वह अकेली है
छबीली है
निगरी है
निबौरी है
जितनी कोमल
उतनी जटिल
जितनी सहज
उतनी कुटिल
तरल-सी है
पर जमी हुई
पिघला कर
बहा देती है
अपने किनारे
लगा लेती है
निचुड़ कर
निचोड़ लेती है
शब्द-सिन्धु में
अक्षर-हंस सा
छोड़ देती है...
वह अकेली है
हठीली है
निहत्थी है
निरंकुश है
विरोधी यथार्थ का
प्रतिरोध करती है
जोखिम उठाकर
शिकार बनाती है
मुटभेड़ से
कोहराम मचाती है
घमासान का
घाव सहलाती है
विवशताओं के बीच
जगह बनाती है
असहमत होकर
उम्मीद जगाती है
व्यवहार-आग्रह से
नया छंद खोजती है
घोर असंतोष में
संतोष-गीत गाती है
नितांत बंजर पर
अमरबेल उगाती है...
वह अकेली है
उर्वीली है
नियोगी है
निरति है
हर चिंता की
वह चुनौती है
हारे मन की
वह मनौती है
पर काँटों के लिए
वह करौती है
वह प्रसून-प्रसूता है
हाँ! वह कविता है .
नितांत बंजर पर
ReplyDeleteअमरबेल उगाती है...यह प्रसून-प्रसूता कविता ह्रदय आपका ही तो है जो बहुत ही निराला,मतवाला,भावनाओं का रखवाला है।
ऐसा प्रवाह ....ऐसे शब्द ...ऐसे भाव ....!!!!.
ReplyDeleteदिव्या कविता है ....अमृता जी ....कुछ भी कहना सूर्या को दिया दिखाने जैसा होगा ...!!
गजब, वह निर्द्वन्द्व पटल पर उभरती है और अपनी बात कह जाती है।
ReplyDeleteवह अकेली है
ReplyDeleteउर्वीली है
नियोगी है
निरति है
हर चिंता की
वह चुनौती है
हारे मन की
वह मनौती है
पर काँटों के लिए
वह करौती है
वह प्रसून-प्रसूता है
हाँ! वह कविता
bahut kam sahbdon me bahut vishal abhivyakti .badhai amrita ji .
आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर प्रवाह..
ReplyDelete
ReplyDeleteसच कहा आपने यह प्रसून प्रसूता कविता ही है जो नितांत बंजर में भी अमरबेल उगाती है
साभार!
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
शानदार,बहुत उम्दा शब्द प्रवाह ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
gajab...
ReplyDeleteकविता की क्षमता और शक्ति और स्वभाव का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteशब्द-सिन्धु में
ReplyDeleteअक्षर-हंस सा
छोड़ देती है...
हाँ! वह कविता है .
वाह् वाह्
हर शब्द एक स्पंदन ... धड़कता हुआ .....हर शब्द एक कविता ...मतवाली सी ....हर शब्द एक मंत्र ...भीतर गूंजता हुआ और हर शब्द से निखरता जीवन ....हम सब के आसपास....
ReplyDelete
ReplyDeleteहारे मन की
वह मनौती है
पर काँटों के लिए
वह करौती है
वह प्रसून-प्रसूता है
हाँ! वह कविता है .-------
सृजन का मर्म यही है
सहजता से गहन मनन,चिंतन की बात कह दी है
आपने
बधाई
आग्रह है
गुलमोहर------
Bafhai. Pusupaji kah rah I hair.
ReplyDeleteकाव्य का भाव-तरंग जोर से आ के बहा ले गया. हर शब्द में चुम्बकत्व है. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteसचमुच ही वह कविता ही हो सकती है ----कविता पर एक बेहतरीन कविता !
ReplyDeleteकविता को परिभाषित करती नई कविता
ReplyDeletelatest post मंत्री बनू मैं
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
सारे विरोधाभासों को पार करके सबको अपने भीतर समेटे कविता अपना रास्ता तलाशती है..बहुत सुंदर अमृता जी..
ReplyDelete'घोर असंतोष में
ReplyDeleteसंतोष-गीत गाती है
नितांत बंजर पर
अमरबेल उगाती है...'
संपूर्ण कविता उसका (कविता का) बखान कर रही है। खुबिया बता रही है। पर ऊपर चुनी हुई कविता की पंक्तियां अत्यंत उत्कृष्ट है। असंतोष में संतोष गीत गाना और नितांत बंजर धरती पर अमरबेल उगाना कविता ही कर सकती है। बिल्कुल पवित्र और सुंदर कविता।
प्रवाहमयी रचना
ReplyDeleteविरोधाभाष की अनुपम कृति
bahut sundar hai
ReplyDeleteकविता के लिए इतने शब्द ......बहुत बढिया
ReplyDeleteसुंदर परिभाषा!
ReplyDeleteलाजवाब ......!!!!!!
ReplyDeleteशब्द-सिन्धु में
ReplyDeleteअक्षर-हंस सा
छोड़ देती है...
सचमुच ऐसा ही लगता है...
हाँ हाँ, सच यही कविता है.........बेहतरीन अमृता जी हैट्स ऑफ
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना, शानदार
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteहर चिंता की
ReplyDeleteवह चुनौती है
हारे मन की
वह मनौती है
पर काँटों के लिए
वह करौती है
वह प्रसून-प्रसूता है
हाँ! वह कविता है .
सचमुच यह कविता है
कविता को समझने और परिभाषित करने की उम्दा कोशिष.
ReplyDeleteवाह कविता खुद ही अपनी कहानी कह बैठी... बोत सुंदर जी.
ReplyDeletebahut hi sundar..
ReplyDeleteबहुत सुंदर.....और कुछ नहीं .....बस सुंदर...
ReplyDeleteसच है !
ReplyDeleteवो ही भीतर है
ReplyDeleteएक ज्योत जैसी
कि प्रतिपल के
घनघोर अँधेरे में
है उजाला भरती।
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।