कि पीर-सी लगे जुन्हाई
चाँद चुट-चुट चुटकी बजाए
मंद,मदिर-सा मलय लहराए
पर मेरे व्याकुल मन के लिए
मेरे प्रीत की पुकार न आये
न ही बाजे प्राणों की शहनाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
नदियाँ पतुरिया-सी पायल बजाये
रात की रानी चूड़ियाँ खनकाए
बगिया में बिरही-बहार छिपकर
गोपन-बिध से मुझे रिझाए
पर बेसुधी है मुझपर छाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
मन नहीं लगता क्या करूँ ?
प्रण नहीं निभता क्या करूँ ?
कुंठित-शंकित हर साँस लिए
दिन नहीं उगता क्या करूँ ?
न ही आई सुधि की पुरवाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
आँखों में सपनों का खेला
अधर तक है अश्रु का रेला
कान में मेरे कोई ये कहता
कि लागूँ मैं खुद को ही मेला
खीजकर चेतना कसमसाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
मेरे गीतों को जग गाये
अपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
आह! मेरी आह उसे छू न पाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
ये कौन-सी रुत है आई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई .
( जुन्हाई - चाँदनी )
मेरे गीतों को जग गाये
ReplyDeleteअपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
वाह ... बहुत खूब
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
ReplyDeleteन रोया कर, बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
.....................................
बहुत खूबसूरती से पीर को उकेरा है ... सुंदर रचना ।
ReplyDeleteमेरे गीतों को जग गाये
ReplyDeleteअपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
आह! मेरी आह उसे छू न पाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई....बहुत सुन्दर भाव..
गीत अपने,अर्थ दूजे के .... यही तो होता आया है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात..
नदियाँ पतुरिया-सी पायल बजाये
रात की रानी चूड़ियाँ खनकाए
बगिया में बिरही-बहार छिपकर
गोपन-बिध से मुझे रिझाए
पर बेसुधी है मुझपर छाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
प्यारा गीत।
ReplyDeleteवाह ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
मेरे गीतों को जग गाये
अपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
आह! मेरी आह उसे छू न पाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
बहुत प्यारा गीत..
अनु
भावों की बाँसुरी पर मीठे राग भरा सुंदर गीत।
ReplyDeleteखूबशूरत मनभावन बहुत प्यारा सुंदर गीत,,,,
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
Amrita,
ReplyDeleteJISKE LIYE SAB KUCHCHH KIYAA USE HI SAMAJH NAA AAYE TO MAN KO KAISAA LAGTAA HAI BAHUT SUNDER SHABDON MEIN KAHAA.
Take care
न जाने क्यों अपने बहुत नजदीक लगी है इसकी हर स्तर ......
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteनदियाँ पतुरिया-सी पायल बजाये
ReplyDeleteरात की रानी चूड़ियाँ खनकाए
बगिया में बिरही-बहार छिपकर
गोपन-बिध से मुझे रिझाए
पर बेसुधी है मुझपर छाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
बहुत ही सुन्दर नहीं मंत्र मुग्ध कर देने वाली अनुभूति की अभिव्यक्ति
सच है ऐसी मनस्थिति में सुखद क्रिया-व्यापार भी काटने दौड़ते हैं -बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुदंर गीत है. शायद मन के आत्मसम्मोहन की एक अवस्था से निकला गीत है.
ReplyDeleteमेरे गीतों को जग गाये
ReplyDeleteअपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
वाह वाह....बहुत ही सुन्दर ।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
मेरे गीतों को जग गाये
ReplyDeleteअपना सौ-सौ अर्थ लगाए
जिसके लिए प्राण गीत रचे
बस उसे ही समझ न आये
हमेशा की तरह प्रभावित करती रचना
बड़ा ही प्यारा गीत है...
ReplyDeleteअच्छा हुआ जुन्हाई का अर्थ बता दिया ..
ReplyDeleteतब फिर से कविता पढी :-)
मुझे वियोग की कविता न जाने क्यों नहीं रुचती ?
यह तो निरे वियोग की है :-(
कविता शिल्प भाव प्रस्तुति में बहुत प्रभावी है -मैंने तो बस अपने रूचि की बात कही है ऊपर!
ReplyDeletesunder bhavuk rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .......
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
ReplyDeleteअब शब्द नहीं होते मेरे पास प्रसंशा को. क्या लिखूं ?
ReplyDeletebahut sunder rachna
ReplyDeletebadhai aapko
आँखों में सपनों का खेला
ReplyDeleteअधर तक है अश्रु का रेला
कान में मेरे कोई ये कहता
कि लागूँ मैं खुद को ही मेला
खीजकर चेतना कसमसाई
कि पीर-सी लगे जुन्हाई
...वाह! बहुत सुन्दर अहसास और उनकी लाज़वाब अभिव्यक्ति...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआपकी हर रचना अच्छी लगती है।मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति
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