हाँ ! तेरे चरणों पर, बस लोट- लोट जाऊँ
हाँ ! माथा पटक- पटक कर, तुम्हें मनाऊँ
बता तो हृदय चीर- चीर, क्या सब बताऊँ ?
मेरी हरहर- सी वेदना के प्रचंड प्रवाह को
मेरे शिव ! तेरी जटा में अब कैसे समाऊँ ?
भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम
विह्वल व्यथा अधीर है, अब चपेट दो तुम
ये व्याधि ही परिधीर है, अब झपेट लो तुम
बस तेरी जटा में ही, बँध कर रहना है मुझे
अपने उस एक लट को भी, लपेट लो तुम
हाँ ! नहीं- नहीं, अब और बहा नहीं जाता है
हाँ ! विपदा में, अब और रहा नहीं जाता है
इस असह्य विरह को भी, सहा नहीं जाता है
तू बता, कि कैसे और क्या- क्या करूँ- कहूँ ?
वेग वेदना का, अब और महा नहीं जाता है
कहो तो ! अश्रुओं से चरणों को पखारती रहूँ
क्षतविक्षत- सी लहूलुहान हो कर पुकारती रहूँ
कभी तो सुनोगे मेरी, मानकर मैं गुहारती रहूँ
मेरी वेदना बाँध लो अब अपनी जटा में मेरे शिव !
या दुख-दुखकर ही तुम्हें टेरनि से पुचकारती रहूँ ?