इससे ज्यादा
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
कि बेतरतीब से बिखरे
बेजुबान हर्फों को
बड़ी तरकीब से
सजाने के बावजूद
मतलब की बस्ती में बस
मातम पसरा होता है....
वो उँगलियों के सहारे
कागज़ पर खड़ी कलम
इस हाले-दिल को
खूब जानती है
और अपनी मज़बूरी पर
कोई मलाल न करते हुए
घिसट-घिसट कर ही सही
दिए हुकुम को बस मानती है....
कोई तो आकर
मुझको समझाए
कि महज दिल्लगी नहीं है
उम्दा शायरी करना
गर करना ही है तो पहले
इक दर्द का दरिया खोदो
फिर उसमें कूद-कूदकर
सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....
शायद हर्फ़-दर-हर्फ़
महल बनाने वालों ने ही
मुझे इसतरह बहकाया है
व मेरे नाजुक लबों पर
उस 'आह-वाह' का
असली-नकली जाम लगाकर
हाय! किसकदर परकाया है....
असलियत जो भी हो
पर ये कलमकशी भी
फ़ितरतन मैकशी से
जरा सा भी कम नहीं है
और ये बेखुदी
आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
इस खुदी को ही पी जाए
तो कोई ग़म नहीं है....
अब बस
इतनी सी ख्वाहिश है कि
इस महफ़िल की आवाज में
हर किसी को सुनाई देती रहे
अपनी आवाज
वैसे भी क्या ज़ज्ब करने पर
कभी छुपा है किसी का
शौके-बेपनाह का राज ?
आज वही राज जो खुला ही है
उसे फिर से मैं खोलती हूँ
कि इस महफ़िल को
गुलजार करने वालों !
आप सबों को दिल से
इन बेतरतीब हर्फों के सहारे ही
शुक्रिया ! शुक्रिया ! शुक्रिया !
शुक्रिया ! बोलती हूँ .
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
कि बेतरतीब से बिखरे
बेजुबान हर्फों को
बड़ी तरकीब से
सजाने के बावजूद
मतलब की बस्ती में बस
मातम पसरा होता है....
वो उँगलियों के सहारे
कागज़ पर खड़ी कलम
इस हाले-दिल को
खूब जानती है
और अपनी मज़बूरी पर
कोई मलाल न करते हुए
घिसट-घिसट कर ही सही
दिए हुकुम को बस मानती है....
कोई तो आकर
मुझको समझाए
कि महज दिल्लगी नहीं है
उम्दा शायरी करना
गर करना ही है तो पहले
इक दर्द का दरिया खोदो
फिर उसमें कूद-कूदकर
सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....
शायद हर्फ़-दर-हर्फ़
महल बनाने वालों ने ही
मुझे इसतरह बहकाया है
व मेरे नाजुक लबों पर
उस 'आह-वाह' का
असली-नकली जाम लगाकर
हाय! किसकदर परकाया है....
असलियत जो भी हो
पर ये कलमकशी भी
फ़ितरतन मैकशी से
जरा सा भी कम नहीं है
और ये बेखुदी
आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
इस खुदी को ही पी जाए
तो कोई ग़म नहीं है....
अब बस
इतनी सी ख्वाहिश है कि
इस महफ़िल की आवाज में
हर किसी को सुनाई देती रहे
अपनी आवाज
वैसे भी क्या ज़ज्ब करने पर
कभी छुपा है किसी का
शौके-बेपनाह का राज ?
आज वही राज जो खुला ही है
उसे फिर से मैं खोलती हूँ
कि इस महफ़िल को
गुलजार करने वालों !
आप सबों को दिल से
इन बेतरतीब हर्फों के सहारे ही
शुक्रिया ! शुक्रिया ! शुक्रिया !
शुक्रिया ! बोलती हूँ .