शुक्र है कि
अनगिनत आँखों वाली जिन्दगी की
अनगिनत दिशाओं की दौड़ में
कोई डोपिंग टेस्ट-वेस्ट नहीं है
और कोई मानक मापदंड भी नहीं है...
जो जैसा चाहे , दौड़ लगा सकता है
पर जिन्दगी की इस बेमेल दौड़ में
अपने अनुकूल दौड़ का चुनाव
न कर पाने की गहरी टीस
मुझे घुन की तरह खा रही है ...
उसपर जो चाहे उस दौड़ में भी
धकिया कर दर्द ही दे जाता है
तिसपर सबसे पीछे रहकर
अपना मैराथन करने का
गम बहुत सालता है ...
काश! कोई रेफरी ही बना देता
या फिर दर्शक-दीर्घा में ही
एक सीट आरक्षित करवा देता
नहीं तो मेरे हाथों जीत का
पुरस्कार ही बंटवाता तो
अपने मैराथन से राहत मिलती....
मैं अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए
कोशिश पर कोशिश किये जा रही हूँ
रामबाण-सीताबाण नुस्खा के साथ में
कई टोना-टोटका भी आजमा रही हूँ...
शक्तिवर्धक गोली-चूरण का
डेली हाई डोज ले रही हूँ
यदि इसी का बही-खाता बनाती तो
मेरे नाम एक रिकार्ड भी बन जाता
साथ ही उस दो बूंद को पी-पीकर
सारी बीमारियाँ उड़न-छू हो गयी
पर ये मुआ पैर है कि सीधे पड़ते ही नहीं...
कई बार तो लबालब आस्था लिए
सट्टेबाजों के चरण पर साष्टांग समर्पित कर आई
और उन मादक-द्रव्यों का भी
भरपूर सेवन कर देख लिया
पर मेरा मैराथन अपनी ही चाल में
ठुमक-ठुमक कर चल रहा है....
वैसे मैं भी पूरी तरह से
मैदान छोड़ने वालों में से नहीं हूँ
मन में विश्वास लिए
मतलब पूरा का पूरा विश्वास लिए
मैराथन किये जा रही हूँ, किये जा रही हूँ..
वैसे.... कहने में तो अभी के अभी
अपना झंडा लहराकर
अपनी जीत की दुंदभी बजा दूँ
और आप सबको बरगला कर हरा दूँ
पर सच में मैराथन करते हुए
सबसे पीछे और सबके पीछे रहने का
गम बहुत सालता है .
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनगिनत आँखों वाली जिन्दगी की
Deleteअनगिनत दिशाएं............सुन्दर।
इस थोप मैराथन से हममें से किसी का पीछा छूटनेवाला नहीं। और ना ही आप-हम मैराथन पूरा करने के शार्टकट को अपना कर शर्मिन्दा होनेवाले, इसलिए यह संघर्ष तो झेलना ही है। आशावान बने रहने का कोई दैदीप्यमान आशाप्रेरणा स्तंभ भी तो नजर नहीं आ रहा कहीं। क्या विवशता है चारों ओर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अर्थपूर्ण बात ...ये संघर्ष भी पीड़ा तो देता है
ReplyDeleteअपने आप में एक नया प्रयोग....बहुत सुंदर..
ReplyDeleteअपने आप में एक नया प्रयोग....बहुत सुंदर..
ReplyDeleteसभी अपनी ज़िंदगी की मैराथन दौड़ में लगे हैं .... पर आपने यह कैसे सोच लिया कि आप सबसे पीछे हैं ...
ReplyDeleteनवीनतम बिम्ब लिए बेहतरीन रचना
जब सबके अपने मानक हैं तो आगे पीछे का भय कैसा, मैराथन के माध्यम से जीवन का सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteमैराथन में पीछे रहने का गम भला क्यों ? .... आपके आगे है ही कौन ? इस दौड़ में अगर किसी से प्रतिस्पर्धा है तो अपने-अपने मानकों से है...हम सब तो बेतहाशा दौड़ ही रहे हैं ....
ReplyDeleteबेहतरीन बिम्ब की बानगी....
इस लगातार लंबी दौड़ में ,देखिये आपके पीछे कितने चले आ रहे हैं कितनी आगे हैं आप हमारे साथ !
ReplyDeletelife's a never ending marathon..
ReplyDeleteloved the inherent personification of race
जिंदगी एक लंबी दौड है और घटनाओं से भरी भी। आपने एक स्पर्धा का प्रतीक लेकर जिंदगी के साथ जोड कर देखा है। पिछली कुछ कविता को पढने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष तक पहुंचा हूं कि आपके पास कविता में प्रतीकों को भरने की जबरदस्त ताकत है। कभी प्रतीक आसान तो कभी मुश्किल। कविता को पढने के साथ प्रतीकों को पहचान कर मूल अर्थ तक पहुंचने का मजा कुछ और ही होता है। आशा है आपका लेखन आगे और निखरता जाएगा और चरम तक पहुंचेगा।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता अमृता जी आभार |
ReplyDeleteवाह...सबसे पीछे रहकर जो आपका यह हाल है तो आगे जाकर क्या होगा..मुबारक हो यह मैराथन की दौड..विजेता तो आप उसी क्षण बन गयीं जब से दौड़ना शुरू किया.
ReplyDeleteपीछे रहने में ही तो मज़ा है.....यहाँ तो जीत पर कुछ नहीं मिल पाता है ।
ReplyDeleteयह जीवन है ..
ReplyDeletejivan isi ka naam hai aur ham sabhi is mairathan me shamil hai.........
ReplyDeleteकच्छप गति को भी विजयश्री मिलती है -चरैवेति चरैवेति !
ReplyDeleteमैराथन में जमे रहना ही एक तरह की जीत है. रचना में उधृत हौसले के साथ जीत सुनिश्चित है.
ReplyDeleteहर किसी को अपना अपना मैराथन .... पूरा करना है ..
ReplyDeleteइस दौड़ में सबका अपना-अपना स्थान है, सोच-सोच की बात है... बहुत आगे हैं आप... अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteसच कहा जिंदगी एक दौड़ और होड़ बनकर ही रह गयी.
ReplyDeleteशायद यही जीवन है. सुंदर प्रस्तुति.
जीवन के मन के विविध आयामों को खंगालती पोस्ट बेहतरीन अंदाज़ और तारतम्य लिए .
ReplyDeleteजीवन की जद्दोजहद ....जो है यही है ....इसी में से कोशिश कर सफलता पाना है ...और जीवन सार्थक करना है ...!!
ReplyDeleteबहुत सशक्त अभिव्यक्ति ...अमृता जी ...!!
अपना झंडा लहराकर
ReplyDeleteअपनी जीत की दुंदभी बजा दूँ
और आप सबको बरगला कर हरा दूँ
पर सच में मैराथन करते हुए
सबसे पीछे और सबके पीछे रहने का
गम बहुत सालता है .
आपकी मेहनत दिखाई दे रही है और दुन्दुभी भी बज कर रहेगी
डोपिंग के समसामयकि प्रसंग को आपने सुंदर तरीके से कविता का विषय बनाया है. उसे ज़िंदगी की मैराथन के साथ जोड़ने का अंदाज़ भी काबिल-ए-ग़ौर है. मनचाही रेस में दौड़ने की बात तो बहुत पहले गीतों में कही गई है कि कभी किसी को मुक़मम्ल ज़हां नहीं मिलता, लेकिन जीवन को अपने मुताबिक ढालने की बात गीत में दब जाती है. शायद कवि अपनी उदासी को व्यक्त करने के ख़्याल में कुश समाधान देना भूल गया है.दिल्ली में एक प्रतिस्पर्धा आयोग है, पता नहीं प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार से जुड़ा विभाग है, या फिर हर तरह की प्रतिस्पर्धा की जिम्मेदारी वाली विभाग है. लेकिन नाम देखकर अच्छा लगा. स्कूलों में सद्वाक्य लिखे देखे हैं कि प्रतिस्पर्धा ही जीवन है. ऐसे विचार वाले लोगों का हार-जीत के सिद्धांत में गहरा भरोसा होता है. लेकिन प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग से दुनिया की बेहतरी के बारे में सोचने वालों की भी कमी नहीं है. सुंदर कविता लिखने के बहुत-बहुत शुक्रिया.
ReplyDeletesabki kahani..sabka sangharsh ek sa...sab ke dil ki baat kah gayin aap :)
ReplyDelete