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Saturday, June 1, 2013

अँगारा को जगाना है ...




निरे पत्थर नहीं हो तुम
अतगत अचल , निष्ठुर , कठोर
आँखें मूंदे रहो , युग बीतता रहे
किसी सिद्धि की प्रतीक्षा में
या किसी पुक्कस पुजारी की दया-दृष्टि
तुम पर ऐसे पड़े कि तुम सहज ही
अवगति को उपलब्ध हो जाओ
और उसके ओट में अपने खोट का
खुलेआम बोली लगाओ
फिर उसके बाजारू वरदान से
उसके मंदिरों की शोभा बढ़ाओ
ताकि पत्थर ह्रदय जरूर खींचे आयें
फूलों से तुम्हें ही चोट दे जाए

या तुम वो पत्थर भी नहीं हो
जो अपना भविष्य , प्रतिभा और शक्ति लिए
किसी के चरण पर लोट जाए
उसकी अवांछित ठोकर से बस चोट खाए
वह तुम्हारा उपयोग करते हुए
अपने रास्ते पर सजा ले
व तुमपर मुधा मुक्ति का
चीवर चढ़ा कर खुद भोग का मजा ले
तुम उसकी भक्ति में सब भूलकर
उसकी मदारीगिरी की महिमा का गान करो
उसके बजाये डमरू पर खूब नाचो
और उसके फूंके मंत्र से राख समेटो

यदि सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण अभ्यास करके
आत्मपीड़न हेतु पत्थर ही होना चाहते हो तो
वो पारस पत्थर नहीं हो पाओ
तो कोई बात नहीं
खुद को परख लो तो हीरा हो जाओ
यदि नहीं तो अपने कोने-कातर में दबी
चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
एक आग तो पैदा कर सकते हो
और जड़ पत्थर के छाती को कुरेद कर
अपने धुंधकारी आँच से धधका तो सकते हो
या तो वह अपनी कुरूपताओं की अंगीठी में
अँधेरा समेत पूरी तरह से जल जाए
या फिर उल्कापाती अँगारा हो जाए

आज ही इस महाप्रलयी अँधेरा को हराना है
हाँ ! अँगारा होकर अँगारा को जगाना है .



32 comments:

  1. God is love!

    Catholic blogwalking

    http://emmanuel959180.blogspot.in/

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  2. खुद को परख लो तो हीरा हो जाओ
    यदि नहीं तो अपने कोने-कातर में दबी
    चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
    एक आग तो पैदा कर सकते हो.....बहुत प्रेरक रचना..

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  3. गज़ब का प्रवाह है इस रचना के भाव-सम्प्रेषण में. अपने अन्दर की सुसुप्त उर्जा की पहचान कर, ना हारने का जज्बा लेकर जीना बेहद जरूरी है. अंगारा से अंगारे जगे, उनसे सहस्त्र दीप जले. कहाँ है तम फिर.

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  4. बहुत लाजबाब प्रेरक प्रस्तुति,,

    Recent post: ओ प्यारी लली,

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  5. शब्दों की धधकती हुई ज्वाला.... बेशक कभी तो ऐसा होगा... बस अपने-अपने सीने में आग उगाने की जरुरत है....

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  6. सुप्त गुप्त जो जीवन बीता, कौन धरेगा मन में किसको।

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  7. गहरे उद्वेलित करती रचना।

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  8. अंगारे की ये धधकती ज्‍वाला
    हो हरेक अब इसका मतवाला.........वीर भावानुरागी सशक्‍त पंक्तियां।

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  9. चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
    एक आग तो पैदा कर सकते हो


    सुन्दर पंक्तियाँ

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  10. आज ही इस महाप्रलयी अँधेरा को हराना है
    हाँ ! अँगारा होकर अँगारा को जगाना है ------.

    बहुत सार्थक और सटीक बात कही है
    वाह बहुत खूब प्रस्तुति


    आग्रह है पढें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  11. गहन भावाव्यक्ति..

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  12. उपेक्षणीय नहीं है पत्थर भी,अपनी संकुलता में वह पारस हो जाता है ,रत्न भी और कुछ नहीं तो गहन घर्षण के क्रम में चिंगारियोंकी सृष्टिमे समर्थ -अति गूढ़ चिन्तन और तदनुरूप अभिव्यक्ति ,साधु !

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  13. waaah...kitni positive energy liye kavita hai ye....
    ekdam sahi :)

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  14. बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  15. यदि नहीं तो अपने कोने-कातर में दबी
    चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
    एक आग तो पैदा कर सकते हो
    और जड़ पत्थर के छाती को कुरेद कर
    अपने धुंधकारी आँच से धधका तो सकते हो

    अंगारा बनने का आह्वान करती सुंदर और गहन रचना

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  16. खुद को परख लो तो हीरा हो जाओ
    यदि नहीं तो अपने कोने-कातर में दबी
    चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
    एक आग तो पैदा कर सकते हो

    ....वाह! अपने अन्दर की आग को पहचानने की प्रेरणा देती अद्भुत रचना..

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  17. अँधेरे को हराकर ही उजाले का साम्राज्य फल फूल सकता है. सुंदर भाव सुंदर कविता.

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  18. एक पत्थर के माध्यम से बहुत कुछ कहने का सफल प्रयास ...
    लाजवाब रचना ...

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  19. bahut hee gehan, prerak aur manneey rachna. Badhai.

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  20. वो पारस पत्थर नहीं हो पाओ
    तो कोई बात नहीं
    खुद को परख लो तो हीरा हो जाओ
    यदि नहीं तो अपने कोने-कातर में दबी
    चिंगारियों को रगड़ तो सकते हो
    एक आग तो पैदा कर सकते हो

    vaakai bahut badhiya aahvan

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  21. मैं रौशनी को चिराग दिखाने की जुगत किया करा ,
    मौसमी रद्दोबदल का माज़रा जो समझ आ गया था । ~ प्रदीप यादव ~

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  22. बहुत सुन्दर भाव ....कर्म किये बिना फल संभव नहीं ...!हमेशा की तरह अद्वितीय रचना अमृता जी .

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  23. आह्वान और उद्घोष करती गहन रचना

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  24. बात तो बिलकुल सही है महोदया
    धन्यवाद

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  25. खुद को परख लो तो हीरा हो जाओ ... prernaa ki santusti ya ek satynishth salah ...
    Saadho Aa. Amrita ji ...

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  26. एक-एक रचना झकझोर रही है मुझे, और जीवंत करती जा रही है।
    आभार है आपका।

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  27. संग्रहनीय है। बारम्बार पढ़ रहा हूँ।

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