Social:

Sunday, November 6, 2022

मुग्ध उन्नत चेतना भी ..........

नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है

शत- शत लहरियों के संग कोई खो रहा है

गगन में जैसे निर्बंध बहती वायु डोलती है

मुग्ध उन्नत चेतना भी न जाने क्या बोलती है ?


प्राणों से प्रतिध्वनि सुन कोई ध्वनि खोजता है

प्रणयी पुदगल को कोई निर्वेद-सा सरोजता है 

जैसे उमगित अंग तट के पार कुछ उमड़ती है 

वैसे ही परितृप्त हृदय में भी तृष्णा घुमड़ती है


जैसे रतकूजित कलियाँ चटक कर महमहाती है

जैसे सृष्टि गर्भकेसरिया- सी और फैल जाती है

कण- कण अनगिन स्फुरणाओं से डगमगाता है

एक व्याप्ति- सी छाती है, वय सिमट जाता है 


उस तल पर कुछ और से भी और घट जाता है

तब तो वह अनकहा भी चुप कहाँ रह पाता है ?

सूक्ष्म अनुभूतियाँ किंचित ही स्वर पा जाती हैं 

और विकलता उस अभिव्यक्ति से छा जाती है ।


12 comments:

  1. एक व्याप्ति सी छाती है, वय मिट जाता है,,,,,,,,,,,,वाह!!

    ReplyDelete
  2. अभव्यक्ति से विकलता का छाना
    तीर जैसे हृदयपटल पर चुभ जाना
    अनकहा नहीं रहता फिर कुछ भी
    सब जैसे सबके सम्मुख आ जाना ।

    चेतना भी कब अपनेआप डोली है
    प्रयास से जैसे हवा का झोंका आया है
    अनुभवों की थाती को अनुराग से बस
    मन के घेरों को ज़रा सा हटाया है ।

    बस यूँ ही पढ़ते पढ़ते कुछ भी लिखा गया । जितनी बार पढ़ी ये रचना एक नया अर्थ दे रही है । गहन अभव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०७-११-२०२२ ) को 'नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है'(चर्चा अंक-४६०५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  4. परितृप्त हृदय में भी तृष्णा घुमड़ती है !! वाह ! और यही तृष्णा तो विकलता को जन्म देती है, जैसे नदी मिली सागर से फिर वाष्प बनी और फिर बरसी बादल बनकर नदिया में, चली सागर से मिलने, यही क्रम न जाने कब से चल रहा है

    ReplyDelete
  5. अनुपम सृजन अभिनंदन आदरणीया ।

    ReplyDelete
  6. वाह आनंद आ गया...प्राणों से प्रतिध्वनि सुन कोई ध्वनि खोजता है

    प्रणयी पुदगल को कोई निर्वेद-सा सरोजता है

    जैसे उमगित अंग तट के पार कुछ उमड़ती है

    वैसे ही परितृप्त हृदय में भी तृष्णा घुमड़ती है...अमृता जी, बहुत ही शानदार ...

    ReplyDelete
  7. बेहद खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
  8. गहन भावों की अप्रतिम अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ अमृता जी ! सादर सस्नेह वन्दे !

      Delete