फिर "पहले जी" जब गये "चौथे जी" के घर पर

तो वो "महाशय जी" भी थे सिरे से नदारद.…...


तो क्या करते बेचारे "पहले जी"

अपना मुँह लटकाए वापस चले आए अपने घर 

और बाट जोहने लगे अपने खिड़की-किवाड़ों को पकड़

कि भूले भटके ही सही "कोई तो" आए उनके घर 

थोड़ा-सा ही सही मगर दौड़े तो "आह-वाह" की लहर

और किसी भी "जी" के ना आने पर 

"पहले जी" मायूस होते रहे जी भर-भर कर

कुछ ऐसा ही है अपने ब्लॉगिंग का सफर .....


अगर "सबके-सब" बिन बुलाए ही तांता लगा कर

शौक से जब आने लगें आपके घर 

तो आप भी बड़े आराम से खुद को समझिए

अपने आपको एकदम से बड़का "कलक्टर"

और खूब करते रहिए बकर-बकर

सब लगाते रहेंगे आपको तरह-तरह से बटर

ताकि आप लुढ़कते रहें फिसल-फिसल कर

फिर सब मजा लेते रहेंगे ताली पीट-पीट कर

कुछ ऐसा ही है अपने ब्लॉगिंग का सफर........


अजी! हम भी अपनी बात कह देते हैं 

जरूरत से कुछ ज्यादा ही खुलकर 

लेकिन साथ में दोनों हाथों को जोड़ कर

प्यार से वैधानिक चेतावनी भी देकर 

कि इस हल्के-फुल्के मजाक को

कृपया कोई न लें अपने "ब्लॉगिंग-सा दिल पर"

कभी-कभी हँसना और हँसाना भी चाहिेए

अपने-आप को सबसे बड़ा "कलक्टर" बनाना भी चाहिए.…...


तो आइए ! सब हँसे खूब लोट-पोट कर

और जो-जो न हँसे उन्हें भी हँसाएं टोक-टोक कर

उनका नाक-कान , पैर-हाथ पकड़-पकड़ कर

अगर फिर भी वो न हँसे तो भी हँसाएं

उनके पेट को जोरदार गुदगुदी से जकड़-जकड़ कर

क्योंकि कुछ ऐसा ही है अपने ब्लॉगिंग का सफर . 

Monday, January 4, 2021

उधार का ज्ञान बहुत है ........

मेरे पास भी इधर-उधर से उधार का ज्ञान बहुत है 

उसे भांति-भांति से सत्य साबित करने के लिए

उल्टा-पुल्टा , आड़ा-तिरछा , टेढ़ा-मेढ़ा प्रमाण भी बहुत है 

पोथा पर पोथा यूँ ही नहीं लिख कर दे मारी हूँ

नये-पुराने सारे विषयों का अधकचरा खान बहुत है

अगर किसी सभा में अंधाधुंध जो बांचने लगूं तो

देखने-सुनने वाले की नजरों में मान-सम्मान भी बहुत है....

तब तो मानद उपाधियां मेरे चरणों तले

रंग-बिरंगे कालीनों के जैसे बिछी रहती हैं

और सारे पुरस्कारों की लंबी-लंबी कतारें 

हर अगले को धक्का लगा-लगा कर गिनती है ....

ये हाल है कि छोटे-बड़े राजा-महाराजा मुझे 

अपनी दरबार की सुन्दरतम शोभा बनाना चाहते हैं

मेरे छींकने से ही बिखरे हुए मोती जैसे ज्ञान को भी

अपने , उसके , सबके सिर-माथे पर सजाना चाहतें हैं .....

देख रही हूँ अभी से ही मेरे लिए जगह-जगह पर

किसिम-किसिम के अभिलेख , शिलालेख खुदवाये जा रहे हैं

और सब भयंकर ज्ञानियों को छोड़ कर ज्ञानी नम्बर एक पर

मेरे ही नाम , सर्वनाम , उपनाम गुदवाये जा रहे हैं ......

जब सबसे ज्यादा बिकाऊ उधारी ज्ञान का ये हाल है तो

सोचती हूँ अपना ज्ञान जो होता तो और क्या-क्या होता

अरे ! कोई तो मेरा अपना ज्ञान मुझे सूद समेत लौटा दो

ऐसा जबरदस्त घाटा लगाकर मेरा मन बहुत जोर-जोर से है रोता .