अकारण ही
अर्धरात्रि का समय
मुझे ऐसे घेरता है
कि मेरा इन्द्र भयभीत हो जाता है
एक भयानक झंझावात उठता है
और उसी पर एक प्रलयंकारी
वृष्टि एवं अग्निवर्षा होने लगती है....
योगमाया का ही तो प्रभाव है
कि प्रगाढ़ निंद्रा में सोये मेरे द्वारपाल
अचानक जग कर्तव्यपालन में
पूरी तरह से लग जाते हैं ....
बंदीगृह की तत्परता और
सूप की व्यग्रता देखी नहीं जाती
यमुना और शेषनाग रह-रह कर
सामने आने लगते हैं ....
मेरा शिलापट भी क्षुधातुर हो उठता है
पर जो बेड़ियाँ हैं न
वो और भी दृढ़ता से बांध जाती है
करागार का फाटक पहले ही
खुलने से मना कर देता है ....
बड़ी बेचैनी है , घबराहट है
इस गर्भ में ये कैसी आहट है ?
सावधानी तो बरत रही हूँ
पर असावधानियाँ कंस-सी
आतातायी हो रही है ....
अब अपने ही अत्याचारों के भार को
सहन करने में असमर्थ हूँ
पर उस अजन्मे अवतार को जन्म दूँ
कहाँ इतनी मैं समर्थ हूँ ?
अर्धरात्रि के बीतते ही
झंझावात के साथ-साथ
गर्भ भी शांत हो जाएगा
और दिन में स्वप्नावतार को
पूरी तरह से भूलभाल कर
अपने घर-ऑफिस के कामकाज में
बैल की तरह फिर से लग जाएगा .