अकारण ही
अर्धरात्रि का समय
मुझे ऐसे घेरता है
कि मेरा इन्द्र भयभीत हो जाता है
एक भयानक झंझावात उठता है
और उसी पर एक प्रलयंकारी
वृष्टि एवं अग्निवर्षा होने लगती है....
योगमाया का ही तो प्रभाव है
कि प्रगाढ़ निंद्रा में सोये मेरे द्वारपाल
अचानक जग कर्तव्यपालन में
पूरी तरह से लग जाते हैं ....
बंदीगृह की तत्परता और
सूप की व्यग्रता देखी नहीं जाती
यमुना और शेषनाग रह-रह कर
सामने आने लगते हैं ....
मेरा शिलापट भी क्षुधातुर हो उठता है
पर जो बेड़ियाँ हैं न
वो और भी दृढ़ता से बांध जाती है
करागार का फाटक पहले ही
खुलने से मना कर देता है ....
बड़ी बेचैनी है , घबराहट है
इस गर्भ में ये कैसी आहट है ?
सावधानी तो बरत रही हूँ
पर असावधानियाँ कंस-सी
आतातायी हो रही है ....
अब अपने ही अत्याचारों के भार को
सहन करने में असमर्थ हूँ
पर उस अजन्मे अवतार को जन्म दूँ
कहाँ इतनी मैं समर्थ हूँ ?
अर्धरात्रि के बीतते ही
झंझावात के साथ-साथ
गर्भ भी शांत हो जाएगा
और दिन में स्वप्नावतार को
पूरी तरह से भूलभाल कर
अपने घर-ऑफिस के कामकाज में
बैल की तरह फिर से लग जाएगा .
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
कृष्णाष्टमी की शुभकामनायें..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बृहस्पतिवार- 29/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः8 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
सब कृष्ण को पुकार तो रहे हैं पर अपने अपने स्वार्थ में भी लिप्त हैं ॥शायद इसी लिए कृष्ण अवतार ले कर नहीं आ रहे ... बहुत सुंदर और गहन रचना ....
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनायें
खुबसूरत अभिवयक्ति......श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें......
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ....
ReplyDeleteजीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक ' संपूर्ण पुरूष ' कृष्ण को आना ही है ....यह ख्याल अकारण नहीं है...
ReplyDeleteश्री कृष्णजन्मोत्सव की हार्दिक बधाई
निश्चय ही दिन का यह स्वप्नावतार नए दिन के प्रारम्भ में सब भूलभाल जाएगा और कार्यालय-घर के कार्यों में बैल की तरह लग जाएगा। क्या गहन बात कह दी शुभअवसर के लिए अपवित्र हो चुके भूखण्ड और काले हो चुके समय में।
ReplyDeleteबहुत गहन और सटीक अभिव्यक्ति...श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeleteइस तरह गर्भित व्यथा/ व्याकुलता निर्मूल होती नहीं शायद.
ReplyDeleteमन की व्यग्रता को एक अजन्मे गर्भ का प्रतीक देना और फिर रोजमर्रा के काम में व्यग्रता का शिथिल हो जाना .....सोच की गहराई को प्रणाम !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeletehttp://yunhiikabhi.blogspot.com
सटीक भाव ... रोज़ ही ऐसे भाव उठते हैं मन में ओर सुबह होते होते शिथिल हो जाता है सब कुछ ... ये उस की माया है या मन का डर ...
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई ...
गहन भावाभ्यक्ति!
ReplyDeleteप्रतीकात्मक ढंग से अप्रतिम भाव उकेरे हैं आपने।
सादर बधाई आदरणीया
मन की भी विचित्र स्थिति है, पल में माशा पल में तोला. बखूबी अभिव्यक्त किया आपने, हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वेगवती धारा जैसे कृष्ण को ही ढूंढ रही हो ऐसा उद्दाम आवेग लिए है यह रचना प्रश्न वाचक मुद्रा में।
ReplyDeleteमन में कितना-कुछ उमड़ता है,टिकता कहां है !
ReplyDeleteमिथकीय बिंबों से सजी रची यह कविता मानवीय सीमाओं को मार्क करती है लेकिन सोच में आधुनिक दृष्टिकोण को प्रतिनिधित्व देते हुए उन सीमाओं को रेखांकित कर जाती है.
ReplyDeleteपर बिना जन्म दिए भी चैन नहीं आयेगा..उस दिन की प्रतीक्षा में तो यह सारा आयोजन है
ReplyDeleteप्रसव की असीम वेदना एक नए सूर्य को जन्म देगी ……बहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके कविताओं की समसमायिकता काबिल-ए-तारीफ है. बहुत-बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteमनःतंतुओं को झंकृत करती कविता।
ReplyDeleteझकझोर देने वाली रचना ..अमृता जी कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ..सादर
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