अहर्निश आतुरता
कहती है तुमसे आज ये
अनसुनी है नहीं
मेरी अनसुनी आवाज ये
पृक्ति से उठती प्रतिध्वनि में
तुम अपनी गहनता दे दो
पूर्व पगी प्रतीति की
साध्यंत सघनता दे दो
चाहो तो आन फेरकर
मेरी आधारशिला खींच लो
और जो निसर्ग शेष है
उसे भी तुम भींच लो
इस विसर्जन से नहीं माँगती मैं
तुमसे सर्जन का कोई वरदान
जो मेरा मूल्य खंडित कर
मुझे ही बना दिया मूल्यवान
बस मेरे मूल में
मौलिक गंध बन मिले रहो
और कल्पना के कल्पतरु पर
कामित कमल बन खिले रहो
प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
बस मेरे मूल में
ReplyDeleteमौलिक गंध बन मिले रहो
और कल्पना के कल्पतरु पर
कामित कमल बन खिले रहो
बहुत सुन्दर प्रार्थना
रचना वही जो संतुष्टि दे ..
ReplyDeleteप्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
ReplyDeleteतेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
बहुत ही गहरा मंथन करता रहा की इस de कविता की कौन सी पंक्ति सबसे भावमय है पर तय नहीं कर पाया.इन भाव रत्नों में फिर भी जो दिल को ज्यादा छू गया उसे ही उधृत कर रहा हूँ.पर ऐसा करके मुझे लग रहा है की मई आपके कविता के साथ इंसाफ नहीं कर पा रहा हूँ,पूरी की पूरी कविता ही समर्पण की अभिब्यक्ति है..कंही से भी इसे टुकड़ों में नहीं बता जा सकता है.आपके द्वारा प्रेम की इस अद्भुत परिणति की अभिब्यक्ति का इतना भब्य चित्रण.बिम्बों के माध्यम से प्रेमी ह्रदय की ब्यथा का चित्रण.बधाई के लिए शब्द नहीं है.
अहा, गहरे उतरती यह रचना।
ReplyDeleteवह अनसुनी आवाज की रक्तरंजित पीर से लिख देती है सिसकता संताप ....निशब्द काफिले में.....जब भी स्वयं के विपक्ष में खड़ा करती है अपनी आतुरता को....
ReplyDeleteकालजयी पोस्ट........
बहुत ही उत्कृष्ट
ReplyDeleteबहुत ही गहरा मंथन करता रहा की इस de कविता की कौन सी पंक्ति सबसे भावमय है पर तय नहीं कर पाया.इन भाव रत्नों में फिर भी जो दिल को ज्यादा छू गया उसे ही उधृत कर रहा हूँ.पर ऐसा करके मुझे लग रहा है की मई आपके कविता के साथ इंसाफ नहीं कर पा रहा हूँ,पूरी की पूरी कविता ही समर्पण की अभिब्यक्ति है..कंही से भी इसे टुकड़ों में नहीं बता जा सकता है.आपके द्वारा प्रेम की इस अद्भुत परिणति की अभिब्यक्ति का इतना भब्य चित्रण.बिम्बों के माध्यम से प्रेमी ह्रदय की ब्यथा का चित्रण.बधाई के लिए शब्द नहीं है.
ReplyDeleteप्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
पृक्ति से उठती प्रतिध्वनि में
ReplyDeleteतुम अपनी गहनता दे दो
पूर्व पगी प्रतीति की
साध्यंत सघनता दे दो
उत्कृष्ट प्रेममय पंक्तियाँ. साद्यंत सघनता मिले तभी तो जीवन में सच्ची तृप्ति हो.
aapki srijanshilata ko naman ....
ReplyDeleteadwitiiya ...
aur kuchh nahin kah sakti ......
और जो निसर्ग शेष है
ReplyDeleteउसे भी तुम भींच लो.....
Sadhoo Sadhoo
बहुत गहन अनुभूति कराता एक उत्कृष्ट रचना...आभार
ReplyDeleteइस विसर्जन से नहीं माँगती मैं
ReplyDeleteतुमसे सर्जन का कोई वरदान
जो मेरा मूल्य खंडित कर
मुझे ही बना दिया मूल्यवान
अनसुनी है नहीं
मेरी अनसुनी आवाज ये
बढिया भाव, अच्छी रचना
क्या कहने..
रचना रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए ........बेहद सुन्दर ।
ReplyDeleteमेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
ReplyDeleteरची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
बहुत ही सशक्त भाव ....
बस मेरे मूल में
ReplyDeleteमौलिक गंध बन मिले रहो
और कल्पना के कल्पतरु पर
कामित कमल बन खिले रहो
खूबसूरत ख़्वाहिश .... गहन प्रस्तुति
वाह.....
ReplyDeleteexcellent!!!!
अनु
बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteइस साध्यंत सघनता को भला कौन मूर्ख अनसुना करेगा
ReplyDeleteअब तो इसमें मिलने को हरेक स्वयं का ही चयन करेगा
................अविस्मरणीय।
प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
ReplyDeleteतेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
बहुत गहरे भाव संजोये गहरी रचना
प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
ReplyDeleteतेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
अर्थालंकार से सजी अभिधा शब्दशक्ति की सशक्त रचना के लिए बधाई
बहुत उम्दा,गहरे भाव लिए लाजबाब प्रस्तुति,,
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
behad gambheer rachna ..aapkee rachna par aaj koi comment nahi kar paa raha hoon ..aisa lag raha hai sirf ahsas hai ye rooh se mehsoos karo....taareef ke liye shabd nahee hain ..saadar badhayee ke sath
ReplyDeleteYah bhav bana rahe shashwat!
ReplyDeleteप्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
ReplyDeleteतेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
वाह, बेमिसाल, बेजोड़, बेहतरीन.......
अद्भुत भावों से परिपूर्ण यह रचना .. प्रतीक व बिम्ब चित्रण अवर्णीय .. विशेष कर ये पंक्तियाँ ह्रदय की गहराइयों तक उतर गयी ..
ReplyDeleteप्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
.. अहा!
अनोखे बिम्बों से सजी ... गहरे भाव पिरोये ... अनुपम रचना ...
ReplyDeleteकभी कभी कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं की फिर से पढने का मन बरबस ही फिर खींच लेता है ..वाकई में ये रचना जबरदस्त है
ReplyDeleteकई बार पढ़ना पड़ा । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteNisabad
ReplyDeleteJai maa bharti
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
ReplyDeleteरची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
वाह... अद्वितीय... अनुपम ... अद्भुत...अभिव्यक्ति
वाहहहहहहहहहहहहहहह्
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुति,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteये भी बेहतरीन। पढ़-पढ़ के एक विश्रांति सा अनुभव हो रहा है ..
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