इसलिए मैं रुकी हूँ
कि मुझे तेल से पोसा हुआ
एक मजबूत डंडा चाहिए
और शोर-विहीन
बड़ा सा डंका चाहिए...
अपना हुनर तो दिखा ही दूंगी
व बड़े-बड़े महारथियों को
धकिया कर धूल चटा ही दूंगी..
हाँ! अपनी हिम्मत को बटोरने में
बस थोड़ी हिम्मत ही जुटानी है
फिर तो
अपना और अपने बाप का
टैक्स चोरी करने के लिए
किसी से कुछ पूछना थोड़े ही है
इसके लिए अपने को
कोई कच्चा-पक्का सा
आश्वासन ही तो देना है
और दुनिया को दिखाने के लिए
किसी भी नकली कार्ड पर
लम्बी लाईन में लगकर
सड़ा हुआ राशन ही तो लेना है.....
साथ ही उन आयकर वालों को
भुना हुआ चना बनाकर चबाना है
और किसी विशेष श्रेणी की
सारी सुविधाओं को कैसे भी जुटा कर
अपना एक सुरक्षा घेरा बनाना है
ताकि मैं दम भर चोरी कर सकूँ
सबके हिस्से का भी मजा लूट सकूँ....
दिल की कहूँ तो
विशुद्ध ईमानदारी भी तो कोई चीज़ है
इसलिए एक-दूसरे को
उस कटघरे से भी बचाना है
फिर तो हमारी तिजोरी देखकर
सब ज्यादा से ज्यादा यही कहेंगे कि
अपने सीधे किये आँगन में
हम खूबसूरत पैर वाले
ठुमकते-मटकते मोर हैं
और हमें भी अपना सच कहने में
कोई शर्म नहीं है कि
अब अपने हयादार हमाम में
हम सब वैसे नंगे तो नहीं हैं
पर चिलमन पर चिलमन चढ़ाकर
खुले चरागार में चरते हुए
बड़े ही चालाक चोर हैं .
कि मुझे तेल से पोसा हुआ
एक मजबूत डंडा चाहिए
और शोर-विहीन
बड़ा सा डंका चाहिए...
अपना हुनर तो दिखा ही दूंगी
व बड़े-बड़े महारथियों को
धकिया कर धूल चटा ही दूंगी..
हाँ! अपनी हिम्मत को बटोरने में
बस थोड़ी हिम्मत ही जुटानी है
फिर तो
अपना और अपने बाप का
टैक्स चोरी करने के लिए
किसी से कुछ पूछना थोड़े ही है
इसके लिए अपने को
कोई कच्चा-पक्का सा
आश्वासन ही तो देना है
और दुनिया को दिखाने के लिए
किसी भी नकली कार्ड पर
लम्बी लाईन में लगकर
सड़ा हुआ राशन ही तो लेना है.....
साथ ही उन आयकर वालों को
भुना हुआ चना बनाकर चबाना है
और किसी विशेष श्रेणी की
सारी सुविधाओं को कैसे भी जुटा कर
अपना एक सुरक्षा घेरा बनाना है
ताकि मैं दम भर चोरी कर सकूँ
सबके हिस्से का भी मजा लूट सकूँ....
दिल की कहूँ तो
विशुद्ध ईमानदारी भी तो कोई चीज़ है
इसलिए एक-दूसरे को
उस कटघरे से भी बचाना है
फिर तो हमारी तिजोरी देखकर
सब ज्यादा से ज्यादा यही कहेंगे कि
अपने सीधे किये आँगन में
हम खूबसूरत पैर वाले
ठुमकते-मटकते मोर हैं
और हमें भी अपना सच कहने में
कोई शर्म नहीं है कि
अब अपने हयादार हमाम में
हम सब वैसे नंगे तो नहीं हैं
पर चिलमन पर चिलमन चढ़ाकर
खुले चरागार में चरते हुए
बड़े ही चालाक चोर हैं .
और हमें भी अपना सच कहने में
ReplyDeleteकोई शर्म नहीं है कि
अब अपने हयादार हमाम में
हम सब वैसे नंगे तो नहीं हैं
पर चिलमन पर चिलमन चढ़ाकर
खुले चरागार में चरते हुए
बड़े ही चालाक चोर हैं .
बहुत ही सटीक व्यंग रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
करारा व्यंग्य. ‘पर्दानशीं’ लोगों को बहुत बढ़िया से बेपर्दा किया है. पर हम से ही कुछ हैं जो, जब-जब इनका चीरहरण होता है तो लम्बी से चादर ले आते हैं बाइज्ज़त इन्हें निकालने के लिए.
ReplyDeleteसारी पोल-पट्टी जानते-मानते हम सब चोर ही तो हैं !
ReplyDeleteव्यापक राजनीतिक कलेवर की बढ़िया पोस्ट जोरदार प्रहार संसदीय चोर उचक्कों पर आज इन्हीं से देश को खतरा है बाहर से नहीं है ...सदनों से ही है जहांस्कैम करैया बैठें हैं ....
ReplyDeleteज़बरदस्त व्यंग्य ....
ReplyDeleteव्यंग की तीखी धार .....बहुत बढ़िया और सटीक अमृता जी
ReplyDelete.रोचक .सराहनीय प्रस्तुति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अमृता जी ....तीखी धार ...सटीक
ReplyDeleteपर चिलमन पर चिलमन चढ़ाकर
ReplyDeleteखुले चरागार में चरते हुए
बड़े ही चालाक चोर हैं .
सटीक ....धारदार व्यंग्य ...क्या कहा जाए ...!!
वाह अमृता जी, इस बार तो बहुत गहरी चोट की है..धारदार है आपकी रचना, पैनी और चुटीली..बधाई !
ReplyDelete'बड़े ही चालाक चोर हैं।' सहज सुंदर और वास्तव पर प्रकाश डालता व्यंग्य सबको झनझनाहट भरा थप्पड है। हर आदमी हमेशा छोटी-बडी बेईमानी कर अपना बचाने की कोशिश करता है। आत्मा तो कहती है कि मैंने अपराध किया है, चोरी की है पर जुबां कबुलती नहीं। सबकी तरफ से आपका कबुलीनामा पढते हम भी कबुल कर रहे हैं का एहसास होता है।
ReplyDeleteमन की कह दूँ,
ReplyDeleteया
तनिक और सह लूँ,
अमृता जी !गेंडे के चमड़ी में यह तीक्ष्ण व्यंग वाण भी नहीं घुसेगा
ReplyDeletelatest post पिता
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइन चालाक चोरों से ही तो खतरा सबसे ज्यादा है.
ReplyDeleteहिम्मत जुटाइये ... किस्मत अपने आप बन जाएगी ... आज तो बस जरूरत है बेशर्म होने की जितना ज्यादा .. उतना ही अच्छा ...
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हो
ReplyDeleteराजनीति लेखन के लिए सबसे बेकार विषय है
bhaut hi khubsurat....
ReplyDeleteShandar karara byang. Jag ate chale.ham sabhi aapki aawaz ke saath gain.
ReplyDeleteधनविरक्ति की राह दिखाएँ
ReplyDeleteवस्त्र पहन, सन्यासी के !
राम नाम का ओढ़ दुशाला
बुरे करम, गिरि वासी के !
मन में लालच ,नज़र में धोखा, हाथ में ले रामायण गीत !
श्रद्धा बेंचें,घर घर जाकर, रात में मस्त निशाचर गीत !
वाह...क्या सटीक व्यंग है...
ReplyDeleterazor sharp.....
anu
दिल की कहूँ तो
ReplyDeleteविशुद्ध ईमानदारी भी तो कोई चीज़ है..
------------------------
एकदम करारा.... धारदार ....
हौसला बना रहे
ReplyDeleteआपको नहीं लगता कि आपकी पुरानी कविताओं और इन कविताओं की प्रकृति में थोड़ा अन्तर आ गया है ? बहुत कुछ बदला सा लगता है. हो सकता है मैं गलत होऊ लेकिन इन कविताओं में लिखने का प्रयास दिखता है जो पहले नहीं था .
ReplyDeleteव्यंग्य बाण शानदार ।
ReplyDeleteबहुत ही पैनी धार मारी है आपने अमृताजी । आपके जैसा हौँसला सबका हो तो बात बन सकती है । बधाई । सस्नेह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteकिसी भी नकली कार्ड़ पर,
सड़ा हुआ राशन ही तो लेना है..........
क्या करारा थ्प्पड़ दिया है आप ने.......
बिहार की राशन पणाली और चोरी को प्रस्तुत लाईनों में?
मैंने तो खुद पटना रह कर यह सब देखा है जो आप ने इन प्रभाव पूर्ण कुछ पक्तियों में कह दिया है।
आभार,
विन्नी
गड्डमड्ड राजनीतिक हालातों को थूक-थपड़ा दिया है जोर से।
ReplyDeleteसुन्दर एवं सटीक रचना |
ReplyDeleteलाजवाब!! निशब्द हूँ पढ़कर। हम्माम में सभी नंगे हैं- ऐसा सुना था - मगर मुझे भी कभी कभार ऐसा प्रतीत होने लगा कि उस नग्नता से कुछ ज्यादा ही विकृत है आज की परिस्थिति। और फिर आपकी पंक्तियों ने बेहतरीन ढंग से सुलझा दिए मेरी उलझन।
ReplyDeleteसादर
Are Babaa Re !!
ReplyDeleteKavita ka saundary jiski thi abhikalpana.
Virangn Unmaad khoi bhavbhagima,Upma,
aaj ki Amritaa toofaani ho gai,
kis baat par Bhadki yeh vanita
Kedaar se nikali ugr ho rahi Alknanda,
zaroorat is andaaz ki thi dhany sabalaa,
bani chndika,asur bhaybheet toh honge,
gali sadee se ladanaa hain avshybhavi.
kitu manohari shaasak jaisa kucha nahi haota,
Jivikoparjan ka mahatv bhookh se kam nahi hota,
maeri aadhi roti se ghar tera bhi chlaana,
ladai mein pichhe mudo toh sath mujhe bhi apne hi Pana . ....Uttam Prayas Sadhoo Aa. Amrita Ji