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Sunday, January 24, 2021

पर काल से परे हो ......

जो तुम्हें रचे

कहो तो भी बचे

जो बचे उसे रचो

रचो तो मत बचो

स्वयं संकल्प हो

विपुल विकल्प हो

अनंत उद्गार हो

अनुभूति की टंकार हो

सबकी कसौटी पर खरी हो

सापेक्ष सत्य पर अड़ी हो

शब्द छोटे हो 

अर्थ बड़े हो

काल की बात हो

पर काल से परे हो .


10 comments:

  1. बहुत ही गहरे भाव।

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  2. जो काल से परे हो उसे काल में बताना है, अनुभूत सत्य को स्वयं मिटकर जताना है !

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  3. गहरे कहीं अनंत गहरे..उतरने को आतुर जीवन दर्शन..

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. मैं आपकी कविताएं कई बार पढ़ती हूं..
    हर बार नए अर्थ ..नए संदर्भ निकलते हैं..
    बहुत अच्छी कविता है

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  6. स्वयं संकल्प हो
    विपुल विकल्प हो

    लगा जैसे सारी कविता का सार इऩ दो पंक्तियों में भरा हुआ है. बहुत सुंदर.

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  7. अर्थ बड़े हो

    काल की बात हो

    पर काल से परे हो
    .बहुत बहुत सुन्दर

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  8. वाह
    बहुत सुंदर

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  9. अति उत्तम, लाजवाब बधाई हो नमन

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