हाय! हाय!
सूरज की छाती पर
दिनदहाड़े ये कैसी फड़-फड़ ?
जो चमगादड़ों में मची है चूँ-चपड़
घुग्घूओ में भी हो रही धर-पकड़...
झींगुरों का मनमाना शोर
मेंढकों में भी मीठा रोर...
सियारों में गुप्त मुलाक़ात
श्वानों का घुन्ना उत्पात...
सांप-चील का षड्यंत्र
छुछुंदर-नेवला सा ये तंत्र...
गिरगिटों का घुमड़ी परेड
मकड़ियों पर पड़ता रेड...
मधुमक्खियों में जो पड़ी फूट
मक्खियों को मिल गयी बम्पर छूट...
खच्चर-टट्टूओं में खटास
बन्दर-रीछों का लुभावना नाच...
चींटियों की ताबड़तोड़ तालियाँ
मच्छरों से छुपती नहीं गालियाँ...
चूहों में प्लेग विलायती
बिल्लियाँ बनी फिरती हिमायती...
हाईब्रिड हाथियों का मेला
शेर के हिस्से में कच्चा केला...
मगरमच्छों का आँसू-दर्शन
गोरिल्लाओं का अंग-प्रदर्शन...
ऊँटों का अनुभव ज्ञान
घोड़ों का बिना रुके सलाम...
अन्धेरा से होती फरमाइश
काले झंडों की चलती रहे नुमाइश...
हाय! हाय!
सूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
गड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून .
वाह अमृता क्या दर्पण दिखया है देश की छोर से छोर तक की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को! बेल्ट में फँसाकर अपनी पतलून वाकई मजे में है नियम-कानून।
ReplyDeleteबहुत खूब...अमृता जी आपने तो एक साथ ही सबका कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया..
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ReplyDeleteदेख कुदरती करिश्मा, मर्यादित अनुनाद |
आय हाय क्या बात है, चिड़ियाघर आबाद |
चिड़ियाघर आबाद, जगह पाए ना मानव |
पंक्ति पंक्ति पर दाद, बड़ा बढ़िया यह अनुभव |
साधुवाद हे देवि, मस्त जो कविता करती |
बढ़िया है सन्देश, करिश्मा देख कुदरती ||
वाह! अभूतपूर्व!!!
ReplyDeleteकाश यह हाय हाय सुनकर कुछ तो परिवर्तन की नींव पड़े... गड्डम-मड्ड कुछ व्यवस्थित हो!
हाय हाय.......
ReplyDeleteपोल खोल डाली......
वाह वाह!!!
अनु
आनंद आगया, कितनी सहजता से आपने बिंब प्रयोग करते हुये सब कुछ कह डाला, बहुत ही सशक्त.
ReplyDeleteरामराम.
कितना ही सुन्दर हो कि कोई जादू की छड़ी
ReplyDeleteइन साँप- बिच्छुओं को चहचहाते पक्षियों, तितलियों और मुस्कराते फूलों में बदल दे ।
ReplyDeleteहाय! हाय!
सूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
गड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून .
प्रकृति की सनसनाहट का सफल चित्रण
उफ़ ...कैसे इतने बिम्ब का प्रयोग कर लेती हैं आप ...कमाल है
ReplyDeleteदौरे ज़माना यही हो रहा है
ReplyDeleteजिसे आपने बख़ूबी कहा है
बहुत बढ़िया.
सांप-चील का षड्यंत्र
ReplyDeleteछुछुंदर-नेवला सा ये तंत्र...
गिरगिटों का घुमड़ी परेड
मकड़ियों पर पड़ता रेड...
यही है परिदृश्य का राजनीतिक समारोह।
बिलकुल..... यही हो रहा है....
ReplyDeleteशब्दों भाव व्यक्त कर रहे थे, पूर्णतया।
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती है।
देश के ऐसे हालात एक रचना के माध्यम से नाजा आ गए ...
ReplyDeleteप्रभावी लेखन ...
sundar kavita |abhar
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteदेखिये न - हाय-हाय पर भी वाह-वाह निल रही है मुख से !
ReplyDeleteदेखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
ReplyDeleteकितना मज़े में है सब नियम-क़ानून ।
देश के जनतंत्र का सही वर्णन ।
हाय - हाय…
ReplyDeleteजी खोलकर सब कह डाला
जितना भी था गड़बड़ झाला…
बहुत बढ़िया अमृता जी
सही वर्णन अमृता जी .............
ReplyDeleteसूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
ReplyDeleteगड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून
सही है ...
सब अपनी अपनी में लगे हैं …… शानदार
ReplyDeleteजंगल राज की उम्दा तस्वीर .
ReplyDeleteइन दिनों एक ही बात है प्रकृति की समझो या इंसानों की !
ReplyDeleteअमृत के लोभ में सब लोमड़ी और सियार
ReplyDeleteदौड़े आगे-पीछे ....गोलम-गोलम गोल
अमृत-घट में किसने विष दिया घोल
हाय री अमृता !!! अब तेरा क्या होगा बोल
क्यूँ तूने जंगल-राज की रख दी खोल के पोल
(पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...और क्या सुहाना हुआ)
तीखा व्यंग
तंत्र की चालबाजी पर आपका यह प्रहार बहुत मन भाया.
ReplyDeleteउचक्कों की पूरी बिरादरी को आपने शब्दों से हांक दिया.. हाय..हाय.. आपने ये कैसा जुल्म किया ?…
ReplyDeleteसशक्त प्रस्तुतीकरण ....बहुत खूब ...!!
ReplyDeleteकितना मज़े में है सब नियम-क़ानून
ReplyDeleteवाकई