आर्य प्रिय वो
जो तीक्ष्ण पीड़ा से
तृण तोड़कर
त्राण दे सके
और सुरभित कस्तूरी को
तेरे गोपित नाभि से
नीलिन होकर ले सके
निज क्लेश न्यून कर
और अपनी प्रीति
प्रदान उसे कर
जो तेरी सुधि में
नित पुष्पित हो
नित सुष्मित हो
निज सुध-बुध खोकर
उसे अवश्य
तुम सुख पहुँचाना
जो सदा रहे
अपने सुख से
सहर्ष अंजाना
और तेरे दुःख को
निज श्वास भूलकर
केवल अपना जाना
प्रेम दृढ
श्रद्धा अक्षय
हो अटूट अनुराग
तुमपर जिसका
निश्चय ही
भ्रमकारी देह से परे
प्राण एक होगा उसका
हो हरक्षण
उसकी भंगिमा मनोहर
सहज ही नैन
उठ जाते हों
मृदुल भाव से
हर्षित ये चित्त
सदा ही चैन पाते हों
हो नित्य नवीन जो
प्रेम-प्रवीण जो
विधाता की हो
पहली कृति
जिसे कोई देखे
तो कभी न लगे
कोई भी अतिश्योक्ति
अनायास ही
अहैतुक ही
जब हृदयंगम
होता है ये लक्षण
तब अहोभाग्य से
रहता सदैव ह्रदय
केवल और केवल
प्रेम-प्रवण .
जो तीक्ष्ण पीड़ा से
तृण तोड़कर
त्राण दे सके
और सुरभित कस्तूरी को
तेरे गोपित नाभि से
नीलिन होकर ले सके
निज क्लेश न्यून कर
और अपनी प्रीति
प्रदान उसे कर
जो तेरी सुधि में
नित पुष्पित हो
नित सुष्मित हो
निज सुध-बुध खोकर
उसे अवश्य
तुम सुख पहुँचाना
जो सदा रहे
अपने सुख से
सहर्ष अंजाना
और तेरे दुःख को
निज श्वास भूलकर
केवल अपना जाना
प्रेम दृढ
श्रद्धा अक्षय
हो अटूट अनुराग
तुमपर जिसका
निश्चय ही
भ्रमकारी देह से परे
प्राण एक होगा उसका
हो हरक्षण
उसकी भंगिमा मनोहर
सहज ही नैन
उठ जाते हों
मृदुल भाव से
हर्षित ये चित्त
सदा ही चैन पाते हों
हो नित्य नवीन जो
प्रेम-प्रवीण जो
विधाता की हो
पहली कृति
जिसे कोई देखे
तो कभी न लगे
कोई भी अतिश्योक्ति
अनायास ही
अहैतुक ही
जब हृदयंगम
होता है ये लक्षण
तब अहोभाग्य से
रहता सदैव ह्रदय
केवल और केवल
प्रेम-प्रवण .