कुछ नहीं
हवा का झोंका है
सो जाओ चुपचाप !
भारी मन है तो
बत्तियां बुझाकर
कर लो
जी भर विलाप !
नींद नहीं आ रही ?
तो करते रहो अपने
शपित शब्दों से संलाप...
जाने भी दो
हाँ! जिसके पंजे में
जो पड़ आता है
उसी का गला घोंटने में
वह अड़ जाता है
व दर्द का दौरा
ये हमारा हिमवत ह्रदय
पिघल कर भी
सह जाता है..
कोई हर्जा नहीं
कि रक्तचाप
थोड़ा बढ़ा जाता है
और खून को
खौला-खौला कर
लज्जा - घृणा में
उड़ा जाता है...
कोई फिक्र नहीं
सब ठीक हो जाएगा
कल नहीं तो अगले महीने
नहीं तो अगले साल..
हाँ ! कभी न कभी
सब ठीक हो जाएगा
देर है पर अंधेर नहीं..
कुछ नहीं है ये
बस हवा का झोंका है
जो कहीं न कहीं
हर मिनट बहता रहता है
और पतित पंजों से
पंखनुचा कर
संतप्त संघात को
सहता रहता है ...
अब तो
हर अगले मिनट की
आँखों पर
काली पट्टी चढ़ाकर
लड़खड़ाती जीभ को
समझा - बुझाकर
कहना पड़ता है कि -
इसपर इतना
मत करो
प्रमथ प्रलाप
कुछ नहीं
बस हवा का झोंका है
सो जाओ चुपचाप !