जननी जो जानती कि
वह किसी
मलेच्छ की माँ बनने जा रही है
जो जनि (स्त्री) पर ही
अत्याचार की सीमाओं का
भयानक अतिक्रमण करेगा
और अपने ऐसे घोरतम अपराध से
उसे मुँह दिखाने के लायक नहीं छोड़ेगा
तो वह स्वयं ही
अपना नाक-कान काटकर
शूर्पनखा बनना स्वीकार कर लेती .....
यदि वह जानती कि
जिसे गोद में रख
अपने आँचल का ओट देकर
अमृत-जीवन दे रही है
वही आँचल तार-तार करके
जहाँ- तहाँ विष-वमन करेगा
और जघन्यता-से कई गोद उजारेगा
तो वह स्वेच्छा से
पूतना ही बनना स्वीकार कर लेती ....
यदि वह जानती कि
थोड़े-से कागज़ के टुकड़ों के लिए
उसके मातृत्व का टुकड़ा-टुकड़ा कर
उसी के माथे पर
वह कुकृत्यों का इतिहास लिखेगा
तो वह स्वयं ही
अपने गर्भ में
वेदों-उपनिषदों का वेदी बनाती
और भ्रूणमेध यज्ञ करते हुए
एक नया वेद का सृजन कर देती
पर किसी मलेच्छ की माँ बनना
किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करती .
वाकई ...
ReplyDeleteमां तो कभी नहीं चाहेगी कि उसकी कोख से राक्षस जन्में ..
सामयिक प्रभावशाली अभिव्यक्ति !
बधाई अमृता !
कितनी बड़ी विडम्बना है एक माँ के लिए ...बहुत सशक्त एवं गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन प्रभावशाली रचना,,,सुंदर अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है,
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
सच......
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
अनु
Saabash
ReplyDelete.mahan aalochak
Push pa Birendra looked.
Saabash
ReplyDelete.mahan aalochak
Push pa Birendra looked.
बहुत सशक्त रचना अमृता जी ... |जबरदस्त ...!!
ReplyDeleteवाकई माँ यदि ये जानती की उसकी कोख से राक्षस पैदा होने वाला है तो वो ऐसा ही करती है ..दिल को छू गयी ..हमेशा की तरह शानदार ..और खासियत यह भी है की ये हर पाठक के पहुँच में है ..और सीधे दिल में उतरती है ..ढेर सारी बधाई के साथ
ReplyDeleteउत्कृष्ट.....।
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
बेहद सशक्त और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकोई भी माँ अपने बच्चे को बुरा नहीं बनाना चाहती .... बहुत गहन रचना ।
ReplyDeleteसही शब्दों में सही आक्रोश और पीड़ा की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजीवन देने वाली कभी नहीं चाहती है कि उसका अंश आँचल को तार-तार करने वाला निकले...पर आज का सच काफी दारूण है..
ReplyDeleteकितनी देर बजेगी रणभेरी
कहीं मैंने तुम्हें अपनी कोख से
जन्म के निर्णय को स्थगित कर दिया तो ......?
totally agree!!!sach hi to hai ye kavita!!!
ReplyDeleteभ्रूण हत्या से घिनौना ,
ReplyDeleteपाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश क्या ले पाओगे !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
काश किसी माँ को यह पहले से ज्ञात होता, मार्मिक पंक्तियाँ।
ReplyDeleteकोई माँ ऐसे बच्चे को जन्म नही देना चाहेगी बेहद उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteनग्न सत्य
ReplyDeleteपूर्वजों के संस्कार घटिया होते हैं,
ReplyDeleteपालन पोषण घटिया होता है
समाज घटिया होता है
आसपास का वातावरण घटिया होता है
मनुष्य तो सिर्फ कुरूप या, रूपवान
मूर्ख, मंदबुद्धि, बुद्धिमान होता है
राक्षस, पापी, अनैतिक कोई नहीं होता
पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक
यह सिर्फ उन लोगों का मापदण्ड है ।
जो उस व्यक्ति का विश्लेषण कर रहे हैं ।
विशेष- मापदण्ड भी घटिया हो सकता है ।
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ReplyDeleteमाँ का बस चलता तो दुनिया का ढंग ही कुछ और होता!
ReplyDeleteअदभुत और बेहतरीन.
ReplyDeleteख़ुशी तो हर जन्म पर होती है माँ को । बच्चे ही अपने कृत्यों से उसे ऐसा सोचने को विवश कर देते हैं । मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteवह कुकृत्यों का इतिहास लिखेगा
ReplyDeleteतो वह स्वयं ही
अपने गर्भ में
वेदों-उपनिषदों का वेदी बनाती
और भ्रूणमेध यज्ञ करते हुए
एक नया वेद का सृजन कर देती
पर किसी मलेच्छ की माँ बनना
किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करती
आपने सच कहा गलानी से भर जाता है मन
जीवनदायिनी के लिए सबसे कठिन काम ये. किन्तु संतति ऐसे हों तो माँ जीते जी ही मर जाए. सुन्दर लेखनी.
ReplyDeleteकोई नहीं जानता की कोख में कौन पल रहा है.....भगत सिंह या जयचंद....रखवाला या हत्यारा...एक कहानी पढी थी...एक औरत ने कठोर तप किया...तब जाकर भगवान प्रगट हुए ..भगवान ने कहा कि उसकी इच्छा पूरी होगी..पर वो अवगुणों से भरा होगा..पर औऱत के अंदर की मां को वो भी मंजूर था...पर जब भगवान ने कहा कि वो देशद्रोही भी होगा....तो ये सुनकर औरत बिना कुछ वापस चली गई...जाहिर है मां बनना कम से कम भारत की नारियों के लिए आज भी तमाम दर्द के बाद भी भगवान कि नेमत है...पर ये नेमत आगे क्या गुल खिलाएगी ये तो वो मां भी नहीं जानती...क्योंकि कोई भी औऱत जो मां होगी वो कभी भी अपने संतान को गलत करना नहीं सिखाती...हाल कि पढ़ी बेहतरीन कविताओं में एक
ReplyDeleteबिलकुल सही बात
ReplyDeleteजो जननी जानती ...
ReplyDeleteबस यही एक अंजाना सत्य रहता है जो उजागर नहीं होता समय के गर्भ से ... गहरे भाव सी उपजी रचना ...
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज २७ मई, २०१३ के ब्लॉग बुलेटिन-आनन् फ़ानन पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना !!
ReplyDeleteKuputro jaayet tadapi kumaata n bhavati!
ReplyDeleteमातृत्व का उलाहना, क्षोभ का गर्भ
ReplyDeleteऔर माता होने की विवशता एक साथ प्रकट करती रचना
....साधो आ. अमृता जी
सचमुच बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति। कोई भी माँ नहीँ जानती कि वह किसे जन्म दे रही है. मानव को या दानव को
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