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Tuesday, August 20, 2013

मुई मानवीय भूल है न....



एक और हादसा
विपक्ष पीड़ितों के पक्ष में
पक्षाघाती बोल बोल रहे हैं
और पक्षपाती अपने मातहत से
आहतों का ब्योरा ले रहे हैं...
राहत की बात ये है कि
राहत की रवानगी का 
पूरा इंतजाम किया जा रहा है
इसमें समय तो लगता है...
कटे-फटे अंगों को जोड़-जोड़ कर 
गिनती जारी है
आधिकारिक और सूत्रों के
बेमेल आंकड़ों में
गलती गणित की ही है...
मन ही मन कात्यायनी माता को
धन्यवाद दे दे कर अवाक हो  
सहरसा और खगड़िया अचम्भित है
अपनी खैरियत पर हैरान भी है  
धमारा धू-धू कर जल गया
और कितनी ही कटी लाशें 
अपनी अंतिम संस्कार के लिए 
कितनी आसानी तैयार हो गयी है 
यदि वे कहीं से पूरी हो जाए तो...
वहाँ पहुँचे अधिकारियों को 
खदेड़-खदेड़ कर भगाया गया
या वे खुद ही जान बचाने के लिए
वहाँ से भाग निकले ?
अब तो रेल से गलती होनी थी , हो गयी 
जिन्हें-जिन्हें कटना था वे तो कट चुके
देखने वालों को गुस्सा दिखाना था , दिखा चुके
जितनी तोड़-फोड़ मचानी थी , मचा चुके
समय है , बीतेगा ही
धीरे-धीरे सब चुप भी हो जायेंगे
जैसा कि होता आया है....
अपने आलाकमान जी 
अधिकारियों के लाईन पर लगातार बने हुए हैं
हेल्पलाईन भी जारी किया जा चुका है
इसी से घायलों को भी 
समय पर बचा लिया गया है
फिर एक कमीशन को बिठाने के लिए
बड़ी जगह बनायी जा रही है
फिर एक खुली बहस की
पुरजोर तैयारी चल रही है
जो कि नैतिक जिम्मेवारी पर 
हवाबाज़ी करती रहेंगी...
एक-दूसरे को तिरछी नजरों से देखने के लिए 
आँखों को फरमान जारी कर दिया गया है
आँखे हैं कोई रेल नहीं
डर से मानने को राजी हैं
और जो महज एक
मुई मानवीय भूल है न
वो देश छोड़ कर भाग भी तो नहीं सकती है 
जिसके मचान से माथे पर
सारा दोष मढ़ दिया जाएगा
साथ ही इस गाढ़े वक्त पर
गढ़ी-गढ़ाई हुई गलफूटों को
फिर से गला पकड़ कर
फिर-फिर गढ़ दिया जाएगा .

  

27 comments:

  1. बड़ा भयावह समय है... भयाक्रांत जी रहे हैं हम, बस कविता का ही संबल है! कुछ तो स्थिति बदले...

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  2. ये मानवीय भूल नहीं, राज्य सरकार का फेल्योर है।
    आभार

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  3. :-(
    निःशब्द हूँ...कुछ कहना लाजमी भी नहीं....

    अनु

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  4. ..और हादसे होते रहेंगे।

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  6. इस भीषण दुर्घटना के बारे में जब से सुना है तब से यही सोच रहा था क्या कुछ ऐसा तंत्र हो सकता है जो ऐसी दुर्घटनाओं को रोक सके. सहरसा मेरा गृह-जिला है और धमाराघाट बस तीन चार स्टेशन दूर है वहाँ से. थोड़ी देर पहले बाबूजी से इसी दुर्घटना पर विस्तार से बात हुई थी. चूँकि वो सहरसा से हिंदुस्तान टाइम्स के लिए लिखते है इसलिए कल उन्होंने रिपोर्ट के सिलसिले में पूरे प्रकरण का जायजा लिया था. उनसे हुई बातचीत का निष्कर्ष यही है कि इस दुर्घटना में रेलवे की कोई भूल नहीं थी बल्कि ड्राईवर ने अगर आपातकालीन ब्रेक नहीं लगाया होता तो हादसा कई गुना बड़ा हो सकता था.. मारे गए लोगों के परिवार वालों के दुःख को हम बस सोच सकते है. अगर गलती उन्हीं की थी तो क्या रेलवे के पास कोई ऐसा उपाय है जिससे लोगो को पटरी पर आने से ही रोका जा सके ? या कम से कम कुछ खास मौकों पर विशेष इंतज़ाम किये जा सकें ?

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  7. राखी की हार्दिक शुभकामनायें
    बाकी बातें बाद में

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  8. जिम्मेदारी लेने ना लेने से मृतक वापस नही लौट पायेंगे, इस तरह के भयावह हादसे होने ही नही चाहिये, अति दुखद.

    रामराम.

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  9. जो हुआ बेहद दुखद था पर अपने को भक्त कहने वाले लोगों को अपनी जिम्मेदारी भी समझनी चाहिए..

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  10. ऐसी भूलों को मानवीय भूल कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ... दुखद पहलू है ये ...

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  11. जो भी है बेहद दु:खद है ...

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  12. हर हादसे के बाद की कहानी लगभग एक जैसी ही होती है ...
    बेहद दुःखद !

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  13. सभी हादसे दुखद होते हैं..खैर छोड़ो..राखी की हार्दिक शुभकामनायें

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  14. अब हादसों को मानवीय भूल कहा जाने लगा है पहले तो ईश्वरीय दंड ही कहा जाता था. आम आदमी की पीड़ा कविता में फूट पड़ी है.

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल { बुधवार}{21/08/2013} को
    चाहत ही चाहत हो चारों ओर हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः3 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

    hindiblogsamuh.blogspot.com

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  16. भयावह घटना की लीपापोती सरासर निंदनीय होगी

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  17. बहुत ही दर्दनाक हादसा ...

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  18. छोटी-छोटी बातों के लिए इतना शोर मचाते हैं लोग ,और इतने बड़े हादसे अचानक ही घट कर स्तब्ध कर देते हैं !

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  19. कटु सत्य...... जो दुखद है...

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  20. आजादी के बाद से ही जानलेवा लापरवाहियों के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देनें का रिवाज होता तो आज ऐसा नहीं होता !

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  21. कुछ दिन शोर मचता है और फिर गाड़ी उसी ढर्रे पर चलने लगती है..सरकार के लिए आंकड़ों में सिर्फ एक और संख्या, लेकिन जिनके परिवार के व्यक्ति चले गए उनके लिए यह एक जीवन भर का दर्द है...यथार्थ की बहुत मार्मिक प्रस्तुति..

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  22. भीड़ बहुत हो गई है, भाड़ का पेट भी तो समय-समय पर भरना ही होगा।

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  23. एक दूसरे पर आरोप मढ़ने वालों के लिये किसी के जाने की पीड़ा को समझ पाना बहुत कठिन है।

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  24. कितनी आसानी से कह दिया गया कि ....सभी हादसे दुखद होते हैं ..खैर छोड़ो .......राखी की हार्दिक शुभकामनायें
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    अच्छी बात है.. बधाई दीजिये ..लीजिये, पर कभी-कभी अपने वक़्त को रोकना चाहिए...

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  25. मुई मानवीय भूल है न
    वो देश छोड़ कर भाग भी तो नहीं सकती है
    जिसके मचान से माथे पर
    सारा दोष मढ़ दिया जाएगा
    साथ ही इस गाढ़े वक्त पर
    गढ़ी-गढ़ाई हुई गलफूटों को
    फिर से गला पकड़ कर
    फिर-फिर गढ़ दिया जाएगा .

    फिर लोगों का अपना लेखा है-

    कर्म गति टारे न टरे ,

    मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी ,

    सोच के लग्न धरी ,

    सीता हरण मरण दशरथ का ,

    पल में विपदा परी ,कर्म गति टारे ,न टरी -

    इसमें सरकार क्या करे।

    विपक्ष की मति हरि -

    हरी

    बढ़िया प्रतीक विधान है सुन्दर रचना है आपकी बहुत सुन्दर शब्द जैसे नगीने से जड़े हुए हैं। ॐ

    शान्ति

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