सूक्ष्म से
सूक्ष्मतर कसौटी पर
जीवन दृष्टि को
ऐसे कसना
जैसे
अपने विष से
अपने को डसना ....
गहराई की
गहराई में भी
ऐसे उतरना
जैसे
अपनी केंचुली को
अपनापा से कुतरना .....
महत्वप्रियता
सफलता
लोकप्रियता
अमरता आदि को
रेंग कर
ऐसे
आगे बढ़ जाना
जैसे
जीवन - मूल्यों की
महत्ता को
प्रेरणा स्वरूप पाना .....
जैसी होती है
कवित्त - शक्ति
वैसी ही
होती है
अंतःशून्यता की
भाषिक अभिव्यक्ति .....
जब
प्रश्न उठता है
कि प्रासंगिक कौन ?
तब
कवि तो
होता है मौन
पर कविता तो
हो जाती है
सार्वजनिक
सार्वकालिक
सार्वभौम .
सूक्ष्मतर कसौटी पर
जीवन दृष्टि को
ऐसे कसना
जैसे
अपने विष से
अपने को डसना ....
गहराई की
गहराई में भी
ऐसे उतरना
जैसे
अपनी केंचुली को
अपनापा से कुतरना .....
महत्वप्रियता
सफलता
लोकप्रियता
अमरता आदि को
रेंग कर
ऐसे
आगे बढ़ जाना
जैसे
जीवन - मूल्यों की
महत्ता को
प्रेरणा स्वरूप पाना .....
जैसी होती है
कवित्त - शक्ति
वैसी ही
होती है
अंतःशून्यता की
भाषिक अभिव्यक्ति .....
जब
प्रश्न उठता है
कि प्रासंगिक कौन ?
तब
कवि तो
होता है मौन
पर कविता तो
हो जाती है
सार्वजनिक
सार्वकालिक
सार्वभौम .
बहुत सही और सटीक कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वाकई , बहुत खूब !
ReplyDeleteकवि तो
ReplyDeleteहोता है मौन
पर कविता तो
हो जाती है
सार्वजनिक
सार्वकालिक
सार्वभौम
कवि और कविता के उद्देश्य को बेहतर अभिव्यक्ति दी है आपने इन शब्दों के माध्यम से.
जैसी होती है कवित्त शक्ति
ReplyDeleteवैसी ही होती है अंतः शून्यता की
भाषिक अभिव्यक्ति
कवि और कविता के मर्म को लिख दिया है .
गहराई की
ReplyDeleteगहराई में भी
ऐसे उतरना
जैसे
अपनी केंचुली को
अपनापा से कुतरना .....
बहुत ही कठिन अभिव्यक्ति है लेकिन स्वभाविक ही संप्रेषित हुई है. 'अंतः शून्यता की भाषिक अभिव्यक्ति' मर्म है कविता का. बहुत ही सुंदर.
बकवास।अपना ही तो बिचार है। जैसा सोचें।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "कौन सी बिरयानी !!??" - ब्लॉग बुलेटिन , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसूक्ष्म जीवन दृष्टि अति प्रभावशाली
ReplyDeleteकोई हलन नहीं कोई चलन नहीं वाली कविता पर मेरी टिप्पणी प्रकाशित नहीं हुई. कृपया देख लें.
Deleteकविता में यह क्षमता है -वह मन का संस्कार करती है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक दर्शन..कवि जब मौन होता है तभी कविता जन्मती है..
ReplyDeleteकविता कुखर है इसलिए समय के साथ आगे निरंतर बढती रहती है ...
ReplyDeleteवाह ... गहं और सूक्ष्म भाव
ReplyDelete*गहन
ReplyDeleteकठिन अभिव्यक्ति सुंदर और सटीक
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