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Wednesday, March 31, 2021

सब नवाब हैं बाबू ! .......

कोई महल बेचता है तो कोई खोली

कोई बारूद बेचता है तो कोई बोली

कोई कटार बेचता है तो कोई रोली

कोई गुलाब बेचता है तो कोई गोली


सब बाजार हैं बाबू ! सब ऐयार हैं बाबू !

सब मालदार हैं बाबू ! सब खरीदार हैं बाबू !


यहाँ हर दाम पर चाम भी बिकता है

यहाँ हर चाम पर ईमान भी बिकता है

यहाँ हर ईमान पर नाम भी बिकता है

यहाँ हर नाम पर ईनाम भी बिकता है


सब चालबाज हैं बाबू ! सब दगाबाज हैं बाबू !

सब अंटीबाज हैं बाबू ! सब धोखेबाज हैं बाबू ! 


अब ये मत पूछिए कि खरा कौन है

अब ये मत पूछिए कि हरा कौन है

अब ये मत पूछिए कि भरा कौन है

अब ये मत पूछिए कि मरा कौन है


सब कसाव हैं बाबू ! सब बचाव हैं बाबू !

सब ऐराब हैं बाबू ! सब नवाब हैं बाबू ! 

Friday, March 26, 2021

फागुन की रातें हैं ........

ललछौंहाँ लगन लगी है , उकसौंहाँ बातें हैं

पर कुछ कहते हुए अधर क्यों थरथराते है ?

फागुन की रातें हैं


यह किस बेबुझ-सा गान पर थिरक रहा मन ?

भ्रमरावलियों बीच कौन है वो अछूता सुमन ?

जो छू कर बेसुध स्वरों में रागों को है जगाता 

उसकी छुअन से सारे फूल भी खिल जाते हैं

फागुन की रातें हैं


अपने मधु-गंध से ही साँसों को महकाने वाला

अहम् रूप को भी पिघला कर पी जाने वाला

कमनीय कामनाओं को है जगाकर उकसाता 

पर बड़ी मीठी कटारी-सी ही उसकी ये घातें हैं

फागुन की रातें हैं


हवाओं की बाँहें फैला कर वो ऐसे बुलाता है

न चाहते हुए भी मन उसी ओर खींच जाता है

रंगरलियों की ये गलियां , बहार और मधुमास

अजब अनोखा भास में उलझाकर ललचाते हैं

फागुन की रातें हैं


उसकी निखरी निराली छवि कितनी न्यारी है

तरल-चपल सी गतिविधियां भी सबसे प्यारी है

उसके आगे संसार का सब रंग-रूप है फीका

उसको प्रतिपल अर्पित मृदु नेह मन को भाते हैं

फागुन की रातें हैं


जैसे शाश्वत वर सज-संवर कर उतर आता है

सप्तपदी पर अनगिन-सा भाँवर पड़ जाता है

और षोडशी षोडश-श्रृंगार करके है लजाती 

दोनों आलिंगित हो श्वासोच्छवास मिलाते हैं

फागुन की रातें हैं


लचकौंहाँ लगन लगी है, उलझौंहाँ बातें हैं

पर कुछ कहते हुए अधर क्यों थरथराते हैं ?

फागुन की रातें हैं . 

    

            *** होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ***

*** फगुनाये आनन्द से उन्मत्त जनों को हार्दिक आभार ***

Sunday, March 21, 2021

मन हुआ विहंग ....

उड़-उड़ बैठना 

बैठ-बैठ पैठना

पैठ-पैठ ऐंठना

ऐंठ-ऐंठ ईठना


अमृत-सी तरंग 

रोम-रोम उमंग

फड़के अंग-अंग

मन हुआ विहंग


वश-अवश कल्पना

तिक्त-मृदु जल्पना

बंध-निर्बंध कप्पना

सीम-असीम मप्पना


विकस रही कला

राग रंग चला

भव फूला-फला

लगे जीवन भला


मद मत दर्पना

नित निज अर्पना

सोई सर्व समर्पना

रीत-रीत सतर्पना

*** विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ***

   *** कविता के रसिकों को हार्दिक आभार ***