उनकी प्रवीणता ही ऐसी है कि
जहाँ काँटा न भी हो
वहाँ भी तकनीक को घुसाकर
ऐसे गड़ा देते हैं कि
पैर तो आपस में उलझते ही हैं
साथ में अंग-प्रत्यंग भी
बहिष्कार का कोमल हथियार
हवा में यूँ ही लहरा लेते हैं
मुद्दे की तो ऐसी की तैसी
ये बहस ही है तो फिर सार्थक कैसी ?
उनकी कुशलता ही ऐसी है कि
मेजों-कुर्सियों को ऐसे सरका देते हैं
कि भारी बहुमत देखकर ही
कथ्य-प्रयोजन भी चुप्पी लगा जाते हैं
फिर तो अगल-बगल के सब
आत्मबलिदानी-सा आगे बढ़कर
अपने माथे पर कलंक-टीका
बड़े गर्व से सजा लेते हैं
विरोधों के नक्कारखाने की ऐसी की तैसी
जहाँ जूता-जूती हो वहाँ तूती कैसी ?
उनकी सफलता ही ऐसी है कि
मजाक में भी बेमेल तालमेल
मिल-बैठकर बिठा लेते हैं
और मजबूती से खड़े ढाँचे से
अपने हिसाब से ईंटों को खिसका देते हैं
जब बेचारी बेबस बुनियाद
बुबकार मारती है तो
नकली चाँद से भी बहला लेते हैं
बन्दरबाँट नियत की ऐसी की तैसी
फिर तो नक्कालों से उम्मीद ही कैसी ?
उनकी सरलता ही ऐसी है कि
संतगिरी के जूसी जुमले से भी
जेबकतरों को सहला देते हैं
जब गिट-पिट हद तोड़ने लगती है तो
जुलाब की गोलियाँ भी खुद ही
चुपके से चबा ऐसे लेते हैं
फिर तो गाली-गुफ़्ता थोक में मिले
या कि मिलती रहे तालियाँ
सबको ही ठिकाने लगा आते हैं
उन जीती मक्खी खाने वालों की ऐसी की तैसी
और उनके लिए तो ये है बस चंडूखाने की गप जैसी .
बहुत उम्दा ,सुंदर प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद पोस्ट पर आने के लिए शुक्रिया ,,,,
recent post : मैनें अपने कल को देखा,
वो हैं ही ऐसे -क्या कर लेगा कोई ,जमें बैठे हैं औंधे-चिकने घड़े जैसे .
ReplyDeleteआप कितना भी पानी डालिये लुढ़कता चला जाएगा ऊपर ऊपर से !
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
ReplyDeleteअभी तो सबकी ऐसी की तैसी हो रही है ... अच्छा व्यंग्य है ।
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य
ReplyDeleteBehtarin rachna. Push pa.
ReplyDeleteयकीन मानिए ऐसे लोग दुनिया के हर कोने में आपको मिल जायेंगे. कही थोक के भाव तो कहीं कम तादाद में. कुछ लोग जन्मजात आमादा होते है खुद वक्र-पथ पर चलने के लिए और दूसरों को भी चलाने के लिए.
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन यात्रा रुकेगी नहीं ... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeletekitna bhi pani daalo bhigega nahi ,,,chikne ghade ki aisi ki taisi
ReplyDeleteसब की ऐसी की तैसी ... पर मोती चमड़े वालों का क्या करेंगे .. कैसे करेंगे ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है
ReplyDelete'ऐसी की तैसी'करना मुहावरे का सही और सार्थक उपयोग विभिन्न संदर्भ और विषयों को समेटती कविता कब पढने वाले को अपने भीतर लपेटती है पता ही चलता। किसी दूसरे की तरफ उंगली तो हम आसानी से उठा लेते हैं पर कई जगहों पर हम ऐसी की तैसी कर नियम, कानून, ईमानदारी... न जाने किस-किस की वाट लगा देते हैं। आपकी कविता हर एक को भीतर झांकने के लिए मजबूर करती है। हां आपकी कविता सीधे समकालीन कविता का राजनीतिक संदर्भ जरूर लेकर आई पर प्रत्येक इंसान को भी समेटती है कारण जितना चाहे हम अपने-आपको राजनीति से कटवा नहीं सकते। गलत व्यक्ति को चुनकर देश की 'ऐसी की तैसी' तो करवा रहे हैं।
ReplyDeleteThey deserve nothing more than this....APT..!!!!!
ReplyDeleteगजब का द्वन्द बहुत अद्भुत प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteविरोधों के नक्कारखाने की ऐसी की तैसी
जहाँ जूता-जूती हो वहाँ तूती कैसी ?
बेहतरीन....
अनु
जहाँ जूता-जूती हो वहाँ तूती कैसी ?
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न ...जबरदस्त रचना है अमृता जी ...!!अनोखे बिम्ब ...अनोखी रचना ....!!
उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeletekya baat hai!
ReplyDeleteजब भी चाहूँ, सभी नचाऊँ, सबकी होगी ऐसी तैसी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
क्या बात
मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
ऐसी की तैसी :)
ReplyDeleteअभी तो चारों तरफ़ यही ऐसी तैसी हो रही है, बहुत ही सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सचमुच बड़े प्रवीण हैं ये करने में मुद्दे की ऐसी की तैसी... सटीक व्यंग
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और धारदार....आजकल तो ये चारो और दिखाई दे रहाहै...
ReplyDeleteसटीक और सार्थक ...शुभकामनाएं....
तीर तीखा है !! घाव गहरा करेगा ...
ReplyDeleteसुन्दर !!
aisee kee taisee ...kya andaaj hai aapka bhee ..shasakt rachna ..sadar badhaaayee ke sath
ReplyDeleteबिल्कुल सही तेवर ..
ReplyDeleteबधाई !
बन्दरबाँट नियत की ऐसी की तैसी
ReplyDeleteफिर तो नक्कालों से उम्मीद ही कैसी ?------
यह रचना नहीं एक दस्तावेज है जो-
देश,जीवन,व्यवहार,और संबंधों की सड़ांध को उजागर कर रहा है
वर्तमान को कटाक्ष करती बेहतरीन रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है- पापा ---------
उनकी प्रवीणता ही ऐसी है कि
ReplyDeleteजहाँ काँटा न भी हो
वहाँ भी तकनीक को घुसाकर
ऐसे गड़ा देते हैं कि
पैर तो आपस में उलझते ही हैं
साथ में अंग-प्रत्यंग भी
बहिष्कार का कोमल हथियार
हवा में यूँ ही लहरा लेते हैं
मुद्दे की तो ऐसी की तैसी
ये बहस ही है तो फिर सार्थक कैसी ?
बहुत बढि़या
वाह.......अति सुन्दर ......
ReplyDeleteफाइव स्टार रेटिंग वाला व्यंग्य है ....मैं दिल खोलकर इसकी तारीफ़ करता हूँ... उम्दा..उम्दा...
ReplyDeleteअमृताजी,
ReplyDelete"इसीलिये रुकी हूँ मैं"
"किसी भी नकली कार्ड़ पर ,
लम्बी लाईन में लगकर
सड़ा हुआ राशन ही तो लेना है........"
क्या करारा थ्प्पड़ दिया है आप ने,
बिहार की राशन प्रणाली और उस में चोरी को प्रस्तुत करती इन लाईनों में?
ंमैंने खुद पटना में रह कर यह सब देखा और अनुभव किया है जिसे आप ने अपनी प्रभाव पूर्ण पक्तियों में ने लिखा है।
विन्नी
वाह! इतनी मार्मिक और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई । सच को व्यक्त करना इतना आसान नहीँ । सस्नेह
ReplyDeleteबहुत बढि़या
ReplyDeleteअति सुन्दर .
ReplyDeleteये भी बेहतरीन। कभी कभी लगता है कि जो कुछ हम ब्लॉग पे लिखते हैं, कोई भी व्यग्य-कटाक्ष ये सोचकर की ये बात उनके पल्ले पड़े जिन्हें समझनी चाहिए ... और भी ये कि कितना होता है ऐसा?
ReplyDeleteबहरहाल, अच्छी और सटीक प्रस्तुति।