कहो तो
तुम्हारे लिए
रचने को तो मैं रच दूँ
रूप- यौवन का नित नया संसार
तुम्हें स्वयं में , ऐसे डुबा लूँ कि
मैं ही हो जाऊँ माँझी और मैं ही मँझधार........
कहो तो , तुम्हारे लिए
नित नये गीतों को दे दूँ मैं उत्तेजित उद्गार
कहो तो , नित नई वीणा पर छेड़ दूँ रति- राग अनिवार
कहो तो , नित नये बाँसुरी पर उठा दूँ
अनउठी कामनाओं को बारंबार
कहो तो , इस मेघावरण में मृदंग पर
थाप दे- देकर थिरका दूँ मैं मदकल मल्हार
और कहो तो
तुम्हारी थरथराती वासनाओं को
दे दूँ मैं तड़फती हुई तृप्ति की धार.......
कहो तो
तुम्हारे लिए
अपने प्रत्येक पंखुड़ी पर मैं
प्राणपण से परिमल पराग पसार दूँ
कहो तो , कमलिनी को कलि से फूल बनने में
जो क्लेश होता है , उसे मैं बिसार दूँ
कहो तो , तुम्हारे प्रत्येक याम के कसक को
मैं मतवाली मधु- यामिनी से संवार दूँ
या कहो तो
संकल्पित स्तंभन बन कर मैं
संभ्रांत स्खलन से तुम्हें मैं उबार लूँ ...........
कहो तो
तुम्हारे लिए
रचने को तो मैं रच दूँ
रंग- यौवन का नित नया संसार
पर प्रिय !
मैं हूँ इस पार और तुम हो उस पार
और बीच में है , अलंघ्य वासनाओं का पारापार
तब भी तुम कहो तो
तुम्हारे लिए
मैं ही कर लेती हूँ पार
या कर लेती हूँ सब सहज स्वीकार .
तुम्हारे लिए
रचने को तो मैं रच दूँ
रूप- यौवन का नित नया संसार
तुम्हें स्वयं में , ऐसे डुबा लूँ कि
मैं ही हो जाऊँ माँझी और मैं ही मँझधार........
कहो तो , तुम्हारे लिए
नित नये गीतों को दे दूँ मैं उत्तेजित उद्गार
कहो तो , नित नई वीणा पर छेड़ दूँ रति- राग अनिवार
कहो तो , नित नये बाँसुरी पर उठा दूँ
अनउठी कामनाओं को बारंबार
कहो तो , इस मेघावरण में मृदंग पर
थाप दे- देकर थिरका दूँ मैं मदकल मल्हार
और कहो तो
तुम्हारी थरथराती वासनाओं को
दे दूँ मैं तड़फती हुई तृप्ति की धार.......
कहो तो
तुम्हारे लिए
अपने प्रत्येक पंखुड़ी पर मैं
प्राणपण से परिमल पराग पसार दूँ
कहो तो , कमलिनी को कलि से फूल बनने में
जो क्लेश होता है , उसे मैं बिसार दूँ
कहो तो , तुम्हारे प्रत्येक याम के कसक को
मैं मतवाली मधु- यामिनी से संवार दूँ
या कहो तो
संकल्पित स्तंभन बन कर मैं
संभ्रांत स्खलन से तुम्हें मैं उबार लूँ ...........
कहो तो
तुम्हारे लिए
रचने को तो मैं रच दूँ
रंग- यौवन का नित नया संसार
पर प्रिय !
मैं हूँ इस पार और तुम हो उस पार
और बीच में है , अलंघ्य वासनाओं का पारापार
तब भी तुम कहो तो
तुम्हारे लिए
मैं ही कर लेती हूँ पार
या कर लेती हूँ सब सहज स्वीकार .
बहुत ही सुंदर और समर्पण के भाव, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteदोनों अलग अलग छोर (विचारों ) पर फिर भी समर्पण भाव .गहरी डुबकी लगायी है .
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सात साल पहले भारतीय मुद्रा को मिला था " ₹ " “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्य होगा वह प्रियतम जो ऐसे शब्दाहार पायेगा.
ReplyDeleteरूप यौवन का क्रियान्वित पक्ष कितना मदपूर्ण होगा, जब उसका कविताई वर्णन ही इतना अधिक है.
सहमत। हूँ।
Deleteधन्यभागी वह कोई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...मनभावन संवाद
ReplyDeleteभाषा, भाव और संबंधों के व्याकरण पर कूदती-फाँदती कविता.....बहुत सुंदर.
ReplyDeleteदुविधा भी और विकल मन के समर्पित भाव भी !! किसी तापसी के मन की बात लगती है !!
ReplyDeleteआप के अनुमान से सहमत हूँ।
DeleteAti sunder rachna
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