उड़-उड़ बैठना
बैठ-बैठ पैठना
पैठ-पैठ ऐंठना
ऐंठ-ऐंठ ईठना
अमृत-सी तरंग
रोम-रोम उमंग
फड़के अंग-अंग
मन हुआ विहंग
वश-अवश कल्पना
तिक्त-मृदु जल्पना
बंध-निर्बंध कप्पना
सीम-असीम मप्पना
विकस रही कला
राग रंग चला
भव फूला-फला
लगे जीवन भला
मद मत दर्पना
नित निज अर्पना
सोई सर्व समर्पना
रीत-रीत सतर्पना
*** विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ***
*** कविता के रसिकों को हार्दिक आभार ***
विश्व कविता दिवस पर आपको भी बधाई ! काव्य के रसिकों को आपकी यह रचना बहुत ही भाएगी, नए-नए शब्दों की सृजन क्षमता और प्रीत व समर्पण के भावों से रची-बसी सुंदर रचना रचने की आपकी क्षमता से अब भला कौन अपरिचित है
ReplyDeleteखूबसूरत रचना।
ReplyDeleteछोटा छंद बहुत अधिक कहता है. इस कविता की यह विशेषता है. भावनाओं की अभिव्यक्ति तो सुंदर है ही, आखिरी पंक्तियां जैन दर्शन तक ले जाती हैं--
ReplyDeleteमद मत दर्पना
नित निज अर्पना
सोई सर्व समर्पना
रीत-रीत सतर्पना
विश्व कविता दिवस पर एक बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteउड़ उड़ बैठना
बैठ बैठ पैठना
क्या खूब पुनुरुक्ति प्रकाश अलंकार प्रयोग किया है ...
मन भी विहंग बन उड़ा चला जा रहा ....
मद मत दर्पना
नित निज अर्पना
सोई सर्व समर्पना
रीत-रीत सतर्पना
इन पंक्तियों में सार्थक संदेश दे दिया ... बहुत सुन्दर
वाह! बहुत सुंदर हर बंद।
ReplyDeleteविश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
सादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अमृता दी।
ReplyDeleteअमृत-सी तरंग
ReplyDeleteरोम-रोम उमंग
फड़के अंग-अंग
मन हुआ विहंग
बेहतरीन और लाजवाब । मनमोहक भावाभिव्यक्ति ।
बहुत खूब प्रिय अमृता जी! विहग हुए मन की भावपूर्ण और कलात्मक अभिव्यक्ति 👌👌👌सस्नेह शुभकामनाएँ ❤❤🙏🙏🌹🌹
ReplyDeleteविकस रही कला
ReplyDeleteराग रंग चला
भव फूला-फला
लगे जीवन भला
👌👌👌👌👌👌🙏🙏
छोटे-छोटे पदों में संसार भर की सुंदरता ! वाह !
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
"वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
अलग सा मिठास - - मुख़्तसर शब्दों में बहुत कुछ कह जाए कोई - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteअमृत-सी तरंग
ReplyDeleteरोम-रोम उमंग
फड़के अंग-अंग
मन हुआ विहंग
लाजवाब
मन विहंग और होली प्रसंग- रंगमय हो !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सरस रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन। गागर में सागर जैसी रचना के लिए आपको शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें अमृता जी, बहुत ही सुंदर रचना...अमृत-सी तरंग
ReplyDeleteरोम-रोम उमंग
फड़के अंग-अंग
मन हुआ विहंग... नई कविता के बीच ये तुकबंदियां बहुत अच्छी लगीं
अद्भुत....
ReplyDeleteहृदयग्राही कविता,
साधुवाद
विकस रही कला
ReplyDeleteराग रंग चला
भव फूला-फला
लगे जीवन भला
वाह !!!
बहुत सुंदर रचना कमृता जी 🌹🙏🌹
फड़के अंग-अंग
ReplyDeleteमन हुआ विहंग
बेहतरीन और लाजवाब ।