अब विश्व -यातना को और
नहीं सह सकता है यह प्राण
नहीं सह सकता है हे! प्रभो
क्रन्दन -ध्वनि का जयगान
सिन्धु समान महानाद कर
बाँसों -बाँस उछलना चाहूँ
बड़वानल-सा वंकट हो कर
स्वार्थ-बेड़ियाँ कुचलना चाहूँ
कुटिल-सी आग में झुलसकर
सकल समाज ही हुआ नरक है
निष्ठुर नाश मनुज का देखकर
फूट -फूटकर रो रहा पावक है
एक प्रचंड तूफ़ान को उठाकर
दीनों-दलितों को चिताना चाहूँ
ऊँचे पर्वत का भी मान हिलाकर
द्वेष -विष जड़ से मिटाना चाहूँ
जब असहायों के क्रूर शोषण से
पाप को नित पोषण मिलता है
तब जलते ज्वालामुखी पर बैठे
अग्निधर्माओं का धीरज हिलता है
एक करुण क्रोधानल में जलकर
दंभी कंटकों को दहकाना चाहूँ
शोणित शोकों का शमन करके
शोधन बस शोधन करना चाहूँ
विश्व -उदय की है झूठी गाथा
झूठा जयघोष ,झूठा गुणगान
अब नहीं सह सकता है हे!प्रभो
यंत्रणा से आकुल हुआ है प्राण
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
तो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
विश्व -उदय की है झूठी गाथा
ReplyDeleteझूठा जयघोष ,झूठा गुणगान
अब नहीं सह सकता है हे!प्रभो
यंत्रणा से आकुल हुआ है प्राण................वैश्विक-देशज वस्तुस्थिति पर अद्भुत पद्य।
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
तो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ ..........नवप्रवर्त्तन की उत्कट अभिलाषा और संकल्प, और संकल्प न हो सकने की विवशता में भी लक्ष्य की ओर चलने की व्यग्रता...इसको शुभप्रणाम।
मुश्किल है पर प्रयत्न तो करना ही होगा, बहुत ही प्रभावी और ओजस्वी रचना.
ReplyDeleteरामराम.
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ ........
एक एक चरण चलो ....
ध्येय पर बढ़े चलो ....
पंथ की कठिनाइयों से जूझते हुए बढ़ो ...
सामने विजय खड़ी पुकारती ....
उत्कृष्ट कविता ...!!
सुंदर सोच .....हम भी आपके साथ हैं ....वीर तुम बढ़े चलो ....धीर तुम बढ़े चलो .....
विश्व -उदय की है झूठी गाथा
ReplyDeleteझूठा जयघोष ,झूठा गुणगान
अब नहीं सह सकता है हे!प्रभो
यंत्रणा से आकुल हुआ है प्राण
...बिल्कुल सच...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-08-2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
जूझता है देश पूरा,
ReplyDeleteरह गया सपना अधूरा।
झूठा जयघोष ,झूठा गुणगान
ReplyDelete***
सच्ची बात!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआओ मिल कर संकल्प लें ।
ReplyDeleteजागो फिर एक बार !!
>> http://corakagaz.blogspot.com/2013/08/maa-jagaao-ram-ko.html
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST : तस्वीर नही बदली
sundar kavita ..............ojasvi rachna.........
ReplyDeleteJanmanas ke antah karan ko kranti ke or agrasarit karti yah rachana bahut hi. Ojpurn hai.kawita ke har vakya me ythahasthiti ke priwartan ki hunkar aaur lalkar hair shaabash amrita ji.aap ki is kawita aur is aawaj ke liye JAN KAWI ka smbodhan. swikar more.
ReplyDeleteसाहित्य समाज का दर्पण है.प्रायः वैचारिक क्रांति की सूत्र ब्यक्ति और समस्ति के सम्मुख उपस्थित जड़ता मानसिक अथवा सामाजिक उसे यथा स्थिति से उबरने में katatelist की भूमिका निभाते हैं.आज के परिवेश में इस भोगवादी संस्क्कृति ने ऐस्वार्यों के प्रति ललक तो पैदा करती है पर से अपने भीतर के सामर्थ्य को उपयोग करने की जिस विचार की पर स्थित होना होता है ,उस सोच की कमी की वजह से या तो भाग्यवादी हो जाता है या तथा कथित गुरुओं की शरण में जा भ्ग्य्वादी हो जाता है.आज अपने भीतर की उर्जा को जिस आवाज और ललकार की जरुरत है वह आपकी कविताओं में दिखा.ब्यक्तिगत सुख और दुःख से ऊपर उठकर समस्ति की आवाज बन आपने एक नयी मिशल दी है .वैचारिक स्तर पर की गयी आघात ने हमेशा ही समाज को झकझोरा है एक नयी राह दी है एक नयी सोच दी है और धीरे धीरे परिवर्तन होता रहा है.
ReplyDeleteइस नयी धरा के लिए आपको शुभ कामनाएं .तथा मेरी ओर से आपको एक उपनाम " जनकवि".स्वीकार करे.
' हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प'
ReplyDeleteआपके मुख में घी-शक्कर ;काश ऐसा हो जाए !!
नया जहाँ बसाने के लिए सच में ना नयी धरती चाहए, ना लोग. बस सभी को स्वयं का जिम्मा लेना है परिवर्तन के लिए. समग्र सुधार अपने आप हो जाएगा. अति सुन्दर.
ReplyDeleteसंकल्प तो अति कठिन है मगर
ReplyDeleteकदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ --
दिल में जोश भर देती प्रेरणा दायक रचना
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
so nice...
ReplyDeleteओजस्वी और प्रभावपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण रचना !
ReplyDelete.बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति.
ReplyDeleteहर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
नये विश्व का निर्माण हमें ही करना है..चलिए आज से ही लग जाते हैं..
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
कोशिश खुद से ही शुरू करनी होगी
ReplyDeleteहर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
तो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
निश्छल कामना बेहतरीन
ये बढ़ते कदम यूँ ही आगे बढ़ते रहें
ReplyDeleteएक प्रचंड तूफ़ान को उठाकर
ReplyDeleteदीनों-दलितों को चिताना चाहूँ
ऊँचे पर्वत का भी मान हिलाकर
द्वेष -विष जड़ से मिटाना चाहूँ
बहुत सुंदर और पवित्र भावाभिव्यक्ति हुई है आपकी इस कविता में...
मन को जागते और उद्वेलित करते भाव......
ReplyDeleteजगाते
ReplyDeleteहर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
बहुत ही प्रेरक पंक्तियाँ |थोड़े थोड़े आपके इन भावो के जैसे ही भाव लेकर ,मैं भी लिखता हूँ |
www.drakyadav.blogspot.in
बेहतरीन भाव … बधाई स्वीकार करें . .
ReplyDeletewah amrita tanmay ji,
ReplyDeletebahut hi khubasurat rachana hai.....
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ ...
संकल्प के साथ उठा सही दिशा का एक कदम भी पर्वत को हिलाने को काफी है ... और आज संकल्प लेने का समय है ...
uttam agaaz .. ameen
ReplyDelete:)
कुटिल-सी आग में झुलसकर
सकल समाज ही हुआ नरक है
निष्ठुर नाश मनुज का देखकर
फूट -फूटकर रो रहा पावक है
एक प्रचंड तूफ़ान को उठाकर
दीनों-दलितों को चिताना चाहूँ
ऊँचे पर्वत का भी मान हिलाकर
द्वेष -विष जड़ से मिटाना चाहूँ
हर प्राण यदि ले ले ये संकल्प
ReplyDeleteतो एक नूतन विश्व बनाना चाहूँ
संकल्प तो अति कठिन है मगर
कदम उस ओर ही बढ़ाना चाहूँ .
सही संकल्प सफलता का पहला कदम है. अद्भुत भाव, सुंदर प्रस्तुति.
शोणित शोकों का शमन करके
ReplyDeleteशोधन बस शोधन करना चाहूँ
सुन्दर भाव श्रेष्ठ कामना
Waaaah!! kya baat hai!! :)
ReplyDeleteDi Maine pahle bhi kaha hai, aapki kavitaayen bahut prabhavi hoti hain!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर और प्रेरणा दायक पोस्त…। ' जनकवि' सही उपाधि मिली है :-)
ReplyDeleteमुझे आपकी नयी रचना का इंतज़ार रहता है ..आपकी काव्य विविधता को सलाम ..हिंदी के कुछ कठिन शब्दों का अर्थ भी लिख दिया करें तो थोड़ी सहजता होगी ..आपने जो संकल्प लिया है काबिले तारीफ है ...सादर बधाई के साथ
ReplyDeleteलाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteकुटिल-सी आग में झुलसकर
ReplyDeleteसकल समाज ही हुआ नरक है
निष्ठुर नाश मनुज का देखकर
फूट -फूटकर रो रहा पावक है
आज स्थिति कुछ ऐसी ही नारकीय हो गयी है
बहुत सुन्दर
बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति.
ReplyDeleteविश्व-उदय की है झूठी गाथा
ReplyDeleteझूठा जयघोष, झूठा गुणगान
अब नहीं सह सकता है हे! प्रभो
यंत्रणा से आकुल हुआ है प्राण
ये पंक्तियाँ नवचेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं. बहुत सुंदर.