सब तरफ से
भलभल करता हुआ
प्रशस्ति-गान को सुन-सुनकर
आज मेरा मन भी
भाट हुआ जा रहा है.....
जैसे कोई रूमानी रेशम
टट्टर को देख-देखकर
खुद ही टाट हुआ जा रहा है....
अब तक के इतिहास का
आह! क्या रोमांचक पल है
इसलिए तो छलियन शब्दों से
आज छँटा हुआ सारा छल है
और अपनी छटकती अनेकता में
असली एकता का नारा लगाते हुए
सब भावुक हो-हो कर
कुछ- न-कुछ कहे जा रहे है
साथ ही उनमे से कुछ तो
प्रशंसकों की खुली प्रतियोगिता में
अव्वल आने की लिए
अजीबों-गरीब हरकत भी किये जा रहे हैं....
क्या महावीर के कैवल्य का
या बुद्ध के निर्वाण का
ऐसा लुभावना दृश्य रहा होगा ?
जो आज के इस अवतारी भगवान के
महाभिनिष्क्रमण का दृश्य है ...
आजतक के सारे रिकार्ड को तोड़कर
नया रिकार्ड बन रहा है
और जिनका कार्ड लकी है उन्हें
मीडिया भी बड़ा से बड़ा फुटेज दे रहा है ...
जो सिरे से नास्तिक हैं
वे अपने शक-शुबहा को
गधे के सिंग से तुलना कर रहे हैं
और जो आस्तिक हैं
वे अपने नये क्रीड़क भगवान के
इस क्रांतिकारी क्रीड़ा को
अविश्वसनीय बनाने का बीड़ा उठा रहे हैं.....
सच में धन्य हुई जा रही है धरती
उससे भी कहीं ज्यादा
धन्य हुए जा रहे हैं हम
और सामूहिक प्रशस्ति-गान से
जैसे-तैसे नये भगवान का
स्तुति पर स्तुति किये जा रहे हैं....
वैसे भाटों के भाड़ में भरभरा कर
अबतक मैंने कोई
विशेष महारथ तो हासिल नहीं किया है
लेकिन मेरी भी यही तमन्ना है कि
मेरा ये प्रशस्ति-गान ही
चारो तरफ से उठता हुआ शब्द-भाटा में
सब गान को कोरस में धकेल कर
सबसे ऊँचा तान हो जाए
और अपने इस अनजान प्रशंसक से
अपनी इतनी सुन्दर प्रशंसा को सुनकर
सबका नया भगवान भी
न चाहते हुए ही हैरान हो जाए .
भलभल करता हुआ
प्रशस्ति-गान को सुन-सुनकर
आज मेरा मन भी
भाट हुआ जा रहा है.....
जैसे कोई रूमानी रेशम
टट्टर को देख-देखकर
खुद ही टाट हुआ जा रहा है....
अब तक के इतिहास का
आह! क्या रोमांचक पल है
इसलिए तो छलियन शब्दों से
आज छँटा हुआ सारा छल है
और अपनी छटकती अनेकता में
असली एकता का नारा लगाते हुए
सब भावुक हो-हो कर
कुछ- न-कुछ कहे जा रहे है
साथ ही उनमे से कुछ तो
प्रशंसकों की खुली प्रतियोगिता में
अव्वल आने की लिए
अजीबों-गरीब हरकत भी किये जा रहे हैं....
क्या महावीर के कैवल्य का
या बुद्ध के निर्वाण का
ऐसा लुभावना दृश्य रहा होगा ?
जो आज के इस अवतारी भगवान के
महाभिनिष्क्रमण का दृश्य है ...
आजतक के सारे रिकार्ड को तोड़कर
नया रिकार्ड बन रहा है
और जिनका कार्ड लकी है उन्हें
मीडिया भी बड़ा से बड़ा फुटेज दे रहा है ...
जो सिरे से नास्तिक हैं
वे अपने शक-शुबहा को
गधे के सिंग से तुलना कर रहे हैं
और जो आस्तिक हैं
वे अपने नये क्रीड़क भगवान के
इस क्रांतिकारी क्रीड़ा को
अविश्वसनीय बनाने का बीड़ा उठा रहे हैं.....
सच में धन्य हुई जा रही है धरती
उससे भी कहीं ज्यादा
धन्य हुए जा रहे हैं हम
और सामूहिक प्रशस्ति-गान से
जैसे-तैसे नये भगवान का
स्तुति पर स्तुति किये जा रहे हैं....
वैसे भाटों के भाड़ में भरभरा कर
अबतक मैंने कोई
विशेष महारथ तो हासिल नहीं किया है
लेकिन मेरी भी यही तमन्ना है कि
मेरा ये प्रशस्ति-गान ही
चारो तरफ से उठता हुआ शब्द-भाटा में
सब गान को कोरस में धकेल कर
सबसे ऊँचा तान हो जाए
और अपने इस अनजान प्रशंसक से
अपनी इतनी सुन्दर प्रशंसा को सुनकर
सबका नया भगवान भी
न चाहते हुए ही हैरान हो जाए .
व्यापारिक वह धूर्तता, इधर मूर्खता शुद्ध |
ReplyDeleteमहिमामंडित होय जग, जीत-जीत हर युद्ध |
जीत-जीत हर युद्ध , अहिंसा पूज बुद्ध की |
हुवे टिकट कुल ब्लैक, फैंस को बोर्ड क्रुद्ध की |
सचिन बहुत आभार, लगे रविकर अपनापा |
कृपा ईश की पाय, आज कण कण में व्यापा |
जब कोने कोने में हर जगह हर जन निर्भट भाट होकर जयगान कर रहे हों तो प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि कहीं इन्हें अति-वाचालता का रोग तो नहीं हो गया. शायद वही रोग ही है. मैं तो कुख्यात हूँ पिछले ३-४ सालों से कुफ्र के लिए.
ReplyDeleteवाह .. सुदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
अवतारी भगवान के
ReplyDeleteमहाभिनिष्क्रमण का दृश्य है.........वाकई अवतारी भगवान के मानव होने के लिए तो उसके प्रति पूरी भावनाएं हैं। लेकिन अगर ये भगवान हैं और पृथ्वी खासकर भारतीय भूखण्ड की समस्याओं को खेल बनने से नहीं रोक पा रहे हैं तो हैरत होना स्वाभाविक हैं। बेशक अब अपने महाभिनिष्क्रमण के चलते उन्होंने समस्या बने खेल को चोटी पर पहुंचा कर थाह तो दे ही दिया है। शायद अब उनके अनजान प्रशंसक और उनका प्रशस्ति-गान भगवान को सुनाई दे।
आज मेरा मन भी
ReplyDeleteभाट हुआ जा रहा है.....
वाह नई नई बातें नए नए शब्द ...
काव्य कला का अद्बुत कौशल। बिना भगवान के नाम लिए सार्थक विश्लेशण।
ReplyDeleteमाना के वह अपने क्षेत्र में अदबुद्ध है यह भी मान लेते हैं की उस क्षेत्र में उन जैसा कोई नहीं है न होगा कभी, इस नाते वह हमारे देश की शान है निसंदेह इस बात में कोई डोरे भी नहीं है। लेकिन किसी की प्रशंसा करना उसे जी जान से चाह ना अलग बात है,लेकिन उसे भगवान मान लेना ठीक नही मेरे हिसाब से वह भी हमारी और आपकी तरह इंसान ही हैं और उन्हें इंसान की सीमा तक रखना ही उचित है। क्यूंकि भगवान किसी एक क्षेत्र विशेष की विषेशता रखने वाले का नाम नहीं हो सकता।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने। देश भाट हुआ जा रहा है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteऐसे ही इंसान भगवान् बन जाता है...
ReplyDeleteअमृताजी आपने बहुत से लोगों के विचारों को स्वर दे दिया ......वाकई लोगों का यह बावलापन.....यह शौर्य गान ..... कुछ ज़रुरत से ज़यादा ही गया...... बहुत ही सुन्दर कटाक्ष .....!!!!
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है आपने , ⓤ50$, जै हो , धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६
सशक्त भाव बद्ध रचना प्रवाह लिए अर्थ गाम्भीर्य लिए।
ReplyDeletebahut pasand aayi ye rachna................
ReplyDeleteयही तो सदियों से होता रहा है इस देश में ..बहुत सुंदर रचना है आदरणीय निवेदिता जी ...सचिन के खेल से ज्यादा मैं शालीनता का मुरीद रहा .तरह तरह की उपमाएं तो लोग देते हैं पर ये सोचने की बात है की ये दीवानगी होने का कुछ न कुछ कारन तो होगा ही ..सचिन का फैन हूँ दुबिधा के स्थिति में हूँ ..लेकिन आपकी रचना हमेशा की तरह उत्तम है ..हैरान रह जाता हूँ जैसे सचिन बोल ददेखते ही शॉट निर्धारित कर लेते थे ..आप भी इधर घटना घटी नहीं उधर आपने एक सुंदर सुसज्जित रचना तैयार कर ली ..सादर
ReplyDeleteबहुत खूब ... सब राजनीति है ... अपनी अपनी दुकानें हर कोई चलाना चाहता है ... सचिन को भी अफ्सोस हो रहा होगा ...
ReplyDeleteआपने बहुत ही शशक्त भाव से पूरे प्राक्रण को शब्दों में उतरा है ...
सटीक विवेचन करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteमीडिया की दुकानदारी के कारण सब तमाशा बना हुआ है... बेहद कसी हुई पोस्ट..
ReplyDeleteआपने कितनों के दिल की बात कह दी है..
ReplyDeleteये देश कि उसकी मीडिया की पूरी सोच को दर्शा देता है जो सिर्फ इस नारे को भुनाने में रहती है कि "बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहिए" । पर इन सब में उसका तो कोई दोष नहीं दिखता जिसे "भगवान" बना दिया जाता है उसने कभी ये नहीं कहा । अपने कर्म के प्रति समर्पण इंसान को ऊंचाई तक लाता है । हाँ ये भांडों कि प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है इस देश में । आपके इस अनूठे और शानदार व्यंग्य ने जबर्दस्त समां बाँधा |
ReplyDeleteव्यापक वाईल्ड कार्ड को धुरी की और धकेलने की कोशिश .....
ReplyDeleteहा हा हा , नए क्रीडक भगवन कि पूजा अर्चना शुरू हो गई है कैमूर में .
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
बहुत सटीक व्यंग...कितना आसान है आज कल भगवान बनना...
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने .... सार्थकता लिये सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहम वंदन में कहाँ पीछे रहे हैं, सबसे धार्मिक लोग हैं न! बस धर्म जहाँ निभाना होता है, वहीँ कट लेते हैं. बहरहाल इस क्रीडक भगवान् के लिए ही सही, कुछ दिनों तक राजनीति के दानवों से मीडिया दूर तो रही!
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