सूक्ष्म से
सूक्ष्मतर कसौटी पर
जीवन दृष्टि को
ऐसे कसना
जैसे
अपने विष से
अपने को डसना ....
गहराई की
गहराई में भी
ऐसे उतरना
जैसे
अपनी केंचुली को
अपनापा से कुतरना .....
महत्वप्रियता
सफलता
लोकप्रियता
अमरता आदि को
रेंग कर
ऐसे
आगे बढ़ जाना
जैसे
जीवन - मूल्यों की
महत्ता को
प्रेरणा स्वरूप पाना .....
जैसी होती है
कवित्त - शक्ति
वैसी ही
होती है
अंतःशून्यता की
भाषिक अभिव्यक्ति .....
जब
प्रश्न उठता है
कि प्रासंगिक कौन ?
तब
कवि तो
होता है मौन
पर कविता तो
हो जाती है
सार्वजनिक
सार्वकालिक
सार्वभौम .
सूक्ष्मतर कसौटी पर
जीवन दृष्टि को
ऐसे कसना
जैसे
अपने विष से
अपने को डसना ....
गहराई की
गहराई में भी
ऐसे उतरना
जैसे
अपनी केंचुली को
अपनापा से कुतरना .....
महत्वप्रियता
सफलता
लोकप्रियता
अमरता आदि को
रेंग कर
ऐसे
आगे बढ़ जाना
जैसे
जीवन - मूल्यों की
महत्ता को
प्रेरणा स्वरूप पाना .....
जैसी होती है
कवित्त - शक्ति
वैसी ही
होती है
अंतःशून्यता की
भाषिक अभिव्यक्ति .....
जब
प्रश्न उठता है
कि प्रासंगिक कौन ?
तब
कवि तो
होता है मौन
पर कविता तो
हो जाती है
सार्वजनिक
सार्वकालिक
सार्वभौम .