भीखमंगा बनकर सबसे
मोती मांगने का चलन है
बोनस में मिलते दुत्कार का
करता कौन आकलन है...
अपने ही प्राणों में दौड़ती
कड़वाहटों का जलन है , पर
एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप
करने में ही सभी मगन हैं...
मारे शर्म के पाताल में
कहीं छुप गया गगन है
भागीरथी-कतार देखकर तो
उसका बढ़ रहा भरम है...
भूल-चूक से भूल हो तो
ऐसी कोई बात नहीं है
अँधेरे को भी जो छलता है
वो तो कोई रात नहीं है...
कालिख से पुता उजाला
अपने ब्रांड को भजा रहा है
सफेदी की चमकार का हवाला दे
हाट-घाट पर दूकान सजा रहा है...
मछली तो फंसने के लिए होती है
और मल्टी-चारा भी कमाल है
मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...
सुख तो कोई दुर्लभ चीज नहीं
बस नीचे गिरते जाना है
बिन सोचे वो सब कर के
इस दुनिया का कर्ज चुकाना है...
जिन्हें तकलीफ है किसी से
चुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे .