आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
प्रकारान्तर में हर पिछले युग को
या तो विरोधों पर आपत्तिजनक विरोध दर्ज करके
या फिर एक जटिल साम्य की खोज करके
उन अनपढ़ी लिपियों पर चिपके हुए
भुरभुरे भावाश्मों को खुरच-खुरच कर
एक संकीर्ण शोध की सतत प्रक्रिया से
अपने व्याख्यायों के परिणाम को
अपने ही तर्कों से प्रमाणित करते हुए
या फिर वतानुकूलीय विभिन्नताओं में पैदा होते
अनचीन्हे जीवाणुओं-विषाणुओं से उत्पन्न
प्रतिलिपियों के सूक्ष्म संक्रमण के
वस्तुनिष्ठ तथ्यों को यथासंभव प्रस्तुत करके
या फिर सांस्कृतिक गरिमा के प्रति
बहुआयामी भावनाओं को स्फुरित करने वाले
नई लिपियों के प्रतिरोधक तंत्रों को
अपनी गली उँगलियों पर ही सही
समय की स्याही से ठप्पा लगाते हुए
आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
एक विश्लेष्णात्मक औपचारिकता का निर्वाह करके
अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को
अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए
संभवत: कुछ दूर तक ही सही
समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले
या फिर नियति के त्रासदी को कोई
प्रमाणिक हस्ताक्षर ही मिल जाए
और बुढ़ाई खांसियों का इतिहास
अपने गले के खरास से निजात पाए
व यहाँ-वहाँ फेंके अपने बलगम पर
सूखे हुए खून के धब्बों की गवाही में
हर अगला युग को वैसे ही खड़ा पाए
जैसे कि आज हम खड़े हैं .
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
प्रकारान्तर में हर पिछले युग को
या तो विरोधों पर आपत्तिजनक विरोध दर्ज करके
या फिर एक जटिल साम्य की खोज करके
उन अनपढ़ी लिपियों पर चिपके हुए
भुरभुरे भावाश्मों को खुरच-खुरच कर
एक संकीर्ण शोध की सतत प्रक्रिया से
अपने व्याख्यायों के परिणाम को
अपने ही तर्कों से प्रमाणित करते हुए
या फिर वतानुकूलीय विभिन्नताओं में पैदा होते
अनचीन्हे जीवाणुओं-विषाणुओं से उत्पन्न
प्रतिलिपियों के सूक्ष्म संक्रमण के
वस्तुनिष्ठ तथ्यों को यथासंभव प्रस्तुत करके
या फिर सांस्कृतिक गरिमा के प्रति
बहुआयामी भावनाओं को स्फुरित करने वाले
नई लिपियों के प्रतिरोधक तंत्रों को
अपनी गली उँगलियों पर ही सही
समय की स्याही से ठप्पा लगाते हुए
आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
एक विश्लेष्णात्मक औपचारिकता का निर्वाह करके
अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को
अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए
संभवत: कुछ दूर तक ही सही
समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले
या फिर नियति के त्रासदी को कोई
प्रमाणिक हस्ताक्षर ही मिल जाए
और बुढ़ाई खांसियों का इतिहास
अपने गले के खरास से निजात पाए
व यहाँ-वहाँ फेंके अपने बलगम पर
सूखे हुए खून के धब्बों की गवाही में
हर अगला युग को वैसे ही खड़ा पाए
जैसे कि आज हम खड़े हैं .