Social:

Wednesday, May 29, 2013

अनसुनी है नहीं ...



अहर्निश आतुरता
कहती है तुमसे आज ये
अनसुनी है नहीं
मेरी अनसुनी आवाज ये

पृक्ति से उठती प्रतिध्वनि में
तुम अपनी गहनता दे दो
पूर्व पगी प्रतीति की
साध्यंत सघनता दे दो

चाहो तो आन फेरकर
मेरी आधारशिला खींच लो
और जो निसर्ग शेष है
उसे भी तुम भींच लो

इस विसर्जन से नहीं माँगती मैं
तुमसे सर्जन का कोई वरदान
जो मेरा मूल्य खंडित कर
मुझे ही बना दिया मूल्यवान

बस मेरे मूल में
मौलिक गंध बन मिले रहो
और कल्पना के कल्पतरु पर
कामित कमल बन खिले रहो

प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .


34 comments:

  1. बस मेरे मूल में
    मौलिक गंध बन मिले रहो
    और कल्पना के कल्पतरु पर
    कामित कमल बन खिले रहो

    बहुत सुन्दर प्रार्थना

    ReplyDelete
  2. रचना वही जो संतुष्टि दे ..

    ReplyDelete
  3. प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
    मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
    बहुत ही गहरा मंथन करता रहा की इस de कविता की कौन सी पंक्ति सबसे भावमय है पर तय नहीं कर पाया.इन भाव रत्नों में फिर भी जो दिल को ज्यादा छू गया उसे ही उधृत कर रहा हूँ.पर ऐसा करके मुझे लग रहा है की मई आपके कविता के साथ इंसाफ नहीं कर पा रहा हूँ,पूरी की पूरी कविता ही समर्पण की अभिब्यक्ति है..कंही से भी इसे टुकड़ों में नहीं बता जा सकता है.आपके द्वारा प्रेम की इस अद्भुत परिणति की अभिब्यक्ति का इतना भब्य चित्रण.बिम्बों के माध्यम से प्रेमी ह्रदय की ब्यथा का चित्रण.बधाई के लिए शब्द नहीं है.

    ReplyDelete
  4. अहा, गहरे उतरती यह रचना।

    ReplyDelete
  5. वह अनसुनी आवाज की रक्तरंजित पीर से लिख देती है सिसकता संताप ....निशब्द काफिले में.....जब भी स्वयं के विपक्ष में खड़ा करती है अपनी आतुरता को....

    कालजयी पोस्ट........

    ReplyDelete
  6. बहुत ही उत्कृष्ट

    ReplyDelete
  7. बहुत ही गहरा मंथन करता रहा की इस de कविता की कौन सी पंक्ति सबसे भावमय है पर तय नहीं कर पाया.इन भाव रत्नों में फिर भी जो दिल को ज्यादा छू गया उसे ही उधृत कर रहा हूँ.पर ऐसा करके मुझे लग रहा है की मई आपके कविता के साथ इंसाफ नहीं कर पा रहा हूँ,पूरी की पूरी कविता ही समर्पण की अभिब्यक्ति है..कंही से भी इसे टुकड़ों में नहीं बता जा सकता है.आपके द्वारा प्रेम की इस अद्भुत परिणति की अभिब्यक्ति का इतना भब्य चित्रण.बिम्बों के माध्यम से प्रेमी ह्रदय की ब्यथा का चित्रण.बधाई के लिए शब्द नहीं है.
    प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
    मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .

    ReplyDelete
  8. पृक्ति से उठती प्रतिध्वनि में
    तुम अपनी गहनता दे दो
    पूर्व पगी प्रतीति की
    साध्यंत सघनता दे दो


    उत्कृष्ट प्रेममय पंक्तियाँ. साद्यंत सघनता मिले तभी तो जीवन में सच्ची तृप्ति हो.



    ReplyDelete
  9. aapki srijanshilata ko naman ....
    adwitiiya ...
    aur kuchh nahin kah sakti ......

    ReplyDelete
  10. और जो निसर्ग शेष है
    उसे भी तुम भींच लो.....
    Sadhoo Sadhoo

    ReplyDelete
  11. बहुत गहन अनुभूति कराता एक उत्कृष्ट रचना...आभार

    ReplyDelete
  12. इस विसर्जन से नहीं माँगती मैं
    तुमसे सर्जन का कोई वरदान
    जो मेरा मूल्य खंडित कर
    मुझे ही बना दिया मूल्यवान

    अनसुनी है नहीं
    मेरी अनसुनी आवाज ये

    बढिया भाव, अच्छी रचना
    क्या कहने..

    ReplyDelete
  13. रचना रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए ........बेहद सुन्दर ।

    ReplyDelete
  14. मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
    बहुत ही सशक्‍त भाव ....

    ReplyDelete
  15. बस मेरे मूल में
    मौलिक गंध बन मिले रहो
    और कल्पना के कल्पतरु पर
    कामित कमल बन खिले रहो

    खूबसूरत ख़्वाहिश .... गहन प्रस्तुति

    ReplyDelete
  16. वाह.....
    excellent!!!!


    अनु

    ReplyDelete
  17. बेहतरीन रचना !!

    ReplyDelete
  18. इस साध्यंत सघनता को भला कौन मूर्ख अनसुना करेगा
    अब तो इसमें मिलने को हरेक स्‍वयं का ही चयन करेगा

    ................अविस्‍मरणीय।

    ReplyDelete
  19. प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
    मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
    बहुत गहरे भाव संजोये गहरी रचना

    ReplyDelete
  20. प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए

    अर्थालंकार से सजी अभिधा शब्दशक्ति की सशक्त रचना के लिए बधाई

    ReplyDelete
  21. बहुत उम्दा,गहरे भाव लिए लाजबाब प्रस्तुति,,

    Recent post: ओ प्यारी लली,

    ReplyDelete
  22. behad gambheer rachna ..aapkee rachna par aaj koi comment nahi kar paa raha hoon ..aisa lag raha hai sirf ahsas hai ye rooh se mehsoos karo....taareef ke liye shabd nahee hain ..saadar badhayee ke sath

    ReplyDelete
  23. प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
    मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .

    वाह, बेमिसाल, बेजोड़, बेहतरीन.......

    ReplyDelete
  24. अद्भुत भावों से परिपूर्ण यह रचना .. प्रतीक व बिम्ब चित्रण अवर्णीय .. विशेष कर ये पंक्तियाँ ह्रदय की गहराइयों तक उतर गयी ..
    प्रस्फुटन की पीर प्रिय है मुझे
    तेरी कान्तिमयी कमलिनी बनने के लिए
    मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
    .. अहा!

    ReplyDelete
  25. अनोखे बिम्बों से सजी ... गहरे भाव पिरोये ... अनुपम रचना ...

    ReplyDelete
  26. कभी कभी कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं की फिर से पढने का मन बरबस ही फिर खींच लेता है ..वाकई में ये रचना जबरदस्त है

    ReplyDelete
  27. कई बार पढ़ना पड़ा । बहुत सुंदर ।

    ReplyDelete
  28. मेरे रचयिता! जानती हूँ कि रचना
    रची ही जाती है रक्त से सनने के लिए .
    वाह... अद्वितीय... अनुपम ... अद्भुत...अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  29. वाहहहहहहहहहहहहहहह्

    ReplyDelete
  30. लाजबाब प्रस्तुति,,

    ReplyDelete
  31. बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  32. ये भी बेहतरीन। पढ़-पढ़ के एक विश्रांति सा अनुभव हो रहा है ..

    ReplyDelete