हाँ ! तेरे चरणों पर, बस लोट- लोट जाऊँ
हाँ ! माथा पटक- पटक कर, तुम्हें मनाऊँ
बता तो हृदय चीर- चीर, क्या सब बताऊँ ?
मेरी हरहर- सी वेदना के प्रचंड प्रवाह को
मेरे शिव ! तेरी जटा में अब कैसे समाऊँ ?
भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम
विह्वल व्यथा अधीर है, अब चपेट दो तुम
ये व्याधि ही परिधीर है, अब झपेट लो तुम
बस तेरी जटा में ही, बँध कर रहना है मुझे
अपने उस एक लट को भी, लपेट लो तुम
हाँ ! नहीं- नहीं, अब और बहा नहीं जाता है
हाँ ! विपदा में, अब और रहा नहीं जाता है
इस असह्य विरह को भी, सहा नहीं जाता है
तू बता, कि कैसे और क्या- क्या करूँ- कहूँ ?
वेग वेदना का, अब और महा नहीं जाता है
कहो तो ! अश्रुओं से चरणों को पखारती रहूँ
क्षतविक्षत- सी लहूलुहान हो कर पुकारती रहूँ
कभी तो सुनोगे मेरी, मानकर मैं गुहारती रहूँ
मेरी वेदना बाँध लो अब अपनी जटा में मेरे शिव !
या दुख-दुखकर ही तुम्हें टेरनि से पुचकारती रहूँ ?
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अदभुद
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अद्भुत..,अप्रतिम..,अभिनव एवं अभिराम सृजन !!
ReplyDeleteसादर सस्नेह वन्दे अमृता जी !!
अद्भुत!
ReplyDeleteवाह वाह! भाव पूर्ण
ReplyDeleteसहने का समय समाप्त हुआ। अब तो आ जाओ।
ReplyDeleteकब तक कब तक सहन करें! बहुत सुंदर।
मेरी हरहर- सी वेदना के प्रचंड प्रवाह को
ReplyDeleteमेरे शिव ! तेरी जटा में अब कैसे समाऊँ ?
बहुत ही भावपूर्ण अप्रतिम सृजन
वाह!!!!
हृदय की पीड़ा गंगा सम अथाह हो जाए तो शिव ही सँभाल सकते हैं। शब्द प्रयोग अद्भुत है रचना में।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना
ReplyDeleteवाह, सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteदावानल-सी धधकती वेदना की मर्मांतक अभिव्यक्ति प्रिय अमृता जी।वेदना के प्रचंड भागीरथी प्रवाह के प्रहार को शिव की जटाएँ ही थाम सकती हैं।और शिव इस पुकार को ना सुनेंगे तो कौन सुनेगा।उन्हें सुनना ही होगा।आपकी रचनात्मकता का एक और सुन्दर उदाहरण 👌👌👌🙏
ReplyDeleteदावानल-सी धधकती वेदना की मर्मांतक अभिव्यक्ति प्रिय अमृता जी।वेदना के प्रचंड भागीरथी प्रवाह के प्रहार को शिव की जटाएँ ही थाम सकती हैं।और शिव इस पुकार को ना सुनेंगे तो कौन सुनेगा।उन्हें सुनना ही होगा।आपकी रचनात्मकता का एक और सुन्दर उदाहरण 👌👌👌🙏
ReplyDeleteआपकी पुकार सुनकर शिव आ ही नहीं गए हैं उन्होंने ही इस साहित्य गंगा को बहाया है
ReplyDeleteश्र्लाघनीय सृजन ! भाव विस्तार अंतर तक उतरता
ReplyDeleteथक गई गंगा अब हे शिव उसे वापस अपनी जटाओं में बांध लो, हार गई गंगा भागीरथ का अथक प्रयास भी अब भूलाना चाहती है।
अप्रतिम।
शिव से गंगा अत्यंत अंतरंग संवाद !
ReplyDeleteअद्भुत
जय शिव शम्भू !
अद्भुत सृजन
ReplyDeleteरोचक आपके अपने अंदाज़ की रचना ... लाजवाब ...
ReplyDeleteअंतर की पुकार भोलेनाथ तक ज़रूर पहुंची होगी... अप्रतिम भाव, अद्भुत अद्भुत...
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ शुभकामनाएँ अमृता जी 💐🙏
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय रोचक रचना शुभकामनायें।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDelete