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Thursday, November 21, 2013

कुछ भी हो सकता है ...

अब नट-नटी बहुत खुश हैं
जैसे उन्हें किसी खजाने का
कोई खोया रास्ता मिल गया हो
और वे अपने पुरखों को
मन ही मन करम अभागा कह कर
रस्सी और बांस से करतब करते हुए
देसी-विदेशी बैंकों में खाता खुलवाने के लिए
एक्सपर्ट से कांटेक्ट करने के साथ-साथ
खुद भी नेट पर सर्च कर रहे हैं....

अब अकड़ू बन्दर भी खुश है
वह पहली बार गले में पड़े पट्टे से
बड़ा सम्मान का अनुभव कर रहा है
और मदारी अनएस्पेक्टेड सम्मान को
कल्पना में ही सही
अपने गले में पट्टे सा लगाकर
कुछ विशेष विनम्रता और शालीनता का
विशेष परिचय दे रहा है
और अंदर ही अंदर
डमरू के डंके को थैंक्यू भी कह रहा है...

अब सांप भी अपने सेंसेक्स की
परवाह न करते हुए
बहक-बहक कर बावला हुआ जा रहा है
और सपेरा को बार-बार
ऐसे चूम रहा है कि वह अपने सपने में ही
किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में छापा हुआ
अपना लेख पढ़ने लगा है ....

पर सबसे ज्यादा खुश तो
अपने सर्कस का जोकर लग रहा है
पहले वह दस फीट उछलता था
अब बिना ताली के ही
बीस-बीस फीट उछलने लगा है
ये सोच-सोचकर कि
शायद कभी कहीं उससे खुश होकर
कोई पांच साल के लिए ही न सही
उसे गद्दी न दे दे
और वह अपने मुकुट के डिजायन को लेकर
अभी से ही बहुत टेंसन में है ....

पर बेचारे विदेशी
च: ..च: ..च: ...च: ...च: ....
हमसे कुछ ज्यादा ही डर गये हैं
और अपने सम्मानों का
जल्दी से जल्दी देशी पेटेंट करा रहे हैं
क्या पता हममें से कोई
कभी अति देशभक्त होकर
उनके सम्मानों को भी
उपहारों के रैंकिंग लिस्ट में
टॉप पर न सजा दे
और मनोरंजन के काउंटर पर
उनके करेंसी को भी
अपने टिकट में न भजा ले....

मतलब साफ़ है कि
अगर समय खुद ही आगे बढ़कर
ट्विस्ट करना चाहे तो
उसका सरप्राइज
कुछ भी हो सकता है
और रही बात अपने प्राइज की तो
वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .

26 comments:

  1. SATEEEEEEEEKKKKKKKKKKKK.....!!!!!!!!!!!

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  2. मजेदार
    आभार आदरणीया-

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  3. बहुत सुंदर और व्यंग्य से भरी कविता। एक नहीं कई संदर्भों को कविता में आपने समेटा हैं और लफ्फड, लताडें, थप्पडें मारी है की पढने वाला हंसे, खाने वाला हंसे... सभी हंसे। इस कविता को पढने के बाद भारतेंदु जी के 'अंधेर नगरी चौपट राजा' की याद प्रखरता आती है। आपको शायद मैंने पहले भी लिखा था कि आपकी कविता में जबरदस्त ताकत है और नागार्जुन जी की शैली और पुट को लेकर आती है। लेखन को संबाले रखे, खुब लिखे।

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  4. अभी तो मौसम गरम होना शुरू ही हुआ है...पहले कम्बल बंटे, फिर जलेबी .. फिर ये अपने जीभ की लम्बाई भी दिखाएँगे ...कुल मिला के पंचवर्षीय मेले की तयारी शुरू. इन रंगे-पुते चेहरों को चाल खेलते देखना अच्छा लगता था.. अब कमी खलती है.सुन्दर व्यंग्य-ढंग.

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  5. वाह अमृता जी, आपकी कलम की धार तीखी होती जा रही है...

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  6. वाकई किसी के अति देशभक्‍त होने का खतरा असली खतरा पैदा करनेवालों पर मंडराने लगा है।

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  7. वाऽहऽऽ…!!!!! बहुत खूब

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  8. कामयाब व बेहतरीन व्यंग्य तो लिखती ही हैं आप .... जिस तरह चुनिंदा शब्दों से आप शासन, सत्ता व सियासत पर प्रहार करती हैं, वो सबसे अलग होता है...

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  9. बहुत ख़ूब !
    अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग कथ्य को ज़्यादा प्रभावशाली बना रहा है।

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  10. वाह ....बहुत कमाल का सुंदर रचना ...

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  11. और रही बात अपने प्राइज की तो
    वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
    पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
    कभी भी नहीं खो सकता है .

    सच है ...इतने कमाल के उदाहरण कहाँ से लाती हैं आप अमृता जी

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  12. मतलब साफ़ है कि
    अगर समय खुद ही आगे बढ़कर
    ट्विस्ट करना चाहे तो
    उसका सरप्राइज
    कुछ भी हो सकता है
    और रही बात अपने प्राइज की तो
    वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
    पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
    कभी भी नहीं खो सकता है .

    यही है बॉटम लाइन इस रचना की।

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  13. आज तो रसमय होगी वाणी।
    वोट पडे तब सब ही बिगानी।

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  14. बहुत ही बढ़ियाँ रचना....
    :-)

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  15. और रही बात अपने प्राइज की तो
    वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
    पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
    कभी भी नहीं खो सकता है .
    .....लाज़वाब...क्या सटीक व्यंग है....

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  16. उडी बाबा इतने तीखे तीखे व्यंग्य बाण। ....... बड़े धोखे हैं इस राह में। ....... कहते हैं न १०० सुनार कि और १ लोहार की । एक ही चोट में सबका तिया-पांचा कर डाला । जियो जियो जियो । ये वाला तो बस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स :-

    पर सबसे ज्यादा खुश तो
    अपने सर्कस का जोकर लग रहा है
    पहले वह दस फीट उछलता था
    अब बिना ताली के ही
    बीस-बीस फीट उछलने लगा है
    ये सोच-सोचकर कि
    शायद कभी कहीं उससे खुश होकर
    कोई पांच साल के लिए ही न सही
    उसे गद्दी न दे दे
    और वह अपने मुकुट के डिजायन को लेकर
    अभी से ही बहुत टेंसन में है ....

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  17. बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  18. बहुत खूबसूरत रचना, लाजवाब !

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  19. जितनी कॉन्ट्रोवर्सि उतना नाम
    जितना उछालो
    सब सर आँखों पर
    बदलते परिवेश का बहुत सही नमूना

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  20. बिलकुल अलग तेवर इस बार ....सटीक व्यंग्य है ......!!कहाँ जा रहे हैं हम पता नहीं ....!!

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