अब नट-नटी बहुत खुश हैं
जैसे उन्हें किसी खजाने का
कोई खोया रास्ता मिल गया हो
और वे अपने पुरखों को
मन ही मन करम अभागा कह कर
रस्सी और बांस से करतब करते हुए
देसी-विदेशी बैंकों में खाता खुलवाने के लिए
एक्सपर्ट से कांटेक्ट करने के साथ-साथ
खुद भी नेट पर सर्च कर रहे हैं....
अब अकड़ू बन्दर भी खुश है
वह पहली बार गले में पड़े पट्टे से
बड़ा सम्मान का अनुभव कर रहा है
और मदारी अनएस्पेक्टेड सम्मान को
कल्पना में ही सही
अपने गले में पट्टे सा लगाकर
कुछ विशेष विनम्रता और शालीनता का
विशेष परिचय दे रहा है
और अंदर ही अंदर
डमरू के डंके को थैंक्यू भी कह रहा है...
अब सांप भी अपने सेंसेक्स की
परवाह न करते हुए
बहक-बहक कर बावला हुआ जा रहा है
और सपेरा को बार-बार
ऐसे चूम रहा है कि वह अपने सपने में ही
किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में छापा हुआ
अपना लेख पढ़ने लगा है ....
पर सबसे ज्यादा खुश तो
अपने सर्कस का जोकर लग रहा है
पहले वह दस फीट उछलता था
अब बिना ताली के ही
बीस-बीस फीट उछलने लगा है
ये सोच-सोचकर कि
शायद कभी कहीं उससे खुश होकर
कोई पांच साल के लिए ही न सही
उसे गद्दी न दे दे
और वह अपने मुकुट के डिजायन को लेकर
अभी से ही बहुत टेंसन में है ....
पर बेचारे विदेशी
च: ..च: ..च: ...च: ...च: ....
हमसे कुछ ज्यादा ही डर गये हैं
और अपने सम्मानों का
जल्दी से जल्दी देशी पेटेंट करा रहे हैं
क्या पता हममें से कोई
कभी अति देशभक्त होकर
उनके सम्मानों को भी
उपहारों के रैंकिंग लिस्ट में
टॉप पर न सजा दे
और मनोरंजन के काउंटर पर
उनके करेंसी को भी
अपने टिकट में न भजा ले....
मतलब साफ़ है कि
अगर समय खुद ही आगे बढ़कर
ट्विस्ट करना चाहे तो
उसका सरप्राइज
कुछ भी हो सकता है
और रही बात अपने प्राइज की तो
वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .
जैसे उन्हें किसी खजाने का
कोई खोया रास्ता मिल गया हो
और वे अपने पुरखों को
मन ही मन करम अभागा कह कर
रस्सी और बांस से करतब करते हुए
देसी-विदेशी बैंकों में खाता खुलवाने के लिए
एक्सपर्ट से कांटेक्ट करने के साथ-साथ
खुद भी नेट पर सर्च कर रहे हैं....
अब अकड़ू बन्दर भी खुश है
वह पहली बार गले में पड़े पट्टे से
बड़ा सम्मान का अनुभव कर रहा है
और मदारी अनएस्पेक्टेड सम्मान को
कल्पना में ही सही
अपने गले में पट्टे सा लगाकर
कुछ विशेष विनम्रता और शालीनता का
विशेष परिचय दे रहा है
और अंदर ही अंदर
डमरू के डंके को थैंक्यू भी कह रहा है...
अब सांप भी अपने सेंसेक्स की
परवाह न करते हुए
बहक-बहक कर बावला हुआ जा रहा है
और सपेरा को बार-बार
ऐसे चूम रहा है कि वह अपने सपने में ही
किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में छापा हुआ
अपना लेख पढ़ने लगा है ....
पर सबसे ज्यादा खुश तो
अपने सर्कस का जोकर लग रहा है
पहले वह दस फीट उछलता था
अब बिना ताली के ही
बीस-बीस फीट उछलने लगा है
ये सोच-सोचकर कि
शायद कभी कहीं उससे खुश होकर
कोई पांच साल के लिए ही न सही
उसे गद्दी न दे दे
और वह अपने मुकुट के डिजायन को लेकर
अभी से ही बहुत टेंसन में है ....
पर बेचारे विदेशी
च: ..च: ..च: ...च: ...च: ....
हमसे कुछ ज्यादा ही डर गये हैं
और अपने सम्मानों का
जल्दी से जल्दी देशी पेटेंट करा रहे हैं
क्या पता हममें से कोई
कभी अति देशभक्त होकर
उनके सम्मानों को भी
उपहारों के रैंकिंग लिस्ट में
टॉप पर न सजा दे
और मनोरंजन के काउंटर पर
उनके करेंसी को भी
अपने टिकट में न भजा ले....
मतलब साफ़ है कि
अगर समय खुद ही आगे बढ़कर
ट्विस्ट करना चाहे तो
उसका सरप्राइज
कुछ भी हो सकता है
और रही बात अपने प्राइज की तो
वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .
SATEEEEEEEEKKKKKKKKKKKK.....!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteखूब ..... एकदम सटीक
ReplyDeleteमजेदार
आभार आदरणीया-
मनोरंजक.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और व्यंग्य से भरी कविता। एक नहीं कई संदर्भों को कविता में आपने समेटा हैं और लफ्फड, लताडें, थप्पडें मारी है की पढने वाला हंसे, खाने वाला हंसे... सभी हंसे। इस कविता को पढने के बाद भारतेंदु जी के 'अंधेर नगरी चौपट राजा' की याद प्रखरता आती है। आपको शायद मैंने पहले भी लिखा था कि आपकी कविता में जबरदस्त ताकत है और नागार्जुन जी की शैली और पुट को लेकर आती है। लेखन को संबाले रखे, खुब लिखे।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
अभी तो मौसम गरम होना शुरू ही हुआ है...पहले कम्बल बंटे, फिर जलेबी .. फिर ये अपने जीभ की लम्बाई भी दिखाएँगे ...कुल मिला के पंचवर्षीय मेले की तयारी शुरू. इन रंगे-पुते चेहरों को चाल खेलते देखना अच्छा लगता था.. अब कमी खलती है.सुन्दर व्यंग्य-ढंग.
ReplyDeleteवाह अमृता जी, आपकी कलम की धार तीखी होती जा रही है...
ReplyDeleteवाकई किसी के अति देशभक्त होने का खतरा असली खतरा पैदा करनेवालों पर मंडराने लगा है।
ReplyDeleteवाऽहऽऽ…!!!!! बहुत खूब
ReplyDeleteकामयाब व बेहतरीन व्यंग्य तो लिखती ही हैं आप .... जिस तरह चुनिंदा शब्दों से आप शासन, सत्ता व सियासत पर प्रहार करती हैं, वो सबसे अलग होता है...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteअंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग कथ्य को ज़्यादा प्रभावशाली बना रहा है।
बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteवाह ....बहुत कमाल का सुंदर रचना ...
ReplyDeleteऔर रही बात अपने प्राइज की तो
ReplyDeleteवो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .
सच है ...इतने कमाल के उदाहरण कहाँ से लाती हैं आप अमृता जी
मतलब साफ़ है कि
ReplyDeleteअगर समय खुद ही आगे बढ़कर
ट्विस्ट करना चाहे तो
उसका सरप्राइज
कुछ भी हो सकता है
और रही बात अपने प्राइज की तो
वो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .
यही है बॉटम लाइन इस रचना की।
आज तो रसमय होगी वाणी।
ReplyDeleteवोट पडे तब सब ही बिगानी।
बहुत ही बढ़ियाँ रचना....
ReplyDelete:-)
और रही बात अपने प्राइज की तो
ReplyDeleteवो भले ही अपना वैल्यू खो दे
पर अपना कॉन्ट्रोवर्सि
कभी भी नहीं खो सकता है .
.....लाज़वाब...क्या सटीक व्यंग है....
करारी मार |
ReplyDeleteउडी बाबा इतने तीखे तीखे व्यंग्य बाण। ....... बड़े धोखे हैं इस राह में। ....... कहते हैं न १०० सुनार कि और १ लोहार की । एक ही चोट में सबका तिया-पांचा कर डाला । जियो जियो जियो । ये वाला तो बस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स :-
ReplyDeleteपर सबसे ज्यादा खुश तो
अपने सर्कस का जोकर लग रहा है
पहले वह दस फीट उछलता था
अब बिना ताली के ही
बीस-बीस फीट उछलने लगा है
ये सोच-सोचकर कि
शायद कभी कहीं उससे खुश होकर
कोई पांच साल के लिए ही न सही
उसे गद्दी न दे दे
और वह अपने मुकुट के डिजायन को लेकर
अभी से ही बहुत टेंसन में है ....
बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना, लाजवाब !
ReplyDeleteजितनी कॉन्ट्रोवर्सि उतना नाम
ReplyDeleteजितना उछालो
सब सर आँखों पर
बदलते परिवेश का बहुत सही नमूना
बिलकुल अलग तेवर इस बार ....सटीक व्यंग्य है ......!!कहाँ जा रहे हैं हम पता नहीं ....!!
ReplyDeleteNice
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