सर्वाधिकार सुरक्षित ( कृपया बिना अनुमति के रचना न लें )
जो तुम्हें रचे
कहो तो भी बचे
जो बचे उसे रचो
रचो तो मत बचो
स्वयं संकल्प हो
विपुल विकल्प हो
अनंत उद्गार हो
अनुभूति की टंकार हो
सबकी कसौटी पर खरी हो
सापेक्ष सत्य पर अड़ी हो
शब्द छोटे हो
अर्थ बड़े हो
काल की बात हो
पर काल से परे हो .
बहुत ही गहरे भाव।
जो काल से परे हो उसे काल में बताना है, अनुभूत सत्य को स्वयं मिटकर जताना है !
Bahut sundar
गहरे कहीं अनंत गहरे..उतरने को आतुर जीवन दर्शन..
जी नमस्ते,आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी हैपांच लिंकों का आनंद पर...आप भी सादर आमंत्रित हैं।सादरधन्यवाद।
मैं आपकी कविताएं कई बार पढ़ती हूं..हर बार नए अर्थ ..नए संदर्भ निकलते हैं..बहुत अच्छी कविता है
स्वयं संकल्प होविपुल विकल्प होलगा जैसे सारी कविता का सार इऩ दो पंक्तियों में भरा हुआ है. बहुत सुंदर.
अर्थ बड़े होकाल की बात होपर काल से परे हो .बहुत बहुत सुन्दर
वाहबहुत सुंदर
अति उत्तम, लाजवाब बधाई हो नमन
बहुत ही गहरे भाव।
ReplyDeleteजो काल से परे हो उसे काल में बताना है, अनुभूत सत्य को स्वयं मिटकर जताना है !
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteगहरे कहीं अनंत गहरे..उतरने को आतुर जीवन दर्शन..
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार २६ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मैं आपकी कविताएं कई बार पढ़ती हूं..
ReplyDeleteहर बार नए अर्थ ..नए संदर्भ निकलते हैं..
बहुत अच्छी कविता है
स्वयं संकल्प हो
ReplyDeleteविपुल विकल्प हो
लगा जैसे सारी कविता का सार इऩ दो पंक्तियों में भरा हुआ है. बहुत सुंदर.
अर्थ बड़े हो
ReplyDeleteकाल की बात हो
पर काल से परे हो
.बहुत बहुत सुन्दर
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
अति उत्तम, लाजवाब बधाई हो नमन
ReplyDelete