दो मिनट के मौन में
सब कह दो
वो सब कुछ कह दो
जो कहना चाहते हो
कुछ भी मत सोचो
कोई भी चुप न रहो
या कोई भी इन्तजार मत करो
किसी भी अगले
दो मिनट के मौन का.......
क्योंकि हो सकता है
कुछ-कुछ कहने के बीच
वो सब कुछ कहने का
कोई अर्थ ही न रह जाए
दो मिनट के मौन में
और सबके जिस्म में
चिपके हुए खूनी राख से
खौलती हुई सुर्ख उम्मीदें
कहीं सोचने न लगे
कि आग की तलाश व्यर्थ है........
दो मिनट के मौन में
चुप नहीं रहना चाहिए
किसी भी चीत्कार को
इसतरह मची हाहाकार को
और व्यर्थ नहीं जाना चाहिए
किसी भी एक धिक्कार को......
हरतरफ से
इतनी आवाजें आनी चाहिए
इतनी आहें उठनी चाहिए
और इंसानियत को भी
फूट-फूट कर
इतना रोना चाहिए कि
इसतरह से न भरने वाला ज़ख्म
और कभी ख़त्म न होने वाला दर्द
कोई भी देता है वो
पूरी तरह से ख़ाक हो जाए
दो मिनट के मौन में .
सब कह दो
वो सब कुछ कह दो
जो कहना चाहते हो
कुछ भी मत सोचो
कोई भी चुप न रहो
या कोई भी इन्तजार मत करो
किसी भी अगले
दो मिनट के मौन का.......
क्योंकि हो सकता है
कुछ-कुछ कहने के बीच
वो सब कुछ कहने का
कोई अर्थ ही न रह जाए
दो मिनट के मौन में
और सबके जिस्म में
चिपके हुए खूनी राख से
खौलती हुई सुर्ख उम्मीदें
कहीं सोचने न लगे
कि आग की तलाश व्यर्थ है........
दो मिनट के मौन में
चुप नहीं रहना चाहिए
किसी भी चीत्कार को
इसतरह मची हाहाकार को
और व्यर्थ नहीं जाना चाहिए
किसी भी एक धिक्कार को......
हरतरफ से
इतनी आवाजें आनी चाहिए
इतनी आहें उठनी चाहिए
और इंसानियत को भी
फूट-फूट कर
इतना रोना चाहिए कि
इसतरह से न भरने वाला ज़ख्म
और कभी ख़त्म न होने वाला दर्द
कोई भी देता है वो
पूरी तरह से ख़ाक हो जाए
दो मिनट के मौन में .
दो मिनिट का मौन .......... सटीक रचना
ReplyDeleteपाकिस्तान हो या वहां का आतंक या वहां की अार्मी सब के सब अपने आप में इतने वीभत्स विरोधाभासी हैं कि उनके लिए दो क्या एक मिनट का मौन भी नहीं निकलता इस मन से।
ReplyDeleteकाश के दो मिनट के इस मौन में इतना शोर हौ ... कि एसा करने वालौं को मौत आ जाए ... सटीक रचना ....
ReplyDeleteऔर कभी ख़त्म न होने वाला दर्द
ReplyDeleteकोई भी देता है वो
पूरी तरह से ख़ाक हो जाए
दो मिनट के मौन में ....nishbad karti rachna
इसतरह से न भरने वाला ज़ख्म
ReplyDeleteऔर कभी ख़त्म न होने वाला दर्द
कोई भी देता है वो
पूरी तरह से ख़ाक हो जाए
दो मिनट के मौन में .
...आमीन...काश ऐसा ही हो जाए...
काश ! इस मौन से दहशतगर्दों को सबक मिले.
ReplyDeleteनई पोस्ट : आदि ग्रंथों की ओर - दो शापों की टकराहट
"क्योंकि हो सकता है
ReplyDeleteकुछ-कुछ कहने के बीच
वो सब कुछ कहने का
कोई अर्थ ही न रह जाए"
सार्थक हो बस यह दो मिनट का मौन!
सादर
मधुरेश
और व्यर्थ नहीं जाना चाहिए
ReplyDeleteकिसी भी एक धिक्कार को......
हरतरफ से
इतनी आवाजें आनी चाहिए
इतनी आहें उठनी चाहिए
और इंसानियत को भी
फूट-फूट कर
इतना रोना चाहिए कि
इसतरह से न भरने वाला ज़ख्म
और कभी ख़त्म न होने वाला दर्द
कोई भी देता है वो
पूरी तरह से ख़ाक हो जाए
दो मिनट के मौन में ......
वाकई इसमौन को मुखरित होना ही चाहिए ....स्तुत्य रचना
हैवानियत से पीडित घटना की सार्थक प्रतिक्रिया पर आवाहन दायित्वबोध का।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ....
ReplyDeleteदो मिनट के मौन में
ReplyDeleteसब कह दो
वो सब कुछ कह दो
जो कहना चाहते हो
सब कहकर भी कुछ नहीं कहा जाता..और कह भी दिया तो सुनने वाला कौन है..
मौन से उपजी चीत्कार सियासत की गलियों में गूंजनी चाहिए, तभी कुछ प्रतिध्वनि जालिमों-हत्यारों तक पहुँच सकेगी...........
ReplyDeleteदो मिनट के मुखर मौन ने मुठ्ठी तान दी है.
ReplyDelete