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Wednesday, June 5, 2013

वह प्रसून-प्रसूता है ...




वह अकेली है
छबीली है
निगरी है
निबौरी है
जितनी कोमल
उतनी जटिल
जितनी सहज
उतनी कुटिल
तरल-सी है
पर जमी हुई
पिघला कर
बहा देती है
अपने किनारे
लगा लेती है
निचुड़ कर
निचोड़ लेती है
शब्द-सिन्धु में
अक्षर-हंस सा
छोड़ देती है...

वह अकेली है
हठीली है
निहत्थी है
निरंकुश है
विरोधी यथार्थ का
प्रतिरोध करती है
जोखिम उठाकर
शिकार बनाती है
मुटभेड़ से
कोहराम मचाती है
घमासान का
घाव सहलाती है
विवशताओं के बीच
जगह बनाती है
असहमत होकर
उम्मीद जगाती है
व्यवहार-आग्रह से
नया छंद खोजती है
घोर असंतोष में
संतोष-गीत गाती है
नितांत बंजर पर
अमरबेल उगाती है...

वह अकेली है
उर्वीली है
नियोगी है
निरति है
हर चिंता की
वह चुनौती है
हारे मन की
वह मनौती है
पर काँटों के लिए
वह करौती है
वह प्रसून-प्रसूता है
हाँ! वह कविता है .

36 comments:

  1. नितांत बंजर पर
    अमरबेल उगाती है...यह प्रसून-प्रसूता कविता ह्रदय आपका ही तो है जो बहुत ही निराला,मतवाला,भावनाओं का रखवाला है।

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  2. ऐसा प्रवाह ....ऐसे शब्द ...ऐसे भाव ....!!!!.
    दिव्या कविता है ....अमृता जी ....कुछ भी कहना सूर्या को दिया दिखाने जैसा होगा ...!!

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  3. गजब, वह निर्द्वन्द्व पटल पर उभरती है और अपनी बात कह जाती है।

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  4. वह अकेली है
    उर्वीली है
    नियोगी है
    निरति है
    हर चिंता की
    वह चुनौती है
    हारे मन की
    वह मनौती है
    पर काँटों के लिए
    वह करौती है
    वह प्रसून-प्रसूता है
    हाँ! वह कविता
    bahut kam sahbdon me bahut vishal abhivyakti .badhai amrita ji .

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  5. आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. शब्दों का सुन्दर प्रवाह..

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  7. सच कहा आपने यह प्रसून प्रसूता कविता ही है जो नितांत बंजर में भी अमरबेल उगाती है
    साभार!

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  8. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  9. कविता की क्षमता और शक्ति और स्वभाव का सुंदर चित्रण।

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  10. शब्द-सिन्धु में
    अक्षर-हंस सा
    छोड़ देती है...
    हाँ! वह कविता है .

    वाह् वाह्

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  11. हर शब्द एक स्पंदन ... धड़कता हुआ .....हर शब्द एक कविता ...मतवाली सी ....हर शब्द एक मंत्र ...भीतर गूंजता हुआ और हर शब्द से निखरता जीवन ....हम सब के आसपास....

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  12. हारे मन की
    वह मनौती है
    पर काँटों के लिए
    वह करौती है
    वह प्रसून-प्रसूता है
    हाँ! वह कविता है .-------

    सृजन का मर्म यही है

    सहजता से गहन मनन,चिंतन की बात कह दी है
    आपने
    बधाई

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  13. Bafhai. Pusupaji kah rah I hair.

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  14. काव्य का भाव-तरंग जोर से आ के बहा ले गया. हर शब्द में चुम्बकत्व है. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

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  15. सचमुच ही वह कविता ही हो सकती है ----कविता पर एक बेहतरीन कविता !

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  16. सारे विरोधाभासों को पार करके सबको अपने भीतर समेटे कविता अपना रास्ता तलाशती है..बहुत सुंदर अमृता जी..

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  17. 'घोर असंतोष में
    संतोष-गीत गाती है
    नितांत बंजर पर
    अमरबेल उगाती है...'
    संपूर्ण कविता उसका (कविता का) बखान कर रही है। खुबिया बता रही है। पर ऊपर चुनी हुई कविता की पंक्तियां अत्यंत उत्कृष्ट है। असंतोष में संतोष गीत गाना और नितांत बंजर धरती पर अमरबेल उगाना कविता ही कर सकती है। बिल्कुल पवित्र और सुंदर कविता।

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  18. प्रवाहमयी रचना
    विरोधाभाष की अनुपम कृति

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  19. कविता के लिए इतने शब्द ......बहुत बढिया

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  20. सुंदर परिभाषा!

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  21. लाजवाब ......!!!!!!

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  22. शब्द-सिन्धु में
    अक्षर-हंस सा
    छोड़ देती है...
    सचमुच ऐसा ही लगता है...

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  23. हाँ हाँ, सच यही कविता है.........बेहतरीन अमृता जी हैट्स ऑफ

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  24. बहुत खूबसूरत रचना, शानदार

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  25. हर चिंता की
    वह चुनौती है
    हारे मन की
    वह मनौती है
    पर काँटों के लिए
    वह करौती है
    वह प्रसून-प्रसूता है
    हाँ! वह कविता है .

    सचमुच यह कविता है

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  26. कविता को समझने और परिभाषित करने की उम्दा कोशिष.

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  27. वाह कविता खुद ही अपनी कहानी कह बैठी... बोत सुंदर जी.

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  28. बहुत सुंदर.....और कुछ नहीं .....बस सुंदर...

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  29. वो ही भीतर है
    एक ज्योत जैसी
    कि प्रतिपल के
    घनघोर अँधेरे में
    है उजाला भरती।

    बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।

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