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Saturday, April 13, 2013

दीवारों की भाषा ...


न उसने मुझे
कभी पढ़ना चाहा
न ही उसे पढने की
मैंने कोशिश की...
इस फ़रक के दरम्यान
पनपती रही
हमारी ही
दीवारों की भाषा
जो देती रही
हमारे शहतीरों को
कुछ अलग-सा अर्थ
व चौखटों-दरवाजों को
मढ़ी हुई मजबूती...
बनाती रही
हमारे अहाते में
थोड़ी-सी जगह
धूप के लिए
और बिखेरती रही
अँधेरी गुफाओं से चुने
कुछ दाने
चिड़ियों के लिए...
दीवारों की भाषा
उपेक्षित कोनों में
बनते-बिगड़ते
अनपेक्षित दरारों में
उग आये
तिनका-पातों को
खुरच-खुरच कर देती रही
हद से ज्यादा हरापन
और फूंक-फूंककर
भरती रही अपनी ही
सिहरती साँसें
हमारे चुम्बकीय घेरे में
घुमती हवा के फेफड़ों में...
साथ ही आराम से
आदिम अगियारी को
घेरकर बैठी रात को
बताती रही
अपनी ही उत्पत्ति
फिर उधेड़े लिपियों के
उधेड़-बुन से रेशों से
खींचती रही रेखाचित्र....
दीवारों की भाषा
अब झूलते चित्रों को
नीचे की खाई में
झाँकने नहीं देती है
बस कुछ
उलझे समीकरणों के बीच
बराबर का लम्बा-सा
चिह्न देकर
खींचती जा रही है
अपने अनंत तक
ताकि
अब कोई भाषांतर न हो .



50 comments:

  1. समीकरण में बराबर का चिन्ह बना रहे।

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    1. वेगवती धारा सी सशक्त अभिव्यक्ति भाव की अनुभाव की संबंधों की सीलन और दूरी की बुनावट की ,आहट की वैचारिक वैभिन्न्य की ....

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  2. उलझे समीकरणों के बीच
    बराबर का लम्बा-सा
    चिह्न देकर
    खींचती जा रही है
    अपने अनंत तक
    ताकि
    अब कोई भाषांतर न हो .

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,आभार अमृता जी,,
    Recent Post : अमन के लिए.

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  3. एक-दूसरे को पढ़ने-पढ़ाने की नाकाम कोशिश के बीच दीवारों की भाषा कुछ उलझे समीकरणों के वजूद को जरूर तलाशती रहती है ...भाषांतर मिट भी जाए, अनंत का अंत हो जाए ..तो भी .....
    उत्कृष्ट व मिजाजी....

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  4. दीवारों की भाषा का उम्दा समीकरण

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  5. दीवारों की भाषा बहुत बढ़िया..

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  6. ज़रूरी है यह संतुलन, सीख देती है आपकी रचना

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  7. दुखदायी भूलें....

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  8. भाषा तो अपनी ही थी, बस समझ पाने की कमी से दीवारें खड़ी हो गयीं ... और अब हरसूं गूंजती हैं ...
    बेहद गहन, सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  9. न उसने मुझे
    कभी पढ़ना चाहा
    न ही उसे पढने की
    मैंने कोशिश की...
    इस फ़रक के दरम्यान
    पनपती रही
    हमारी ही
    दीवारों की भाषा............

    बस कुछ
    उलझे समीकरणों के बीच
    बराबर का लम्बा-सा
    चिह्न देकर
    खींचती जा रही है
    अपने अनंत तक

    सामयिक और गहन चिंतन

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  10. दीवार तो फिर दीवार ठहरे. एक बार उठ क्या गए...


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  11. दीवारों की भाषा बिना भाषान्तर के..

    सुंदर विचार, सुंदर कविता.

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  12. दीवारों की भाषा को समझने का सार्थक प्रयास। उसके भीतर बाहर चल रहे कुछ हलचलों को सही ढंग से पाठकों के सामने रखा है।

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  13. नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
    आपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  14. दीवारों की भाषा का संदर्भ काबिल-ए-गौर है। नई रचना के शुक्रिया और स्वागत।

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  15. दिल को छू ली रचना
    शुभकामनायें !!

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  16. अक्सर एक दूसरे का अभूजापन ..एक अजनबियत पैदा कर देता है ...या खड़ी कर देता है एक दीवार ..जिसमें न खिड़कियाँ न झरोखे ...न ही कोई संध होती है जिससे आवागमन का कोई बहाना तो मिले ....

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  17. उलझे समीकरणों से ही ऋजु समीकरण निकल आयेगें

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  18. वेगवती धारा सी सशक्त अभिव्यक्ति भाव की अनुभाव की संबंधों की सीलन और दूरी की बुनावट की ,आहट की वैचारिक वैभिन्न्य की ....

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  19. bahut sashakt abhivyakti. badhai.

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  20. उलझे समीकरणों से ही ऋजु समीकरण उपजेगें -मनवा धीरज रख!दीवारें तब ध्वस्त हो जायेगी

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  21. उलझे समीकरणों के बीच
    बराबर का लम्बा-सा
    चिह्न देकर
    खींचती जा रही है
    अपने अनंत तक
    कोशिश की है तो अंतर मिटेगा ही.... सशक्त अभिव्यक्ति

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  22. sundar rachna amrita ji aapne sambandho ko alag tarah se samjhne ki koshish ki hai

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  23. Kaan bharti
    हमारी ही
    दीवारों की भाषा.....
    mahimamandan
    फिर उधेड़े लिपियों के
    उधेड़-बुन से रेशों से
    खींचती रही रेखाचित्र....
    Sampidan
    अँधेरी गुफाओं से चुने
    कुछ दाने
    चिड़ियों के लिए...
    Vishaad ko apnaane
    अब झूलते चित्रों को
    नीचे की खाई में
    झाँकने नहीं देती है
    बस कुछ
    kaa prabhaav chhodti kavitaa ...
    Roman fonts mein likh dee meri tippani taki Bhashaantar toh banaa rahe ....... Sadho Amrita Ji

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  24. समीकरण बने हैं तो सम पर आने की थ्योरी भी होगी अवश्य- बस थोड़ी खोज !

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  25. नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ

    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  26. न उसने मुझे
    कभी पढ़ना चाहा
    न ही उसे पढने की
    मैंने कोशिश की...
    इस फ़रक के दरम्यान
    पनपती रही
    हमारी ही
    दीवारों की भाषा
    जो देती रही
    हमारे शहतीरों को
    कुछ अलग-सा अर्थ ...

    संवाद जब मौन का हो जाए तो मौन अपनी भाषा में ही बोलने लगता है ... ओर दिवारों की भाषा मुखर हो जाती है ...

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  27. बहुत गहरे भाव रहे होंगे आपके भीतर जब इसे लिखा होगा ..दो बार पढ़ा पर समझ के बाहर ही है..अमृता जी

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  28. अब झूलते चित्रों को
    नीचे की खाई में
    झाँकने नहीं देती है
    बस कुछ
    उलझे समीकरणों के बीच
    बराबर का लम्बा-सा
    चिह्न देकर
    खींचती जा रही है
    अपने अनंत तक
    ताकि
    अब कोई भाषांतर न हो .

    निःशब्द करती रचना

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  29. दीवारों की भाषा..........बेहतरीन और लाजवाब।

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  30. पढो,ना पढो ... फिर भी ज़िन्दगी की किताब लिखती जाती है और थरथराते एहसास मन को सुनते जाते हैं कितना कुछ

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  31. अनुपम शब्द ,अद्भुत भाव और चमत्कारिक बिम्ब, वाह !!!!!!!

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  32. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  33. बीच में मौन की दीवार और मन में न जाने कितने संवाद .... बेहतरीन रचना ।

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  34. भाषांतर भी दीवारें खड़ी कर देता है. लेकिन मनुष्य के लिए भाषा का औज़ार आवश्यक है. मौन विकल्प नहीं. बहुत ही सुंदर रचना.

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  35. सुन्दर अभिव्यक्ति...अमृता जी ...

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  36. बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति...अमृता जी !!
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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  37. कभी पढ़ना नहीं चाहा
    कभी उसने पढ़ कर भी समझना नहीं चाहा
    या पढ़कर भी अनपढ़ा सा लगा उसे
    या पढ़कर भी अनदेखा किया

    समझने...न समझने और समझ कर अनदेखा करने के बीच अपने अपने प्रयासों में लगा रहना...बावजूद इसके कई बार समझ नहीं पाते हम..या कहें कि समझने का प्रयास भी नहीं करते..फिर तो भाषा का अंतर रह ही जाएगा..या कहें कि भाषा पर दोषारोपण करने को ही बचा रह जाता है

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  38. एक दुसरे को न पढना संवाद हीनता है ,संवादहीनता ही दोनों के बीच का दीवार...उसका परिणाम की सशक्त अभीव्यक्ति
    latest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ

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  39. दीवारों की भाषा...उलझे समीकरण हल करने का प्रयास..बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...

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  40. उलझे समीकरणों के बीच
    बराबर का लम्बा-सा
    चिह्न देकर
    खींचती जा रही है
    अपने अनंत तक
    ताकि
    अब कोई भाषांतर न हो ........

    इन पंक्तियों में तुमने सब कुछ कह दिया है अमृता.....

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  41. अमृता,अति सुंदर.....बिंबों का प्रयोग सटीक....अर्थवन हो उठता है एक एक शब्द....और पुनरावृत्ति भी नहीं....बिलकुल एक प्रवाह लिए..बहुत खूब....

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  42. बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

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  43. सुन्दर और सटीक रचना | जीवन में संतुलन कितना मायने रखता है सही रूप में समझती है |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  44. बहुत ही सारगर्भित और मनोहारी कविता |

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  45. बेह्तरीन अभिव्यक्ति,शुभकामनायें

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  46. बहुत भावपूर्ण ....एक बार पड़ने की चीज़ नहीं ....इसे तो बार बार पढ़ना होगा ....

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  47. समता की खोज में सुन्दर काव्य दर्शन .

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